
उन्होंने 28 सितम्बर 2015 से 9 नवम्बर 2015 तक मामले की जांच की थी हालांकि जांच के दौरान ही उनका वाराणसी तबादला कर दिया गया था| उनके तबादले के बाद अखलाक हत्याकांड में दूसरे जांच अधिकारी ने मार्च 2016 में चार्जशीट दाखिल की थी| मोहम्मद अखलाक जब मॉब लिचिंग का शिकार हुए थे, उस दौरान सुबोध वहां के थाने में तैनात थे। इधर बुलंदशहर कांड में मुख्य आरोपी योगेश राज अब भी फ़रार है| योगेश राज का लिंक बजरंग दल से बताया जा रहा है| भीड़ की हिंसा के मामले में 27 लोगों को नामज़द किया गया है| इन पर 17 धाराओं में मुक़दमा दर्ज किया गया है| 50-60 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ भी मामला दर्ज किया है| पुलिस की छह टीमें कई जगहों पर छापेमारी कर रही हैं|
अखलाक के भाई जान मोहम्मद का कहना है जिस वक्त उनके भाई के साथ मॉब लिंचिंग हुई थी उस समय सुबोध कुमार घटनास्थल पर पहुंचने वाले पहले पुलिसकर्मी थे। जान मोहम्मद का कहना है कि उन्हें सुबोध कुमार के उग्र भीड़ के शिकार होने का बेहद दुख है। उन्होंने बताया कि सुबोध कुमार ही अपनी जीप में घायल अखलाक को अस्पताल लेकर गए थे और वो इस केस में पहले जांच अधिकारी थे। जान मोहम्मद के मुताबिक बिसाहड़ा में बीफ के शक में अखलाक की 28 सितंबर 2015 की रात पीट–पीटकर हत्या कर दी गई थी। इस मामले में 18 लोगों को आरोपी बनाया गया था। उन्होंने बताया कि सुबोध कुमार बेहद संवेदनशील होने के साथ जांच को लेकर उनका रवैया बेहद सहयोगी था। उन्होंने बताया कि बाद में सुबोध कुमार का तबादला बनारस फिर वृंदावन और उसके बाद वे स्याना थाने में एसओ बनाए गए। अखलाक मामले में सुबोध के बाद प्रदीप कुमार और फिर रवींद्र राठी जांच अधिकारी बने।
एनसीआरबी में शामिल होगा मॉब लिंचिंग
वहीं मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए सरकार भी अब मॉब लिंचिंग का डाटा अलग से रखने की तैयारी कर रही है। सरकार जल्द ही 2017 के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो में इसे शामिल करेगी और जल्द ही इसका ऐलान भी करेगी। सरकारी सूत्रों के मुताबिक जुलाई 2017 से सरकार के पास यह प्रस्ताव लंबित था। जान मोहम्मद ने बताया कि मॉब लिंचिंग को लेकर एनसीआरबी का डेटा अलग से बनाने को लेकर कुछ होने वाला नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जरूरी है कि ऐसी घटनाओं पर पूर्णतया अंकुश लगे। सरकार को चाहिए कि वह सख्त कानून बना कर लाए और इसे सख्ती से लागू करे। गौरतलब है कि दिल्ली के पास उत्तर प्रदेश में दादरी के बिलाहदा गांव में गौमांस के नाम पर उग्र भीड़ ने वायुसेना कर्मी के 50 वर्षीय पिता की पीट–पीटकर इसलिए हत्या कर दी। मोहम्मद अखलाक और उसके बेटे को गांववाले घर से बाहर घसीटकर लाए और उन्हें ईंटों से जमकर पीटा, जिसके बाद अखलाक की मौत हो गई, जबकि उसका बेटा गंभीर रूप से घायल हो गया था।
यह कोई पहली घटना नहीं है| मार्च 2013 में प्रतापगढ़ के डीएसपी ज़ियाउल हक़ को इसी तरह गांव वालों ने घेर कर मार दिया| मुख्य आरोपी का पता तक नहीं चला| जून 2016 में मथुरा में एसपी मुकुल द्विवेदी भी इसी तरह घेरकर मार दिए गए| 2017 में नई सरकार आने के बाद न जाने कितने पुलिस वालों को मारने की घटना सामने आई थी| नेता खुलेआम थानेदारों को लतियाने जूतियाने लगे थे| कई वीडियो सामने आए मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई, इसका पता तक नहीं चला| बुलंदशहर हिंसा मामले में शहीद सुबोध सिंह के बेटे अभिषेक ने कहा, ‘मेरे पिता मुझे अच्छा नागरिक बनाना चाहते थे जो धर्म के नाम पर समाज में हिंसा न फैलाए, आज हिंदू–मुस्लिम के झगड़े में मेरे पिता ने अपनी गंवाई, कल किसी और के पिता की जान जाएगी| वहीं, सुबोध सिंह की बहन ने कहा कि मेरे भाई अखलाक हत्या के मामले की जांच कर रहा था और इसी वजह से उनकी हत्या हुई है| यह पुलिस की साजिश है| उन्हें शहीद घोषित करना चाहिए और मेमोरियल बनाया जाना चाहिए| हमें पैसे नहीं चाहिए| सीएम केवल गाय, गाय गाय करते हैं|
अब ज़रा अंदाजा कीजिए कि हमने आसपास कैसी भीड़ बना दी है? हर तरफ तैयार खड़ी है जो ज़रा सी अफवाह की चिंगारी पर किसी को घेरकर मार सकती है| सांप्रदायिक बातों से भरते–भरते एक नागरिक को मशीन में बदल दिया जाता है जो खुद अपने स्तर पर हिंसा को अंजाम दे| जिसके बाद हिंसा की जवाबदेही किसी नेता पर नहीं आए| पहले की तरह किसी पार्टी या मुख्यमंत्री पर न आए| आप देखेंगे कि इस हिंसा की ज़िम्मेदारी किसी पर नहीं आएगी| पुलिस जब दूसरों के मारे जाने पर इस भीड़ को पकड़ नहीं पाई तो अपने साथी की हत्या के इतने आरोपों को कैसे सज़ा तक पहुंचा पाएगी| पिछले आठ वर्षों यानी वर्ष 2010 से वर्ष 2017 तक, पशु से जुड़े मुद्दों पर होने वाली 51 फीसदी हिंसा में निशाने पर मुसलमान रहे हैं। इन्हीं मुद्दों पर 63 घटनाओं में मारे गए 28 भारतीयों में से 86 फीसदी मुसलमान हैं। लेकिन अब ये भीड़ इस कदर खून की प्यासी हो गयी है की हिन्दू और मुस्लमान एक ही नज़र से देखना शुरू कर दिया है| इनमें से कम से कम 97 फीसदी हमले, नरेंद्र मोदी के मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने और देश की सत्ता संभालने के बाद हुए। यहां यह भी बता दें कि गाय से संबंधित आधे मामले, यानी 63 में से 32 मामले, भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित राज्यों में सूचित हैं। 25 जून 2017 तक दर्ज हिंसा के मामलों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में यह बात सामने आई है| पिछले सात वर्षों के दौरान मारे गए 28 भारतीयों में 24 मुसलमान थे। यानी इस संबंध में मारे जाने वाले 86 फीसदी मुसलमान हैं। इस तरह से हमलों में कम से कम 124 लोग घायल भी हुए हैं। इनमें से आधे से ज्यादा हमले ( करीब 52 फीसदी ) अफवाहों पर आधारित थे।

