
विधानसभा चुनाव परिणाम ने इस बार सबको चौका दिया| जहाँ कांग्रेस ने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल की वहीँ भाजपा के लिए यह सबसे बड़ी हार है| मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद भाजपा सत्ता से बाहर हुई, वहीँ राजस्थान में भी कांग्रेस की मजबूत वापसी हुई|
अब राज्यों के रिजल्ट के बाद 2019 के आम चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो गई है| मोदी सरकार का कार्यकाल 31 मई को ख़त्म हो रहा है| इससे पहले 17वीं लोकसभा का गठन होना है| 90 से 95 दिनों के भीतर चुनाव की तारीखों की घोषणा हो सकती है|
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कहाँ बनी किसकी सरकार?
राजस्थान– 199 सीट (बहुमत 100), वोटिंग: 72%
राजस्थान में कांग्रेस मजबूत जीत हासिल कर सत्ता में आ रही है| राजस्थान में 199 सीटों के परिणाम घोषित हो चुके हैं| बीजेपी को यहां 73 सीटें मिली हैं| वहीं, कांग्रेस 99 सीटें जीतने में कामयाब रही है| राज्य में बसपा को 6 सीटें मिली हैं| 13 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है| पार्टी की हार के बाद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपना इस्तीफा राज्यपाल कल्याण सिंह को सौंप दिया| वसुंधरा राजे ने हालांकि झालरापाटन सीट से कांग्रेस उम्मीदवार मानवेंद्र सिंह को 34980 मतों से हरा दिया|
मध्यप्रदेश– 230 सीट (बहुमत 116), वोटिंग: 66%
मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर आई है| बता दें, नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब कांग्रेस ने सीधी लड़ाई में बीजेपी को मात दी है| मध्यप्रदेश में मुकाबला शुरुआत से ही दिलचस्प रहा| वहां कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी आगे होती दिखी| हालांकि अब स्थिति साफ हो चुकी है| चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक मध्यप्रदेश में 230 में से 114 सीटें कांग्रेस, 109 सीटें भाजपा, दो सीटें बसपा, एक सीट समाजवादी पार्टी और चार सीटों पर निर्दलीय उम्मदीवारों ने कब्जा कर लिया है|
छत्तीसगढ़– 90 सीट (बहुमत 46) वोटिंग: 76%
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बन रही है| 65 प्लस का दावा करने वाली भाजपा 15 सीटों पर सिमट गयी| 90 सीटों वाली छत्तीसगढ़ विधानसभा में 89 के नतीजे आ चुके हैं| 67 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है| वहीं, बीजेपी के खाते में महज 15 सीटें आई हैं|
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तेलंगाना– 119 सीट (बहुमत 60) वोटिंग: 67%
तेलंगाना में सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्रया समिति (टीआरएस) ने दो तिहाई बहुमत हासिल किया है| पार्टी ने 88 सीटों पर जीत हासिल की है| देश के इस सबसे युवा राज्य में टीआरएस दूसरी बार सरकार बनाएगी| यहां कांग्रेस के खाते में 19 सीटें आईं हैं और यहां भी बीजेपी को महज 1 सीट से संतोष करना पड़ा| टीआरएस का समर्थन करने वाली असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली एआईएमआईएम ने 7 सीटें जीती हैं| टीआरएस अध्यक्ष और कार्यवाहक मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने चुनावों में अपनी पार्टी का प्रभावशाली तरीके से नेतृत्व किया और खुद गजवेल सीट पर 57,321 मतों के अंतर से चुनाव जीता|
मिजोरम – 40 सीट (बहुमत 21) वोटिंग– 81%
मिजोरम में 40 में से 40 सीटों के नतीजे आ चुके हैं| मिजोरम की 40 सदस्यीय विधानसभा में 26 सीटें जीतकर मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने एक दशक बाद सत्ता में वापसी की है| इसके साथ ही कांग्रेस पूर्वोत्तर में अपना अंतिम गढ़ भी हार गई| साल 2013 विधानसभा चुनाव में एमएनएफ को केवल 5 सीटें मिली थीं जबकि कांग्रेस ने यहां 34 सीटों पर जीत दर्ज की थी| इस बार सत्तारूढ़ कांग्रेस यहां केवल पांच सीटों पर ही सिमट गई|
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क्यों हुई भाजपा की हार?
एससी-एसटी एक्ट संशोधन- एससी-एसटी एक्ट की वजह से स्वर्ण वोटर भाजपा से नाराज़ थे| मध्यप्रदेश की बात करें तो कांग्रेस ने 2013 में एससी के लिए रिज़र्व 35 में से सिर्फ 4 सीटें जीती थी| इस बार 17 सीटें जीतीं है| एससी एट्रोसिटी एक्ट में संसोधन और फिर पोद्दोनती में आरक्षण के मुद्दे पर स्वर्ण आन्दोलन खड़ा हो गया| एससी सीटों पर यह पिछले पांच चुनावों में सबसे बड़ी हार है| उधर राजस्थान में एससी-एसटी की 29 सीटें कम हुई है| 2013 में भाजपा ने एससी-एसटी के लिए तय 58 सीटें में से 49 सीटें जीती थी| इस बार 31 सीटें जीती है| एससी-एसटी एक्ट में केंद्र द्वारा लगाए गए बिल से स्वर्ण वोटर नाराज़ थे|
किसान आनोलन- विगत दो तीन सालों में किसान एक बड़ी ताकत के रूप में उभरकर सामने आए हैं जो राजनीती को प्रभावित करने लगी थी| इस चुनाव में किसानों का व्यापक प्रभाव देखा गया है| यदि सत्ता पक्ष में हार हुई है तो उनमे से एक प्रभावी कारण किसानों की नाराजगी भी है|
कांग्रेस नेताओं की एकता
मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने चुनाव से पहले कमलनाथ और ज्योतिरादित्व सिंधिया को समान रूप से पेश किया| कमलनाथ के पास पार्टी के प्रदेश की कमान थी तो सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाकर तालमेल बैठाने की कोशिश की गई| इसके बाद भी राहुल की अधिकांश रैली में दोनों नेता साथ साथ दिखे| दोनों ने कभी भी एक दूसरे के खिलाफ बयान नहीं दिया| टिकट वितरण के पहले दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच मनमुटाव की खबरें जरूर आई लेकिन दोनों ने इसे एक सिरे से नाकार दिया| इसके बाद दोनों की ओर खुलकर कोई बयानबाजी नहीं हुई|
एंटी इंकंबेंसी पर फोकस
कांग्रेस को इस बात का आभास था कि 15 साल से सत्ता में रही भाजपा की कमियां अगर बेहतर तरीके से उठाया जाए तो सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने में कामयाबी मिल सकती है| यहीं कारण रहा कि राहुल गांधी अपनी हर रैली में जहां प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधने के बाद शिवराज सिंह सरकार की कमियां जरूर गिना रहे थे| कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी रैलियों में शिवराज सरकार पर जमकर हमला बोलते थे। कांग्रेस ने एंटी इंकंबेंसी को ही मुख्य हथियार बनाया|

