
मुंबई के बीवाईएल कॉलेज में गायनोकोलॉजी एंड ऑब्स्टेट्रिक्स में पीजी कर रही छात्रा डॉ. पायल तड़वी अपने सीनियर्स द्वारा लगातार जातिगत टिप्पणी, रैगिंग व अपमान की वजह से जान दे दी| आज देश डॉ. पायल की ख़ुदकुशी पर शोक मना रहा है और न्याय की गुहार लगा रहा है| लेकिन क्या केवल यह सब कर लेने से जातिवाद को लेकर समाज में जमी मानसिकता खत्म हो पाएगी? क्या जातिवाद को लेकर लोगों की सोच में बदलाव आ पायेगा? क्या जातिवाद से जुडी घटनाओं में कमी आ पाएगी?
गौर करें तो इस घटना के दो पहलु सामने आते है जिसमें पहला रैगिंग और दूसरा जातिवाद है, जो दोनों रूप में कानूनन अपराध है लेकिन आज भी कई कॉलेजों और संस्थानों में इस तरह की घटनाएं होती है| हम इस तरह से जुडी कई घटनाएं देखते व पढ़ते है जिसकी तादाद बढती जा रही है| हैरानी करने वाली बात ये है कि जातिवाद को लेकर संकीर्ण सोच रखने वालों में ना केवल अशिक्षित वर्ग है बल्कि शिक्षित वर्ग भी इस तरह की मानसिकता से आज तक निकल नहीं पाया है| शिक्षा हमें बेहतर इंसान बनाने में मदद करती है लेकिन ऐसी क्या कमी रह गई है जिसमें आज भी जातिवाद की हीन भावना नहीं बदल पाई|
दरअसल मामला ये है कि डॉक्टर पायल तड़वी मुंबई के नायर अस्पताल के टॉपिकल नेशनल मेडिकल कॉलेज में गायनोकोलॉजी एंड ऑब्स्टेट्रिक्स में पीजी कर रही थीं| यहाँ वह सेकेंड ईयर की छात्रा थीं| 26 वर्षीय रेजिडेंट डॉक्टर पायल तड़वी के परिवार का आरोप है कि तीन सीनियर डॉक्टर्स के प्रताड़ना से परेशान होकर 22 मई को उनकी बेटी पायल ने अपने कमरे में फांसी लगाकर जान दे दी|
साल 2016 में डॉ. पायल की शादी डॉ. सलमान तड़वी से हुई थी| सलमान मुंबई के बालासाहेब ठाकरे मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं| डॉ. सलमान तडवी ने न्यूज़ वेबसाईट ‘द प्रिंट’ को बताया कि पायल ने जब उनसे इस बारे में बातचीत की तो मैंने हैड ऑफ़ डिपार्टमेंट से बात किया था और मैंने कहा था कि मुझे मेरी पत्नी खुश चाहिए| इसके बाद उन्होंने पायल को एक कोर्स के लिए दूसरी यूनिट में भेज दिया| फरवरी 2019 तक वो ठीक थी| उसके बाद उसे नए सेमेस्टर में वापस उसी यूनिट में आना पड़ा| वापस आते ही तीनों डॉक्टर्स ने उसे फिर हैरेस करना शुरू कर दिया| हमने फिर शिकायत की लेकिन इस बार जो प्रोफेसर पहले पायल को सुलझी हुई और समझदार बता रही थीं वो भी उन लड़कियों की साइड लेने लगीं| हमने पायल को समझाया कि एडमिशन के दौरान नए जूनियर्स आएंगे तो इन लड़कियों का ध्यान बंट जाएगा लेकिन नया बैच आने के बाद इन लड़कियों ने उसको जूनियर्स के सामने भी हैरेस करना शुरू कर दिया|
आखिरकार पायल ने इस प्रताड़ना से तंग आकर मौत को गले लगा लिया| इस केस के सामने आने के बाद सोशल मीडिया में पायल के लिए #JusticeForDrPayal ट्रेंड हो रहा है|
मुंबई के नायर अस्पताल में हुई इस घटना का एक पहलु रैगिंग भी है जिसमें ज़रूरी है कि स्टूडेंट्स रैगिंग पर बने नियम व कानून को लेकर जागरूक हो| मई 2001 में भारत के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से एंटी रैगिंग प्रयासों में एक बड़ा कदम उठाया गया था| 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग पर संज्ञान लेते हुए इसकी रोकथाम के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एम.एच.आर.डी.) ने सी.बी.आई. के पूर्व निदेशक ए. राघवन की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय कमेटी बनाई ताकि विरोधी कदम उठाने के उपायों की सिफारिश की जा सके|
मई 2007 में अदालत में प्रस्तुत राघवन समिति की रिपोर्ट में भारतीय दंड संहिता के तहत एक विशेष खंड के रूप में रैगिंग को शामिल करने का प्रस्ताव रखा| उसके बाद 16 मई 2007 में सर्वोच्च न्यायालय अंतरिम आदेश के अनुसार अकादमिक संस्थानों के लिए रैगिंग के किसी भी मामले की शिकायत पुलिस के साथ आधिकारिक ऍफ़.आई.आर. (First Information Report) के रूप में दर्ज करना अनिवार्य है| इससे यह सुनिश्चित होगा कि सभी मामलों की औपचारिक रूप से आपराधिक न्याय प्रणाली के तहत जांच की जाएगी, न कि अकादमिक संस्थानों द्वारा|
एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन की लें मदद
सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद, भारत सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन लॉन्च की गई, जो संस्थान के प्रमुख और स्थानीय पुलिस अधिकारियों को कॉलेज से रैगिंग शिकायत के बारे में सूचित करके पीड़ितों की मदद करती है| इस हेल्पलाइन की सहायता से ईमेल ([email protected]) के माध्यम से या फोन (1800-180-5522) के माध्यम से पीड़ित के नाम का खुलासा किए बिना शिकायतें रजिस्टर्ड की जा सकती हैं|