
हाल ही में महिला किसान अधिकारों पर कार्य करने वाली संस्था ‘महिला किसान अधिकार मंच’ (मकाम) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि पति की मृत्यु के बाद 29 प्रतिशत किसान महिलाएं ऐसी है जिन्हें अपनी ही ज़मीन का अधिकार नहीं मिला जबकि 43 प्रतिशत महिलओं के घर उनके नाम पर रजिस्टर्ड नहीं हुआ| आंकड़ों के मुताबिक भारत में खेती किसानी से जुड़ी तकरीबन दो-तिहाई काम महिलाएं करती हैं लेकिन भूमि के महज 13 फीसदी हिस्से पर ही उनका अधिकार है|
यह सर्वेक्षण महिला किसानो की मांगे और उनकी स्थतियों को समझने के उद्देश्य से किया गया था| इस सर्वेक्षण में 505 महिला किसान शामिल थी जिसमें विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्रों, औरंगाबाद, बीड, हिंगोली, लातूर, नांदेड़, उस्मानाबाद, परभानी, अकोला, अमरावती, वर्धा और यवतमाल के 11 जिलों में महिलाओं को शामिल किया गया था|
‘मकाम’ के राष्ट्रीय सुविधा टीम के सदस्य सीमा कुलकर्णी ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि इस सर्वेक्षण के द्वारा आत्महत्या प्रभावित किसान परिवारों की महिलाओं से उनकी सामाजिक सुरक्षा और वर्तमान हालात को समझने की कोशिश की गई है| आंकड़ों के मुताबिक विदर्भ और मराठवाड़ा से लगभग 20 संगठनों ने इस सर्वेक्षण में भाग लिया था| विदर्भ और मराठवाड़ा से प्रभावित परिवारों के महिला किसानों के संघर्षों और मांगों को उजागर करने के उद्देश्य से ‘मकाम’ ने बुधवार को मुंबई के आज़ाद मैदान में एक प्रतीकात्मक आंदोलन किया था|
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‘मकाम’ ने महाराष्ट्र विधानसभा के चालू शीतकालीन सत्र में इन मुद्दों को उठाए जाने के साथ-साथ विभिन्न पक्षों के विधायकों के लिए प्रश्नों का एक सेट भी तैयार किया है| देश भर में ‘मकाम’ विभिन्न नेटवर्क, अभियान, आंदोलन, संगठन, शोधकर्ता, और किसान नेटवर्क का हिस्सा हैं| बता दें ‘मकाम’ देश भर के 24 राज्यों में सक्रिय है जो महिला किसानों के मुद्दों पर कार्य करता है|
‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो’ के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 1995 से 2015 के बीच महाराष्ट्र में 65 हज़ार किसानों ने आत्महत्या की है| आत्महत्या करने वाले लगभग 90 प्रतिशत किसान पुरुष थे| यह आत्महत्या प्रभावित परिवारों से महिला किसानों की बढ़ती संख्या को दिखाता है|
कुलकर्णी ने बताया कि ‘महाराष्ट्र स्टेट कमिशन फॉर विमेन’ (एमएससीडब्लू) और ‘मकाम’ ने फरवरी और मार्च में नागपुर और औरंगाबाद में आत्महत्या प्रभावित परिवारों से महिला किसानों की सुरक्षा के मुद्दे पर दो कार्यक्रम आयोजित किए थे| इस दौरान महिला प्रतिभागियों ने भूमि और आवास पर महिलाओं के अधिकार जैसे विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की थी| सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे कि क्रेडिट की उपलब्धता, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, संस्थागत क्रेडिट (बैंकों से) तक पहुंचने में बाधाएं, बच्चों की शिक्षा जैसे विषयों पर भी चर्चा की गई थी|
कुलकर्णी ने कहा कि हमारे सर्वेक्षण में पाया गया कि 33 प्रतिशत महिलाओं ने पेंशन योजना के लिए आवेदन जमा नहीं किया है| कम से कम 26 प्रतिशत ने आवेदन जमा किया लेकिन उनकी पेंशन को मंजूरी नहीं दी गई| केवल 34 प्रतिशत महिलाओं की पेंशन अनुमोदित हुई| अपने पति की मृत्यु के बाद 29 प्रतिशत महिलाएं अपने नाम पर भूमि नहीं कर पा रहीं जबकि 43 प्रतिशत महिलाएं अपने घर को अपने नाम नहीं कर पाईं| केवल 52 प्रतिशत महिलाओं के नाम पर स्वतंत्र राशन कार्ड है| कक्षा 1 से बारहवीं कक्षा के 355 बच्चों में से केवल 43 (12 प्रतिशत) बच्चे फीस में रियायतें प्राप्त करने में सक्षम थे और केवल 88 (24 प्रतिशत) किताबों, यूनिफार्म और स्टेशनरी के रूप में भौतिक सहायता प्राप्त है|
सर्वेक्षण के अनुसार कम से कम 69 परिवार ऐसे थे जहां एक या एक से अधिक सदस्यों को सर्जरी से गुजरना पड़ा| इनमें से 34 परिवार यानी 49 प्रतिशत परिवारों को राज्य द्वारा संचालित ‘महात्मा फुले जीवनंदयी आरोग्य योजना’ की जानकारी नहीं थे| मानसिक स्वास्थ्य के लिए ‘प्रेरणा योजना’ के संबंध में केवल 74 (15 प्रतिशत) परिवारों को ही जानकारी थी जबकि केवल 36 (7 प्रतिशत) को ‘प्रेरणा योजना’ के बारे में कोई जानकारी नहीं थी| सर्वेक्षण से मालुम हुआ कि 2015 से 137 परिवारों में एक या एक से अधिक सदस्य मानसिक रोग से पीढीत था जिसमें केवल 83 (61 प्रतिशत) परिवारों को उपचार प्राप्त हुआ|
निष्कर्षों के आधार पर ‘मकाम’ ने सरकार से मांग की है कि पात्रता/गैर-योग्य आत्महत्या के मौजूदा मानदंडों को बदला जाना चाहिए और भुगतान राशि के पांच गुना बढ़ाई जानी चाहिए| इसके साथ ही विधवाओं की पेंशन की राशि कम से कम दोगुनी होनी चाहिए और समय पर पेंशन दी जानी चाहिए| आत्महत्या से प्रभावित परिवारों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा मिलनी चाहिए और आत्महत्या प्रभावित परिवारों से महिलाएं किसी भी प्रकार के आवेदन के बिना उनके नामों में स्वतंत्र राशन कार्ड प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए| इसके अलावा ‘मकाम’ ने यह भी मांगे रखी कि सभी प्रभावित जिलों में तुरंत एक हेल्पलाइन शुरू की जानी चाहिए| साथ ही महिला किसानों के लिए एक विशेष वातावरण बनाया जाना चाहिए जहां वे आसानी से अपने मुद्दे उठा सकते हैं|
(ये लेख इंडियन एक्सप्रेस से साभार है)

