‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि भाजपा को डीडी न्यूज और उसके क्षेत्रीय चैनलों पर लगभग 160 घंटे का ‘एयरटाइम कवरेज’ मिला है जबकि कांग्रेस को इसका आधा हिस्सा यानी कि करीब 80 घंटा ही कवरेज मिला है|
रिपोर्ट के मुताबिक, डीडी न्यूज द्वारा पांच अप्रैल को चुनाव आयोग (ईसी) के साथ साझा की गई सभी राजनीतिक दलों को प्रदान किए गए एयरटाइम/कवरेज पर एक रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस को करीब 80 घंटे का कवरेज मिला है जबकि माकपा आठ घंटे के कवरेज के साथ तीसरे नंबर पर है|
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इसे लेकर चुनाव योग ने सुचना एवं प्रसारण मंत्रालय को पत्र भी लिखा है जिसमे आयोग ने इसकी कड़ी निंदा की है| पत्र में लिखा गया, ‘हम चाहते हैं कि आप (सचिव) डीडी न्यूज चैनल को किसी दल को खास तवज्जो देने अथवा किसी पार्टी के पक्ष में असमान एयरटाइम कवरेज देने से परहेज करने के निर्देश दें और सभी राजनीतिक दलों की गतिविधियों की संतुलित कवरेज देने को कहें|’
उल्लेखनीय है कि इससे पहले आयोग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मैं भी चौकीदार’ कार्यक्रम को करीब एक घंटे तक दिखाने के लिए हाल ही में डीडी न्यूज को कारण बताओ नोटिस भेजा था| इस प्रसारण के बाद विपक्षी दलों ने पक्षपात का आरोप लगाते हुए इसकी शिकायत की थी|
मीडिया के कामकाज पर क्यों उठ रहे सवाल?
आज कुछ मीडिया संस्थानों के कामकाज को लेकर सवाल उठ रहे है| जहाँ एक ओर समाज में जागरूकता और सरकार की क्रियाकलाप में निगरानी मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका होती है वहीँ, आज कुछ मीडिया घराने सरकार की आवाज़ बनकर कार्य कर रही है और उनकी असफल नीतियों को छुपाने में योगदान दे रही है जो की मीडिया के नैतिक मूल्यों के विरुद्ध है|
आज ना केवल सरकारी बल्कि निजी संस्था की मीडिया भी अब जोर-शोर से सत्तारूढ़ सरकार के लिए काम कर कर रही है, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया| आज वे ही न्यूज़ ऐंकर चैनलों में चल रहें है जो झूठ का साथ देकर सरकार की छवि को बढ़-चढ़ा कर दिखाते है| इन दिनों इन पत्रकारों का काम ही है कि झूठ को इस प्रकार फैलाओं कि वह सच लगने लगे|
उदहारण के तौर पर पुलमावा में 42 भारतीय सैनिकों की अतांकवादियों के द्वारा हत्या कर दी गई व उसके बाद भारतीय सेना की और से बालाकोट एयर स्ट्राइक किया गया| सवाल तब खड़ा हुआ जब रात की इस घटना को लेकर एक फेक सूचना प्रसारित की गई कि जिसमे 350 आतंकवादी मारे जाने की खबर दी गई| मीडिया ने इसे प्रमाणित करने के लिये एक वीडियो गेम्स का सहारा लिया और उसे इस प्रकार प्रसारित व प्रचारित किया मानो वही वीडियो गेम सच्ची घटना की तस्वीर है|
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ऐसे में पत्रकारिता कहां है?
आज मीडिया से खबर गायब है| नौकरी और महंगाई गायब है | किसान और गरीबी गायब है | दलित और मुस्सलमान गायब है | कला धन और भ्रष्टाचार गायब है | उसकी जगह मनोरंजन, सरकार की चापलूसी ने ले ली है| एजेंडा और एंगल पहले से तय होता है| आज विषय और वक्ताओं का चयन मालिक से पूछ कर किया जाता है| मालिक सत्तारुढ़ दल से सलाह मशवरा करता रहता है कि दिखाना क्या है? ऐसे में पत्रकारिता कहां है?
अब पत्रकारिता का दूसरा नाम हिन्दू मुस्लिम विवाद का बढ़ावा देना है | सर्कार का सहयोगी बन कर समाज और देश के अहम् मुद्दों से लोगों का धयान हटाना है| राजनीति के अस्तर को और निचा गिरना है और टीवी स्टूडियो में जन की बात न कर के, जनसंहार की बात करना है| ऐसे में पत्रकारिता कहां है?