
उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर में गोकशी के शक में हुई हिंसा की घटना शर्मशार कर देने वाली है| इस हिंसा में ईमानदार पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या हो गई| यह घटना इस लिहाज़ से भी शर्मनाक है क्यूंकि गाय के नाम पर देश भर में बढ़ रही हिंसा और हत्या का ज़िम्मेदार कही न कहीं मीडिया भी है जहाँ न्यूज़ चनलों पर दिन रात हिन्दू-मुस्लिम डिबेट दिखा कर नफरत की आग भड़काई जा रही है| देश के असल मुद्दे से दूर इन साढ़े चार वर्षो में केवल गाय, लव जिहाद, राम मंदिर आंदोलन को प्रमुखता से दिखाया गया है और यही मुद्दे सरकार की नाकामियों पर पर्दा डालने का काम किया है|
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हाल ही में कोबरापोस्ट ने चौंका देने वाले स्टिंग ऑपरेशन का खुलासा किया है जिसमें यह साफ़ सुना जा सकता है, साथ ही यह भी समझा जा सकता है कि शासन किस प्रकार से पुलिस के कामकाज में हस्तक्षेप और दबाव बनाती है| कोबरापोस्ट का कहना है कि उसका यह खुलासा उनकी उस तहक़ीक़ात का हिस्सा है जो उन्होंने कई महीने पहले देश में गाय के नाम पर हो रही हत्याओं पर शुरू की थी| इसके लिए उनके रिपोर्टर उमेश पाटिल और असित दीक्षित ने फिल्म रिसर्चर के रूप में सुबोध कुमार सिंह से मुलाक़ात की थी| किसी कारण कोबरापोस्ट की वह तहक़ीक़ात पूरी न हो सकी| कोबरा पोस्ट का कहना है कि इस ताजा खुलासे के पीछे एकमात्र उद्देश्य है कि सुबोध कुमार सिंह के साथ हुई नाइंसाफी की सच्चाई जग-जाहिर हो सके|
अख़लाक़ हत्याकांड के जांच अधिकारी थे सुबोध कुमार सिंह
गौरतलब है कि वर्ष 2015 में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह ग्रेटर नोएडा के थाना प्रभारी थे| इस दौरान दादरी में हुए अख़लाक़ हत्याकांड में जांच अधिकारी और गवाह नंबर- 7 थे| कोबरापोस्ट के खुलासे से पता चलता है कि सुबोध कुमार सिंह ने 28 सितंबर 2015 से 9 नवंबर 2015 तक इस मामले की जांच की थी लेकिन सुबोध कुमार सिंह का तबादला बनारस कर दिया गया| उत्तरप्रदेश पुलिस प्रशसन का यह फैसला चौकाने वाला था| आखिर क्यों मामले के बीच में ही जांच अधिकारी का तबादला किया गया? इस दौरान कोबरापोस्ट ने तत्कालीन सपा सरकार पर गंभीर आरोप लगाए है| वहीँ, इस स्टिंग ऑपरेशन से यह बात भी साबित होती है कि सुबोध कुमार सिंह एक ईमानदार पुलिस अफसर थे|
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मीट के सैंपल का दबाव था इंस्पेक्टर सुबोध पर
जब अख़लाक़ को गौकशी के शक में मार दिया गया था तब इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह इस केस में जांच अधिकारी थे लेकिन महज 40 दिन के भीतर ही उनका तबादला कर दिया गया जो चौकाने वाला था| राज्य पशु चिकित्सा विभाग द्वारा जारी क्रिमनली रिपोर्ट में मौक़ा-ए-वारदात से जब्त किए गए मीट को मटन बताया जाना और मई 2016 में मथुरा फॉरेंसिक साइंस लैब द्वारा मीट को गौ मांस बताया जाना, यह इस बात का संकेत है कि जांच को प्रभवित कर मामले को मोड़ने की कोशिश शासन-प्रशासन की ओर से की गई थी| कोबरापोस्ट के साथ हुई एक मुलाकात में सुबोध कुमार सिंह ने स्पष्टरूप से यह खुलासा किया है कि सरकार और उसके वरिष्ठ अधिकारियों ने इस मामले को मोड़ने के लिए उन पर दबाव बनाया था| जब उन्होंने झुकने से इंकार कर दिया तो उनका तबादला कर दिया गया|

