
भारतीय रुपये में जारी गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही| डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर अब तक के सबसे निचले स्तर (70 के करीब) पर आ गई है, इस कारण शेयर बाज़ार में भी भारी गिरावट दर्ज की गई वहीँ, एचडीएफसी और एचडीएफसी बैंक के शेयर सबसे ज्यादा टूटे है| गुरुवार को एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये 28 पैसे की भारी कमज़ोरी के साथ 68.89 के स्तर पर खुला जो अब तक का सबसे ज्यादा भाव और रुपये का सबसे निचला स्तर है|
हाल ही में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की रिपोर्ट पेश हुई थी जिसमें वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत को महाशक्ति बताया गया वहीँ घरेलु करेंसी के मामले में भारत की स्थति लगातार गिर रही है| रुपये की पिछले रिकॉर्ड की बात करें तो 20 जुलाई 2018 को 69.13 रिकॉर्ड किया गया था और 1 महीने बाद ही रुपये का स्तर सबसे निचले स्तर पर जा पहुंचा| करेंसी मार्केट विशषज्ञों का मानना है कि रुपया इस साल आखिर तक 72 के स्तर तक गिर सकता है| इन सब के बीच शुरूआती कारोबार में सबसे अधिक गिरावट आई जिसमें बीएसई सेंसेक्स 288 अंक से अधिक गिर गया और एनएसई निफ्टी इक्विटी बाजारों में वैश्विक मार्ग के बीच पीएसयू, ऑटो, धातु और बैंकिंग काउंटरों में भारी नुकसान हुआ|
जहाँ एक ओर रूपए गिरने से हल्ला मचा हुआ है वहीँ विपक्षी दल केंद्रीय सरकार की चुटकी लेते दिखीं| मोदी सरकार पर कटाक्ष करते हुए कांग्रेस ने कहा कि सरकार ने वो कर दिखाया, जो पिछले 70 साल में कभी नहीं हुआ। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर कहा, 70 वर्ष में पहली बार 70 के पार गया रुपया| 70 वर्ष का नित नया राग अलापने वाले मोदी जी ने, 70 साल में जो नहीं हुआ, वो कर दिखाया।’
केडिया कमोडिटी के डायरेक्टर अजय केडिया का कहना है कि पिछले कुछ वर्षो में एक ख़ास ट्रेंड सामने आया है जिसमें आम चुनाव के से ठीक पहले साल में रुपया अक्सर डॉलर के मुकाबले कमज़ोर हुआ है| साल 2014 के चुनाव से पहले भी ऐसा ही देखने को मिला| इससे पहले अगस्त 2013 में घरेलु करेंसी एक ही दिन में 148 पैसे गिर गया था और अब अगस्त 2018 में 5 साल की सबसे बड़ी गिरावट आई| निफ्टी, शेयर मार्केट और गिरते कारोबार का असर देश के सन्दर्भ में तो समझा जाता है परन्तु इससे जनता को होने वाले नुक्सान पर कम ही बातें होती है| आइये जानते है रुपये का स्तर लुड़कने से आम आदमी की जेब पर क्या असर पड़ेगा-
- कोई शक नहीं कि महंगाई बढ़ेगी| खाने-पिने के चीजों के दाम बढ़ सकते है क्यूंकि देश में 90 फीसद से ज्यादा खाने-पीने की चीज़े और अन्य ज़रूरी सामानों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए डीजल से चलने वाले वाहनों का इस्तेमाल होता है|
- वाहनों की कीमतें भी बढ़ सकती है| मारुती सुजुकी इंडिया, टोयोटा और हुंडई समेत कई कंपनियां कुछ पुरजो का आयात करती है| रुपया कमज़ोर होने से उनकी आयात लागत बढ़ सकती है|
- देश में सालाना करीब 1 लाख टन खाद्य तेल का आयात होता है| ज़ाहिर है, इसके लिए डॉलर में भुगतान करना होता है| ऐसे में इनके दाम बढ़ना करीब-करीब तय है|
- कमज़ोर रुपयों का असर सीधा-सीधा लोगों की जेब पर भी पड़ेगा| पेट्रोल-डीज़लों की कीमतों में और इजाफा हो सकता है|
- अधिकाँश इलेक्ट्रॉनिक गुड्स की कीमतें बढ़ सकती है|
निर्यातकों को होगा फाएदा
ऐसा नहीं कि रुपये की कमजोरी से सिर्फ नुकसान हो बल्कि रुपया का कमजोर होना कई मायनों में देश के लिए फायदेमंद भी है। रुपये की कमज़ोरी यानी डॉलर का मजबूत होना, इससे आईटी और फॉर्मा के साथ ऑटोमोबाइल सेक्टर को फायदा होगा है। इन सेक्टर से जुड़ी कंपनियों की ज्यादा कमाई एक्सपोर्ट बेस्ड होती है। ऐसे में डॉलर की मजबूती से टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो जैसी आईटी कंपनियों को फायदा होगा वहीं, डॉलर की मजबूती से ओएनजीसी, रिलायंस इंडस्ट्रीज, ऑयल इंडिया लिमिटेड जैसी कंपनियों को भी फायदा होगा क्योंकि ये डॉलर में फ्यूल बेचती हैं।
भारत में कब-कब हुआ रुपये कमज़ोर
भारत में रुपये का पहला अवमूल्यन जून 1966 में किया गया था जब देश की अर्थव्यवस्था चीन और पाकिस्तान युद्ध के कारण चरमरा गई थी| इस अवमूल्यन में घरेलु करेंसी की कीमत डॉलर के मुकाबले 57 प्रतिशत तक गिर गई थी| उस समय डॉलर की कीमत 4.75 रुपये थी और करेंसी गिरने के बाद 7.5 रुपये तक हो गई| ऐसे में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की खूब आलोचना हुई थी और इसके बाद वर्ष 1991 में दूसरा बड़ा अवमूल्यन हुआ जिसमें रुपये का स्तर 11 प्रतिशत तक गिर गया था|
मज़बूत आर्थिक निति की ज़रूरत
मुद्रा बाज़ार में रुपये की कीमत डॉलर के मुताबिक घटती-बढती है, जो स्वाभाविक है| यह केवल भारतीय करेंसी के साथ ही नहीं बल्कि बाकी इमर्जिंग करेंसी के साथ भी है परन्तु विडम्बना यह है कि अमेरिकी मुद्रा मज़बूत हो रही है और डॉलर का मज़बूत होना मतलब बाकी अन्य देशो की करेंसी गिरना है| वहीँ कच्चे तेल की कीमत में होती लगातार वृद्धि का कारण अमेरिकी डॉलर का मज़बूत होना है|
भारत 80 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करता है और ऐसे में यदि कच्चे तेल की कीमत में एक डॉलर की भी वृद्धि होती है तो भारत को सीधे चार-पांच हज़ार करोड़ का नुकसान होता है| जैसे-जैसे यह घाटा बढ़ता जाता है वैसे-वैसे रुपये की कीमत पर असर पड़ता है| इस वक़्त सरकार के पास मज़बूत आर्थिक निति के नाम पर कोई ठोस निति नहीं है जिससे अर्थव्यवस्था को संतुलित किया जा सकें| आर्थिक सुधार के नाम पर केंद्रीय सरकार ने नोटबंदी और जीएसटी लागू किया था जिसका फाएदा हाल-फिलहाल में मिलना संभव नहीं है|
भारतीय करेंसी की कीमत लगातार गिर रही है जिससे स्वाभाविक है कि इसका बोझ देश की जनता को भी उठाना पड़ेगा क्यूंकि महंगाई बढ़ेगी| ज़रूरत है कि सरकार कुछ अच्छी आर्थिक और मौद्रिक निति पर काम करें ताकि अर्थव्यवस्था का संतुलन बरक़रार रहे|

