
छत्तीसगढ़ को स्वास्थ्य सुविधा के क्षेत्र में दो राष्ट्रीय पुरूस्कार मिल चूका है, साथ ही माना जाता है कि भारत के सभी राज्यों में छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य सुविधा की दिशा में अग्रणी भूमिका निभा रहा है|
छत्तीसगढ़ में बीते 25 दिनों से 10 हज़ार से ज्यादा स्वास्थ्य कर्मचारी अनिश्चिकालीन हड़ताल पर है| इस कारण प्रदेश के 5200 शासकीय अस्पतालों का काम पूरी तरह ठप पड़ा हुआ है| यह आन्दोलन स्वास्थ्य संयोजक संघ द्वारा 1 अगस्त से शुरू किया गया है, जो अब तक जारी है| वे सरकार से अपनी 5 सूत्रीय मांगों को लेकर हड़ताल पर बैठे है|
इनकी 5 प्रमुख मांगे:
- वेतन विसंगति दूर की जाए।
- ग्रामीण स्वास्थ्य संयोजक की पदोन्नति सूची प्रतिवर्ष जारी की जाए।
- ग्रामीण स्वास्थ्य संयोजक के पद को तकनीकी पद घोषित किया जाए।
- आंदोलन के दौरान अवैतनिक अवकाश को वैतनिक अवकाश घोषित किया जाए।
- उप-स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ महिला कर्मचारियों को सुरक्षा एवं सुविधा प्रदान की जाए।
बारह वर्षों से वेतन विसंगति से जूझ रहे कर्मचारी
स्वास्थ्य संयोजक संघ का कहना है कि वे पिछले 12 वर्षों से वेतन विसंगति की मार से जूझ रहें है| इन्हें मिलने वाला वेतन इतना पर्याप्त नहीं होता जिससे वे घर चला सकें|
वेतन विसंगति को लेकर शासन से इस संबंध में कई बार बात की है परन्तु इस पर कोई करवाई नहीं की गई| इससे पहले भी संघ द्वारा वर्ष 2015 को वेतन विसंगति की मांग को लेकर प्रदर्शन हुआ था, लेकिन शासन की ओर से अब तक कोई पहल नहीं हुई|
ग्रामीणों के लिए संकट की घड़ी
स्वास्थ्य कर्मचारियों की जारी हड़ताल के कारण सबसे अधिक गाँव से आए गरीब मरीज़ प्रभावित हो रहे है| जिले में संचालित 169 उप-स्वास्थ्य केन्द्रों समेत 25 प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर पूरे ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का स्वास्थ्य सुविधा देने का भार है।
स्वास्थ्य विभाग की रीढ़ व नींव भी ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं हैं, क्योंकि ग्रामीण मरीज़ों को मौसमी बीमारियों के इलाज व दवा के लिए इन्हीं अस्पताल पर निर्भर रहना पड़ता है।
रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य सुविधा का हाल
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य सुविधा का हाल कैग रिपोर्ट से समझा जा सकता है| 31 मार्च को विधानसभा में पेश हुई कैग रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए| रिपोर्ट के मुताबिक सरकार बजट का 50 फीसदी भी अब तक खर्च नहीं कर सकी है|
रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने 1160 करोड़ रुपए का बजट तय किया था, जिसमें से महज 416 करोड़ रुपए ही खर्च कर पाई| इसकी
वजह से मेडिकल कॉलेज स्टाफ, उपकरण में कमी हुई है|
कैग रिपोर्ट के आधार पर प्रदेश के 17000 लोगों पर एक डॉक्टर है, जबकि सरकार हमेशा से दावा करती रही है कि प्रदेश में 1000 लोगों पर एक डॉक्टर हो| वहीं प्रदेश में 1 लाख की आबादी पर सिर्फ 21 नर्स हैं|
सरकार के पास कोई प्लान नहीं
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य क्षेत्र की हालत सुधारने के लिए कोई प्लान नहीं है| प्रदेश में अभी भी डॉक्टर्स की भारी कमी है| राज्य में एलोपेथी के महज 1642 डॉक्टर हैं जबकि प्रदेश में 25500 डॉक्टरों की ज़रूरत है|
रिपोर्ट में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ सरकार अधोसंरचना और सुविधाएं मुहैया कराने में नाकाम रही है| इसके अलावा राज्य सरकार प्रदेश में सुपर स्पेशियलिटी कोर्स शुरू करने में भी फेल रही है|

