आज भारत डिजिटल युग में प्रवेश कर लिया है| इसके साथ ही मशीनी युग में जिस रफ़्तार से ‘रोबोट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ का चलन बढ़ रहा है इसका असर मानव कौशल से जुड़ी नौकरियों पर भी पड़ रहा है|
एक अध्ययन के मुताबिक यह बात सामनें आई है कि 2025 तक कार्यस्थलों के आधे से अधिक कार्य मशीनों द्वारा किए जाने लगेंगे|
इसे लेकर दो तरह की बातें निकल आ रही है| एक तरफ जहाँ कार्यस्थलों में मशीनों के इस्तेमाल से नौकरियां जाएंगी, वहीँ दूसरी ओर मशीनों के आने से नए रोजगार पैदा होंगे| यह बात कही जा रही है कि ‘रोबोट क्रांति’ से अगले पांच साल में 5.8 करोड़ नई नौकरियां का सृजन होगा|
दी फ्यूचर ऑफ जॉब्स 2018 की रिपोर्ट में बताया गया है कि कार्यस्थलों में रोबोटों को अपनाने से मनुष्यों के काम करने के तरीकों में भारी बदलाव आएंगे| एक सर्वेक्षण में शामिल कंपनियों ने कहा कि वर्तमान में कुल कार्य का 71 प्रतिशत मनुष्य करते हैं जबकि 29 प्रतिशत मशीनें| यह कहा जा रहा है कि वर्ष 2022 में मनुष्यों की हिस्सेदारी कम होकर 58 प्रतिशत पर आ जाएगी तथा मशीनों द्वारा 42 प्रतिशत कार्य किए जाने लगेंगे| वहीँ वर्ष 2025 तक मशीन 52 प्रतिशत कार्य करने लगेंगी|
जहाँ एक ओर कार्यस्थलों में मशीनों को अपनाने से नए रोजगार पैदा होने की उम्मीद जताई जा रही है वहीँ देश के रोजगार कम होने की आशंका पर भी कई सवाल उठ रहें है|
वर्ष 1980 के दशक से विभिन्न क्षेत्रों में रोबोट और मशीनों के बढ़ते इस्तेमाल से आने वाले समय में नौकरियों पर खतरें की आशंकाएं जताई जाती रहीं है| पिछले दो दशक में विकसित देशों में श्रम बाज़ार में व्यापक बदलाओं देखे गए है, जिसमें रोबोट व आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का बड़ा योगदान रहा|
दावोस में हुए वर्ल्ड इकॉनमी फोरम में बताया गया था, ‘रोबोट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते चलन के मद्देनाजर यह आशंका जताई गयी थी कि अगले पांच सालों के दौरान दुनिया के 15 विकसित देशों में करीब 51 लाख नौकरियां कम हो सकती हैं|’
इससे पहले संयुक्त राष्ट्र का अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन इस संदर्भ में चिंता जता चुका है| इस संगठन का अनुमान है कि वर्ष 2020 तक रोजगार के अवसरों में वैश्विक स्तर पर 110 लाख तक की कमी आ सकती है|
पर्सनल और स्ट्रेटजिक एग्जीक्यूटिव्स द्वारा किए गए एक वैश्विक सर्वेक्षण के आधार पर विशेषज्ञों ने आकलन किया है कि रोगजार के अवसरों में होने वाली कमी के कारणों में से करीब दो-तिहाई ऑफिस व एडमिनिस्ट्रेटिव सेक्टर्स में स्मार्ट मशीनों से काम लेने के चलते है| चिंता की बात यह कि ऑफिस के रोजमर्रा के कार्यों को निबटाने के लिए मशीनों का इस्तेमाल सबसे ज्यादा बढ़ेगा|
विकसित देशों से रोबोट और मशीन के चलन में बढ़ोतरी हुई| इंसानों की जगह मशीनों ने ले लीं| उदहारण के तौर पर, वर्ष 1900 में अमेरिका में 21 मिलियन घोड़े थे, जो 1960 में घट कर महज 3 मिलियन रह गए| इससे कोई भूखा नहीं मरा, लेकिन उसकी जगह दूसरा विकल्प मौजूद हो चूका था|
भारत में रोबोट ऑटोमेशन का असर
भारत आज भी विकसित देशों से रोबोटिक ऑटोमेशन के मामलें में पीछे है| यूएसए, यूके, जापान, जर्मनी, कोरिया एवं चीन में रोबोट और मशीनों का अधिक चलन है जिसमें भारत आज भी इन देशो के मुकाबले बराबर नहीं है|
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रोबोटिक्स के अनुसार वर्ष 2014 में भारत में 2100 औद्योगिक रोबोट बच गए थे| वर्ष 2015 में भारत में बहुउद्देशीय संचालकीय औद्योगिक रोबोट की संख्या 14300 थी, वर्ष 2018 तक 27100 होने की संभावना जताई गई थी|
भारत के लिहाज से इन रोबोट को रखना काफी खर्चीला है| इसके साथ ही भारतीय घरों की जटिल संरचना भी रोबोट के विकास में बाधक बनेगा| वैसे भारत में रोबोटिक्स का ज्यादातर इस्तेमाल औटोमेटिंग वेयरहाउससिंग एवं लॉजिस्टिक फील्ड में किया जाता है| इसके अलावा रक्षा क्षेत्र में भी इसका प्रयोग देखा जा रहा है|
देश में टाटा मोटर्स भी ऑटोमोबाइल क्षेत्र में उत्पादन के लिए औद्योगिक रोबोटिक्स एवं ऑटोमेशन का उपयोग करती है| साथ ही टाटा मोटर्स ने पुणे प्लांट में लगभग 100 रोबोटिक्स स्थापित किया है| बावजूद इसके भविष्य में भारत में रोबोटिक्स विकास से जुड़ी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है|
यह बात ज़रुर है कि देश में ऑटोमेशन और डिजिटलाइजेशन से लोगों में कौशल में गुणवत्ता बढ़ेगी लेकिन इसके पीछे एक और पहलु भी है जिसमें लोगों की जगह मशीनों ने ले लीं है|
वर्ष 2016 में सॉफ्टवेयर सेवा प्रदाता कंपनी विप्रो ने 12,000 इंजीनियरों को दुसरे प्रोजेक्ट में लगाने की ज़रूरत पड़ी क्योंकि वे जो काम करते थे, वे सॉफ्टवेयर से ही होने लगे।
वहीँ इन्फोसिस ने भी करीब 8,500 लोगों के साथ भी यही किया। इसके साथ ही भारतीय वाहन उद्योग में भी फक्टारियों में नौकरियां कम होने लगी हैं क्योंकि मानव श्रम की जगह अब मशीनों का प्रयोग अधिक किया जा रहा है|
पिछले वर्ष मैकिंजी ऐंड कंपनी के एक अध्ययन में कहा गया था कि भारत में 52 प्रतिशत नौकरियां ऑटोमेशन के हवाले हो सकती हैं या ऐसा होने की संभावना है।
एचआर विशेषज्ञों का कहना है कि इससे करीब 23.3 करोड़ नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं। ‘एचएफएस इंडिया’ के एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2021 तक भारत में 6.40 लाख नौकरियां आईटी ऑटोमेशन की भेंट चढ़ जाएंगी।
इस बारे में पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने ‘द वर्ल्ड इन 2050’ के विमोचन के मौके पर कहा था कि ऑटोमेशन और रोबोटिक्स से सबसे ज्यादा नुकसान भारत जैसे देशों में मध्यम वर्ग को होगा, जिन्हें अब तक इसका सबसे ज्यादा फाएदा हो रहा है|
भारत में डिजिटलाईजेशन के प्रवेश से कार्यस्थलों में काम आसान हो गए तो वहीँ कार्यों में पहले के मुकाबले ट्रांसपेरेंसी आई, लेकिन डिजिटल के बढ़ते प्रयोग से इसके नकरात्मक प्रभाव भी पड़े, जिसने लोगों को मानसिक और शारीरिक रूप से आलसी और कमज़ोर बना दिया| इसलिए भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह कहना कि रोबोट और आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस के प्रवेश से भविष्य में सकरात्मक असर देखे जायेंगे, अभी यह जल्दबाजी होगी|

