
दलित मानवाधिकार के लिए चल रहे राष्ट्रीय अभियान में दलित अधिकार संगठन ने सोमवार को अगले आम चुनाव के लिए ‘दलित घोषणापत्र’ पेश किया है| इस घोषणापत्र में कई मांगो को शामिल किया गया है जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आरक्षण का निजी क्षेत्र में विस्तार, मैनुअल स्कावेन्गिंग को खत्म करना, और एससी/एसटी (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम की रक्षा करना है| इसके अलावा घोषणापत्र में दलित महिलाओं के अधिकार, आर्थिक स्वतंत्रता, शिक्षा, स्वास्थ्य और नौकरियों तक पहुंच एवं शासन में अपनी भागीदारी बढाने जैसी मांगे भी शामिल है|
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घोषणापत्र पर इस बात पर जोर दिया गया कि एससी/एसटी (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम के लिए संवैधानिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के अलावा अनिवार्य अनन्य अदालतों की स्थापना की जाए और पीड़ितों की पसंद के सरकारी अभियोजकों की नियुक्ति के लिए तत्काल उपाय किए जाए|
2 अप्रैल को भारत बंद होने के बाद से ज्यादातर मांगों को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिकार समूहों ने आवाज़ उठाई लेकिन उनके अधिकारों की अवहेलना की गई| संगठन ने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि राजनीतिक दल हमारी सभी मांगो को शामिल करेंगे| हम सभी विधायकों और सांसदों को अपना घोषणापत्र भी पेश करेंगे|
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नेशनल दलित मूवमेंट फॉर जस्टिस (एनडीएमजे)-एनसीडीएचआर के महासचिव रमेश नाथन ने कहा, ‘हम अन्य समुदायों की तुलना में 50 वर्ष पीछे हैं और घोषणापत्र में हमारी सभी दीर्घकालिक मांगें हैं|’ इसके साथ-साथ एनसीडीएचआर ने उच्च न्यायालयों, सुप्रीम कोर्ट, रक्षा और राज्यसभा में एससी और एसटी को आरक्षण के लिए भी कहा है|

