विधानसभा चुनाव के बाद तीन राज्यों में मुख्यमंत्री के पद को लेकर सस्पेंस अब ख़त्म होता नज़र आ रहा है| राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के लिए अशोक गहलोत के नाम पर मुहर लग गई है| वहीँ, सचिन पायलट डिप्टी सीएम के रूप में पद सभालेंगे| मालुम हो मध्यप्रदेश में भी मुख्यमंत्री पद के लिए कमलनाथ को नए सीएम के रूप में होंगे लेकिन छत्तीसगढ़ में अभी भी मुख्यमंत्री पद पर फैसला नहीं सुनाया गया है| खबर है कि 15 दिसंबर को विधायक दल की बैठक के बाद नए मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा होगी|
सीएम अशोक गहलोत का सियासी सफर
अशोक गहलोत की छात्र जीवन से ही राजनीति में दिलचस्पी थी| इस दौरान वह समाजसेवा में भी सक्रिय हो चुके थे| सियासत में उतरने की शुरुआत उन्होंने कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से की| 1973 से 1979 में वह एनएसयूआई राजस्थान के अध्यक्ष रहे| गहलोत 7वीं लोकसभा के लिए 1980 में पहली बार जोधपुर से कांग्रेस के टिकट पर जीतकर संसद पहुंचे| इसके बाद जोधपुर से ही 8वीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं लोकसभा में चुनाव जीता| यहां से लगातार शानदार प्रदर्शन का इनाम उन्हें केंद्रीय मंत्री बनने के तौर पर मिला| गहलोत को इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पी.वी.नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में जगह मिली| इसके अलावा वह दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रहे| पहली बार 1 दिसंबर 1998 को मुख्यमंत्री बने और पांच साल तक कांग्रेस सरकार चलाई| इसके बाद 2008 में जब कांग्रेस को दोबारा सत्ता मिली तो वह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने|
गहलोत की छवि बेदाग है और इसे उनके विरोधी भी मानते हैं| अपनी छवि को लेकर वह बेहद सजग भी रहते हैं| शायद यही वजह है कि आज तक उनपर कोई बड़ा आरोप नहीं लगा| विवादित बयानों से भी वह कोसों दूर रहते हैं| छवि को लेकर वह किस कदर अलर्ट हैं इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि उन्होंने अपने बेटे के प्रदेश कांग्रेस कमेटी में शामिल होने का तब तक इंतजार किया जब तक कि उनके धुर विरोधी सी पी जोशी ने नामांकित नहीं किया| यह वही सीपी जोशी जो 2008 में नाथद्वारा से मात्र एक से हार गए थे और सीएम बनते बनते रह गए थे| तब उनकी जगह अशोक गहलोत को सीएम बनाया गया था|
प्रबल दावेदार
गहलोत ने इस बार भी अपनी परंपरागत सीट सरदारपुरा से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की| इस जीत के बाद सीएम उम्मीदवार पर मामला कुछ समय के लिए उलझ गया लेकिन पार्टी ने उनपर ही भरोसा दिखाया| राजस्थान की राजनीति में वह सबसे ज्यादा अनुभवी हैं, उन्हें दो बार सरकार चलाने का अनुभव है| यहीं अनुभव फिर उनके काम आया| इसके अलावा वह किसी तरह के विवाद में नहीं घिरे हैं| गांधी परिवार के भी वह करीबी हैं| राहुल गांधी से उनकी खूब बनती है|

