सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा है कि वह सेना में गे-सेक्स की इजाजत
नहीं देंगे क्योंकि सेना रूढ़िवादी सोच को स्वीकार करती है। गुरुवार
उन्होंने कहा कि समलैंगिक संबंधों पर सेना के अपने कानून हैं। बता दें कि
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दे दी है और इसे अपराध की
श्रेणी से बाहर कर दिया है। सेना प्रमुख के इस बयान के बाद विवाद खड़ा हो
सकता है।सुप्रीम कोर्ट ने गत 6 सितंबर के अपने ऐतिहासिक फैसले में
समलैंगिकता को अपराध बताने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को आंशिक
रूप से रद्द कर दिया। संवैधानिक पीठ ने अपने फैसले में कहा कि अन्य लोगों
की तरह एलजीबीटी समुदाय भी समाज का अंग है और उसे भी अन्य की तरह अधिकार
प्राप्त हैं।
उनका कहना है कि सीमाओं पर तैनात सैनिकों और अधिकारियों को उनके परिवार के
बारे में चितिंत नहीं होने दिया जा सकता| सेना के जवानों का आचरण सेना
अधिनियम से संचालित होता है| जनरल रावत ने कहा, ‘सेना में हमें कभी नहीं
लगा कि यह हो सकता है| जो कुछ भी लगता था उसे सेना अधिनियम में डाला गया|
जब सेना अधिनियम बना तो इसके बारे में सुना भी नहीं था| हमने कभी नहीं सोचा
था कि यह होने वाला है| हम इसे कभी अनुमति नहीं देते| इसलिए इसे सेना
अधिनियम में नहीं डाला गया|
उन्होंने कहा मुझे लगता है कि जो कहा जा रहा है या जिस बारे में बात हो रही
है उसे भारतीय सेना में होने की अनुमति नहीं दी जाएगी| हालांकि जनरल रावत
ने कहा कि सेना कानून से ऊपर नहीं है और सुप्रीम कोर्ट देश की सर्वोच्च
न्यायिक संस्था है| दरअसल, सेना व्यभिचार के मामलों से जूझ रही है और
आरोपियों को अक्सर कोर्ट मार्शल का सामना करना पड़ता है| सेना की भाषा में
व्यभिचार को ‘साथी अधिकारी की पत्नी का स्नेह पाना’ के रूप में परिभाषित
किया गया है| सेना प्रमुख ने 15 जनवरी को सेना दिवस से पहले संवाददाता
सम्मेलन में कहा, ‘हम देश के कानून से परे नहीं हैं| लेकिन जब आप भारतीय
सेना में शामिल होते हैं तो आपके पास जो अधिकार हैं वे हमारे पास नहीं होते
हैं. कुछ चीजों में अंतर है|

