
यूएनएचसीआर ने एक वक्तव्य में कहा कि देशों को ऐसा कोई क़दम नहीं उठाना चाहिए जिससे किसी व्यक्ति को वापस भेजने पर उसके जीवन और उसकी आज़ादी के लिए ख़तरा पैदा हो जाए।
भारत-म्यांमार सीमा पर मोरे (मणिपुर) नाम की जगह पर 7 रोहिंग्या शरणार्थियों अधिकारियों को सौंपा गया। उन्हें साल 2012 में भारत घुसने के आरोप में फ़ॉरेनर्स ऐक्ट क़ानून के अंतर्गत गिरफ़्तार किया गया था। असम सरकार की गृह और राजनीतिक विभाग में प्रधान सचिव एलएस चांगसान के मुताबिक म्यांमार सरकार ने उनकी पहचान की पुष्टि कर दी है। उनके नाम हैं मोहम्मद इनस, मोहम्मद साबिर अहमद, मोहम्मद जमाल, मोहम्मद सलाम, मोहम्मद मुकबुल खान, मोहम्मद रोहिमुद्दीन और मोहम्मद जमाल हुसैन।
सुप्रीम कोर्ट का हस्क्षेप से इनकार
एलएस चांगसान के मुताबिक म्यांमार के नागरिकों को निर्वासित या डिपोर्ट किए जाने की ये दूसरी घटना थी और दो महीने पहले भी म्यांमार अधिकारियों ने दो नागरिकों को स्वीकार किया था, हालांकि म्यांमार की ओर से इस बात की पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के इस क़दम पर किसी हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था। जहां मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सरकार के इस कदम की तीखी आलोचना की है, वहीं स्थानीय प्रशासन के मुताबिक ये लोग अपनी मर्ज़ी से वापस जा रहे हैं।
असम सरकार की गृह और राजनीतिक विभाग में प्रिंसिपल सेक्रेटरी एलएस चांगसान ने कहा, “ये सभी म्यांमार जाने के इच्छुक थे और उन्होंने इस बारे में एक संयुक्त याचिका भी दाख़िल की थी, लेकिन राष्ट्रीयता की पुष्टि की प्रक्रिया में लंबा वक़्त लगता है। आख़िरकार ये सभी वापस (म्यामार) जाकर खुश हैं। जो लोग ये कह रहे हैं कि वे खुश नहीं हैं वे ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ये सच्चाई नहीं है।
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भारत में कितने रोहिंग्या
एक आंकड़े के मुताबिक भारत में करीब 40,000 रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे हैं। कुछ वक्त पहले भारत सरकार की ओर से एक एडवाइज़री जारी की गई थी कि हर राज्य में रोहिंग्या लोगों की पहचान की जाए, उनकी संख्या को जुटाया जाए, उनके बायोमेट्रिक्स लिए जाएं, साथ ही ये भी पुष्टि की जाए कि उनके पास ऐसा कोई दस्तावेज़ न हो ताकि भविष्य में वो नागरिकता के लिए दावा कर सकें। अली जौहर ने पुष्टि की थी कि बायोमेट्रिक्स की प्रक्रिया जारी है। भारत में कई संगठन रोहिंग्या मुसलमानों को देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा बताते रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन
रवि नायर के मुताबिक इस क़दम से भारत ने कई अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों जैसे सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स कन्वेंशन, इकोनॉमिक एंड सोशल राइट्स कन्वेंशन और वीमेंस कन्वेंशन का उल्लंघन किया है जिस पर भारत ने हस्ताक्षर किए हैं। कुछ समय पहले गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बयान में कहा था की ये रोहिंग्या शरणार्थी नहीं हैं, ये हमें समझना चाहिए। रेफ़्यूजी स्टेटस प्राप्त करने का एक तरीका होता है और इनमें से किसी ने इस तरीके को नहीं अपनाया है। उन्हें वापस भेजकर भारत किसी अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन नहीं करेगा क्योंकि उसने 1951 संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
राजनाथ सिंह ने कहा की ये म्यांमार के नागरिक हैं। उनकी पहचान की म्यांमार सरकार ने पुष्टि कर दी है। उन्हें साल 2012 में गिरफ़्तार किया गया था जब वो असम में घुस रहे थे। फिर म्यांमार दूतावास से संपर्क किया गया और म्यांमार सरकार ने पुष्टि करने के बाद उन्हें ट्रैवल परमिट दे दिया। एक आंकड़े के अनुसार अगस्त 2017 से क़रीब सात लाख रोहिंग्या मुसलमानों ने सीमा पार करके पड़ोसी बांग्लादेश और भारत सहित अन्य देशों में शरण ली है।
म्यांमार में रोहिंग्या की हालत
म्यांमार में उत्तरी रखाइन प्रांत में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों का कहना है कि म्यांमार की सेना उन्हें मार रही है और उनके घरों को तबाह कर रही है। म्यांमार की सेना के मुताबिक वो आम लोगों को नहीं रोहिंग्या चरमपंथियों को निशाना बना रही है। संयुक्त राष्ट्र ने रखाइन में म्यांमार सेना की कार्रवाई को नस्ली संहार का साफ़ उदाहरण बताया है। एलएस चांगसान के मुताबिक स्थानीय डिटेंशन सेंटर्स में 32 रोहिंग्या थे और सात लोगों के वापस म्यांमार जाने के बाद 25 लोग भारतीय डिटेंशन सेंटर्स में बचे हैं। साउथ एशिया ह्यूमन राइट्स सेंटर से जुड़े रवि नायर भारतीय सरकार पर आरोप लगाते हैं कि इस साल रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने के दौरान सभी प्रक्रियाओं की अनदेखी की गई है।

