
आत्महत्याएं सिर्फ अपने ही देश में नहीं बल्कि दुनियाभर में बढ़ रही है, लेकिन छात्रों की आत्महत्या दर पिछलें 5 सालों में सबसे ज्यादा बढ़ी है| आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2004 में देश में हुई आत्महत्याओं में छात्रों का प्रतिशत 4.9 था, जो 2014 में बढ़कर 6.1 प्रतिशत हो गया|
वहीं छात्रों के अलावा दूसरे वर्गों में यह इजाफा 2004 में 13 प्रतिशत था जो 2014 में बढ़कर 31 प्रतिशत पर पहुंच गया|
छात्रों में बढती आत्महत्याएं आज देश के लिए चिंता का विषय बन गया है| सफलता और प्रतिस्पर्धा आज छात्रों के दिमाग पर हावी हो रही है, जो मानसिक तनाव का कारण बन रहा है| हर साल हम देखतें है कि दसवीं और बारहवी बोर्ड परीक्षाओं के रिजल्ट के बाद छात्रों के आत्महत्या की घटनाएं अखबारों में छपती है| छात्रों में बढ़ते आत्महत्या का कारण क्या है?
हाल ही में केंद्र सरकार ने साल 2014 से 2016 तक के आंकड़े सदन में पेश करते हुए जानकारी दी कि 2 साल के भीतर देश भर में 26,600 छात्रों ने आत्महत्या की है| राजस्थान के कोटा में बीते साल छात्र-छात्राओं की आत्महत्या के मामलें सुर्खियों में थे| केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने राज्यसभा में बताया कि साल 2016 में 9,474 छात्रों ने, साल 2015 में 8,934 छात्रों ने और साल 2014 में 8,068 छात्रों ने आत्महत्या की| आंकड़ों से साफ है कि साल 2014 के बाद साल दर साल छात्रों की खुदकुशी के मामलों में बढ़ोतरी हुई है|
हंसराज अहीर ने बताया कि साल 2016 में छात्रों की आत्महत्या के सबसे ज्यादा 1,350 मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए| इसके बाद पश्चिम बंगाल में ऐसे 1,147 मामले, तमिलनाडु में 981 मामलें और मध्य प्रदेश में 838 मामलें दर्ज हुए हैं|
5 सालो में हमने 40 हज़ार छात्र खो दिए
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2015 के अनुसार 5 साल में 40 हज़ार छात्रों ने ख़ुदकुशी की|
- 2011 – 7,696
- 2012 – 6,654
- 2013 – 8,423
- 2014 – 8,068
- 2015 – 8,934
कहाँ सबसे ज्यादा छात्रों ने आत्महत्याएं की?
केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि हर 55 मिनट में एक छात्र अपनी जान दे देता है| आंकड़ों के मुताबिक 2007 से 2016 के बीच भारत में 75000 छात्रों ने आत्महत्या की| छात्र आत्महत्या के मामलें में महाराष्ट्र पहले नंबर पर है| इसके बाद पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु का स्थान है| आंकड़े बताते है कि पश्चिम बंगाल में बीते एक साल के दौरान ख़ुदकुशी के मामले दोगुने हो गए हैं| वर्ष 2015 में इस सूची में बंगाल चौथे स्थान पर था| वहीँ, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में भी ऐसे मामलें तेजी से बढ़े हैं| राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2015 के मुताबिक देश के 5 राज्यों में ख़ुदकुशी के सबसे अधिक मामलें सामने आए है जिनमे महाराष्ट्र– 1,230, तमिलनाडु– 955, छत्तीसगढ़- 730, पश्चिम बंगाल– 676
और मध्य प्रदेश मे 625 मामले पाए गए |
क्यों करते हैं युवा आत्महत्या?
प्रतिस्पर्धा के इस दौर में छात्रों में बढता मानसिक तनाव युवाओं की जिंदगी छीन रहा है, जिसे समय रहते रोकने की आवश्यकता है| आज समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन ज़रूरी ये है कि हमारे देश का भविष्य जिस पर टिका है यदि वे ही इस बदलते समय में खुद को ढाल न पाए तो यह देश के लिए चिंता की बात है|
आंकड़े बतातें है कि ख़ुदकुशी करने वाले छात्रों में करियर में नाकामी सबसे बड़ी वजह है| राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2015 के अनुसार, छात्रों ने परीक्षा में फेल, प्रेम प्रसंग, बेरोज़गारी और प्रोफेशनल करियर में असफलता के कारणों से आत्महत्याएं की|
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परीक्षा में फेल होने की वजह से आत्महत्या करने वालों की सखियाँ 2,646 है, वहीं प्रेम-प्रसंग में आत्महत्या करने वाले की सखियाँ 4,476 है| जबकि बेरोज़गारी से आत्महत्या करने वालों 2,723 और प्रोफेशनल करियर के कारन आत्महत्या करने वालों की सखियाँ 1,590 है|
कोचिंग इंस्टिट्यूट के विज्ञापन
आज हर स्टूडेंट सफलता की दौड़ में सबसे आगे रहना चाहते है, इसके लिए वें स्कूल के साथ-साथ ट्यूशन और तरह-तरह की कोचिंग क्लासेज जाते है| मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक टास्क फोर्स का गठन किया था, जिसने 2012 में अपनी रिपोर्ट दी थी। रिपोर्ट में बताया गया कि देश भर में चल रहे कोचिंग इंस्टिट्यूट्स में पढ़ाई का फोकस इंजिनियर या डॉक्टर बनाने पर नहीं, आईआईटी या एम्स में दाखिला दिलाने पर होता है। मोटी फीस लेने वाले ये इंस्टिट्यूट विज्ञापनों के जरिए सफलता के सपने बेचते हैं और किशोर वर्ग के मन में झूठी उम्मीद जगाते हैं। विफल रहने पर यही उम्मीद इनके आत्महत्या का कारण बन जाती है। इसी कारण 15-29 वर्ष के आयु वर्ग में आज पूरी दुनिया में सर्वाधिक आत्महत्या की वारदात भारत में होती है।
मनोचिकित्सा में भारत पीछे
भारत मानसिक स्वास्थ्य पर पर्याप्त खर्च नहीं करता है। वर्तमान में भारत मानसिक स्वास्थ्य पर अपने स्वास्थ्य बजट का 0.06 फीसदी खर्च करता है। यह आंकड़े बांग्लादेश (0.44 फीसदी) से कम है। वर्ष 2011 के विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के मुताबिक अधिकांश विकसित देशों ने मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान, बुनियादी ढांचे, फ्रेमवर्क और टैलेंट पूल पर अपने बजट का 4 फीसदी से ऊपर तक खर्च किया है।
बढ़ते छात्र आत्महत्याओं को देखते हुए आज यह ज़रूरी हो गया है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जिला स्तर पर मेंटल हेल्थ केयर में सुधार लाए जाए। आज देश के कई ज़िलों में मेंटल हेल्थ प्रोग्राम को लागू किया गया है, जहां पर आत्महत्या रोकथाम सेवा, कार्यस्थल पर स्ट्रेस मैनेजमेंट के साथ लाइफ स्किल ट्रेनिंग की सुविधाएं उपलब्ध है, ज़रूरी है इसका विस्तार देशभर में हो। खासकर छात्रों के लिए स्कूल व कॉलेज में काउंसलिंग की सुविधा उपलब्ध कराई जाए, लेकिन इसकी पहल सबसे पहले परिवार से की जानी चाहिए| माता-पिता को भी यह समझना होगा कि हर बच्चा टॉप नहीं कर सकता इसलिए बच्चों की कुशलता और हुनर को समझते हुए उनका सहारा बनना चाहिए ताकि करियर की बढती हताशा और परेशानियों में वह खुद को अकेला न समझें|

