
NOIDA: ICAN-4 के छठे दिन की शुरुआत ‘ए राउंडटेबल डिस्कशन ऑन एशियन सेलेब्रिटी टुडे ‘ पर पैनल डिस्कशन 2 के साथ हुई। प्रो. Sean रेडमंड, डीकिन यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रेलिया ने इस पैनल डिस्कशन का संचालन किया। इस दिलचस्प विषय पर चर्चा में डॉ सोजोंग पार्क, सहायक रिसर्च प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ़ कम्युनिकेशन, सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी, दक्षिण कोरिया; सुश्री रियो कटयामा, दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, ईस्ट एशियन लैंग्वेजेज एंड कल्चर्स, लॉस एंजिल्स, यूएसए; डॉ जियान जू, वरिष्ठ कम्युनिकेशन लेक्चरर, सह-संयोजक, एशियन मीडिया एंड कल्चरल स्टडीज नेटवर्क, डीकिन यूनिवर्सिटी, मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया और डॉ विक्रांत किशोर, सीनियर लेक्चरर, स्क्रीन एंड डिज़ाइन, डीकिन विश्वविद्यालय, मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया शामिल हुए।
पैनल चर्चा का नेतृत्व करते हुए, प्रोफेसर रेडमंड ने समाज के विभिन्न हिस्सों में फिल्मों की भूमिका और मशहूर हस्तियों पर लगे प्रतिबंधों पर विस्तार से चर्चा की।
सम्मेलन के संयोजक डॉ अंबरीष सक्सेना ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि सिनेमा समाज का प्रतिबिंब है और दुनिया भर से आये जाने माने विशेषज्ञों के साथ पैनल चर्चा निश्चित रूप से समाज में फिल्मों और मशहूर हस्तियों की स्थिति पर प्रकाश डालने में सफल रहेगी। .
डॉ जियान जू ने अपने संबोधन में ‘चीन में गवर्निंग एंटरटेनमेंट सेलिब्रिटी’ विषय पर चर्चा की और चीन में मनोरंजन उद्योग में प्रथाओं, नीतियों और राजनीति के बारे में बताया। उन्होंने चीन में फिल्म उद्योग और विज्ञापन से संबंधित संस्थाओं और कानूनों के बारे में चर्चा की।
सुश्री रियो ने जापानी सेलिब्रिटी संस्कृति और एशियाई सिनेमा के बारे में बात करते हुए कहा, “पहले पश्चिम, सेलिब्रिटी संस्कृति को जन्म देने वाला और प्रसिद्धि अर्जित करने वाला एक विस्तृत क्षेत्र था, लेकिन वर्तमान समय में एशिया भी इस क्षेत्र में समृद्ध हुआ है।” उन्होंने जापानी सिनेमा के कई अन्य पहलुओं पर चर्चा करते हुए बताया, “सरकार और उद्योग जगत के बड़े नाम मशहूर हस्तियों को अपने व्यवसायों में शामिल करने से आमतौर पर कतराते हैं”।
डॉ सोजोंग ने “Policing ‘K’ in K-pop stardom” के बारे में बात करते हुए कहा, “सितारे ऐसे समाज को बनाने में मदद करते हैं जहां किसी भी प्रकार का कोई भी भेदभाव न हो, वे समाज में सामाजिक मूल्यों का आयात करते हैं।” ‘K’ अक्षर के उपयोग और इसके महत्व पर डॉ सोजोंग कहती हैं कि इस चर्चित बैंड का जन्म कोरिया में हुआ है लेकिन अब यह दुनिया के बहुसंस्कृतिवाद का प्रतीक बन गया है। इसके प्रशंसक दुनिया भर में मौजूद हैं और यह किसी भी तरह की नस्ल, रंग और धर्म की मान्यता से ऊपर है।
सिनेमा और मशहूर हस्तियों पर कोई भी पैनल चर्चा बॉलीवुड के उल्लेख के बिना अधूरी है। डॉ विक्रांत ने बॉलीवुड को स्टारडम का आसमान बताया। वह कहते हैं कि एक भारतीय प्रशंसक के लिए बॉलीवुड के prati भक्ति अकल्पनीय है। भारतीय प्रशंसक के लिए, एक सुपरस्टार भगवान की तरह होता है और कभी-कभी देवी-देवताओं से भी ऊपर होता है। उन्होंने कहा, “भारतीय फैन और सेलेब्रिटी संस्कृति ऐसा विषय है जिसपर दुनिया भर में शोध हो रहे हैं।”
डॉ सुस्मिता बाला, प्रमुख और प्रोफेसर, डीएमई मीडिया स्कूल ने एशियाई सिनेमा पर अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए सभी वक्ताओं को धन्यवाद दिया। श्री सचिन नायर, सहायक प्रोफेसर, डीएमई मीडिया स्कूल ने सत्र का संचालन किया, जबकि प्रथम वर्ष की छात्रा इशिका वाधवा ने इसमें एंकरिंग की।
तकनीकी सत्र-5
ICAN-4 के तकनीकी सत्र -V का विषय ‘COVID 19 महामारी और लॉकडाउन में ओटीटी और वेब श्रृंखला’ था। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ आशा सिंह, फैकल्टी ऑफ़ जेंडर स्टडीज, सोशल साइंस अध्ययन केंद्र, कोलकाता, पश्चिम बंगाल ने की। सुश्री मुदिता राज, सहायक प्रोफेसर, डीएमई मीडिया स्कूल ने सह-अध्यक्ष के रूप में सत्र का संचालन किया। सत्र में भारतीय वेब श्रृंखला में जेंडर के डिजिटल नरेटिव, युवाओं पर ओटीटी सामग्री का प्रभाव और मीडिया निर्मित लोकप्रिय संस्कृति का पर्यटन पर प्रभाव जैसे विषयों पर शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।
डॉ अंबरीष सक्सेना ने कहा, “यह खुशी की बात है कि हमने ICAN 4 के छठे दिन में प्रवेश किया है। उन्होंने कहा “सिनेमाहाल बंद होने के कारण मनोरंजन ओटीटी प्लेटफॉर्म तक सीमित हो चुका है। चूंकि अब सब कुछ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर देखा जा सकता है, इसलिए इस पर चर्चा होना अनिवार्य है।”
डॉ आशा ने अपनी टिप्पणी में कहा, “चूंकि महामारी के दौर में आमने सामने से किया गया संचार सीमित हो गया है, इसीलिए सूचना, संचार और कृत्रिम नेटवर्क जैसे विषय पर चर्चा और महत्वपूर्ण हो जाती है। इसलिए लोगों के विवेक और सोच समझने की क्षमताओं पर इसके प्रभाव का पता लगाना और उसकी जांच करना बेहद आवश्यक है।”
डॉ सुस्मिता बाला ने सत्र के अध्यक्ष और सह-अध्यक्ष को धन्यवाद दिया और शोध प्रस्तुतकर्ताओं के गहन शोध कार्य पर प्रसन्नता व्यक्त की।
सुश्री पेट्रीसिया मिशेल माथियास, जनसंचार विभाग, निस्कोर्ट और डॉ अमित चावला, मास कम्युनिकेशन स्कूल ऑफ मीडिया, फिल्म एंड एंटरटेनमेंट, शारदा विश्वविद्यालय को शोधकार्य शीर्षक -‘बंगलौर के किशोरों में स्मार्टफोन उपयोग और माता-पिता द्वारा मध्यस्थता’ – के लिए तकनीकी सत्र -4 का सर्वश्रेष्ठ पेपर प्रस्तुतकर्ता घोषित किया गया।
मास्टर क्लास 8
ICAN4 के छठे दिन में तीसरा सत्र पूर्व इंजीनियर-इन-चीफ, दूरदर्शन, नई दिल्ली के श्री आरके सिंह द्वारा ‘डिजिटलाइजेशन और ब्रॉडकास्ट मीडिया’ विषय पर मास्टर क्लास 8 था। डॉ अंबरीष सक्सेना ने सत्र की शुरुआत की और बताया, “यह सत्र वर्तमान समय में प्रासंगिक है और इसका विषय ICAN4 सम्मेलन के विषय पर प्रकाश केंद्रित करता है।”
श्री सिंह ने यह कहते हुए सत्र की शुरुआत की कि प्रौद्योगिकी के आगमन के साथ मीडिया के क्षेत्र में क्रांति आयी है और यह तकनीकी क्रांति ब्रॉडकास्ट मीडिया का आगामी मार्ग तय करने का दम रखती है।
इस मास्टर क्लास में श्री सिंह ने बुनियादी उदाहरणों के साथ डिजिटल दुनिया के जटिल मुद्दों को सरल बनाकर प्रतिभागियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। श्री सिंह ने बहुत ही रोचक ढंग से बाइनरी संख्याओं के विचार को समझाया। बाइनरी सिस्टम को अधिकांश लोग गणितीय 0 और 1 से जोड़ कर देखते हैं। उन्होंने डिजिटाइजेशन के दौरान शून्य और एक नामक दो संख्याओं से आये विश्वव्यापी परिवर्तन को जादू जैसा बताया।
सत्र को समाप्त करने से पहले, श्री सिंह ने प्रतिभागियों द्वारा पूछे गए कुछ प्रश्नों का धैर्यपूर्वक उत्तर दिया।
डॉ सुस्मिता बाला ने धन्यवाद प्रस्ताव के साथ सत्र का समापन किया और कहा कि श्री सिंह के स्पष्टीकरण ने जटिल विषय को सभी के लिए सरल बना दिया है। डॉ सुस्मिता बाला ने कहा “हम सभी ने सत्र से बहुत कुछ सीखा है”। श्री मोहित किशोर वत्स, सहायक प्रोफेसर, डीएमई मीडिया स्कूल ने सत्र का संचालन किया और प्रथम वर्ष के अभिषेक मिश्रा और नंदिनी श्रीवास्तव ने सत्र में एंकरिंग की।
मास्टर क्लास 7
ICAN 4 के दिन 5 का अंतिम सत्र ‘कोविड-19 के समय में पीआर’ विषय पर मास्टर कक्षा 7 के साथ समाप्त हुआ। सत्र के मुख्य अतिथि के तौर पर सुश्री कैथरीन लैंसियोनी, लेखक और प्रख्यात पीआर प्रोफेशनल यूएसए और डॉ पूजा अरोड़ा, वरिष्ठ जनसंपर्क और कॉर्पोरेट संचार पेशेवर, भारत ने जनसम्पर्क विषय पर चर्चा की।
सत्र की शुरुआत में डॉ अंबरीष सक्सेना ने कहा कि “यह जानना दिलचस्प होगा कि पीआर उद्योग ने कैसे खुद को महामारी की स्थिति के अनुकूल ढाल लिया है और परिणामस्वरूप कैसे उसने लोगों के दृष्टिकोण को बदला है”।
सुश्री लैंसियोनी ने यह कहते हुए सत्र की शुरुआत की कि COVID-19 ने जनसम्पर्क पेशेवरों को नये तरीके से सोचने पर विवश कर दिया है। समय के अनुसार पीआर पेशेवर ऐसी रणनीतियों पर काम करने लगे हैं जिससे वो उपभोक्ताओं के दिमाग में शीर्ष पर बने रहें और नए उपभोक्ताओं को सफलतापूर्वक लक्षित कर सकें। सुश्री कैथरीन लैंसियोनी ने पीआर उद्योग में हो रहे विश्वव्यापी परिवर्तनों पर चर्चा करते हुए बताया कि “प्रेस विज्ञप्ति के उपयोग में परिवर्तन कोविड समय का सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन बन कर उभरा है। प्रेस विज्ञप्तियां बहुत लम्बे समय से चलन में रही हैं लेकिन अब कंपनियां सोशल मीडिया के माध्यम से दर्शकों तक तेजी और आसानी से पहुंचना पसंद कर रही हैं। ”
डॉ अरोड़ा ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पारंपरिक पीआर ने अपनी चमक खो दी है, लेकिन फिर भी मार्केटिंग और ब्रांडिंग में इसका व्यापक इस्तेमाल हो रहा है। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि कहानियों के जरिये संवाद आज भी पीआर का केंद्र बना हुआ है हालांकि सूचना प्रसारण के साधनों में बदलाव आया है।
प्रतिभागियों को लाभान्वित करते हुए डॉ अरोड़ा ने कुछ और विचार प्रकट किये और वर्चुअल कार्यक्रमों के बारे में बताया। वर्चुअल कार्यक्रमों के बढ़ते चलन के बारे में उन्होंने कहा कि इसने ट्रेवल पर आने वाले खर्च को भी सीमित कर दिया है। मल्टीटास्किंग पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि “मल्टी-टास्किंग इंडस्ट्री का एक नया बेंचमार्क बन गया है।”
सत्र के समापन में डॉ सुस्मिता बाला ने इस तरह के अन्य उद्योग-अकादमिक संवादों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, “इस तरह की चर्चाएं छात्रों को उद्योग की बारीकियों को समझने और उनके करियर के विकल्प बनाने में मदद करती हैं।”
सुश्री कृष्णा पांडे, सहायक प्रोफेसर, डीएमई मीडिया स्कूल ने सत्र का संचालन किया, जबकि प्रथम वर्ष की छात्रा इशिका वाधवा ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
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Mohd Kamil
Assistant Professor, DME Media School
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