देश में पिछले वर्ष से अब तक किसान आन्दोलन का साल रहा| भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले ‘किसान क्रान्ति पदयात्रा’ में किसानो ने उत्तराखंड के हरिद्वार से दिल्ली तक महारैली निकाली थी, जो देर रात बुधवार को दिल्ली के किसान घाट पहुंचकर खत्म हो गई|
रैली में प्रदर्शन कर रहे किसानों की मुख्य मांगें स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करवाना है| इसके तहत पूर्ण कर्जमाफी, बिजली के दरों को कम करना,60 साल के ऊपर के सभी किसानों के लिए 5000 रूपए पेंशन का प्रावधान जैसी कई मांगे हैं| साथ ही गन्ने का बकाया भुगतान, जिन किसानों ने खुदकुशी की है उनके परिजनों को नौकरी और परिवार को पुनर्वास दिलाने की मांग उठाई गई है| वहीँ, सरकार ने किसानों की कुछ मांगे मान लीं है| किसानों की मांग थी कि NGT ने 10 साल पुराने डीजल ट्रैक्टरों के उपयोग पर बैन लगाया है, इसे हटाया जाए जिसे लेकर सरकार ने इस मामले में रिव्यू पेटिशन डालने का भरोसा दिया है| साथ ही किसानों से जुड़े उपकरणों पर GST कम किए जाने की भी मांग की थी जिसमें अधिकतर प्रोडक्ट्स को 5% से नीचे वाले कैप में लाये जाने की मांग एवं फसल बीमा पर सरकार ने फैसला दे दिया है| हालांकि किसानों की नाराजगी अभी भी पूरी तरह से थमी नहीं हुई है| आंदोलन खत्म करने के बाद भारतीय किसान यूनियन (BKU) के अध्यक्ष नरेश टिकैत का कहना है कि यह सरकार किसान विरोधी है और हमारी कई मांगे अभी भी पूरी नहीं हुई हैं|
पूरा मामला क्या है?
कर्जमाफी और बिजली बिल के दाम कम करने जैसी मांगों को लेकर किसान क्रांति पदयात्रा23 सितंबर को शुरू हुई थी। जिसके बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और मेरठ जिलों से गुजरते हुए किसान गाजियाबाद तक पहुंच गए। जहां इन किसानों को रोक दिया गया। इन किसानों की योजना गांधी जयंती के मौके पर राजघाट से संसद तक मार्च करने की थी। लेकिन दिल्ली पुलिस की ओर से उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गई। साथ ही दिल्ली-गाजियाबाद बॉर्डर को सील कर दिया गया था। यूपी पुलिस और दिल्ली पुलिस ने दिल्ली की तरफ जाने वाले सभी रास्तों को सील कर दिया था। हरिद्वार से दिल्ली के लिए भारतीय किसान क्रांति यात्रा साहिबाबाद पहुंच गई| किसानो को रोकने के लिए दिल्ली से सटे सीमाई इलाकों में कई जगहों पर धारा 144 लगा दिया गया था। इस दौरान हजारों की संख्या में किसानों ने जीटी रोड को पूरी तरह जाम कर दिया जिसके खिलाफ पुलिस प्रशासन ने इन पर आंसू गैस दागे और किसानो के बढ़ते प्रतिरोध के कारण प्रशासन को वाटर कैनन का भी इस्तेमाल करना पड़ा|
बीते कुछ सालों से किसानो का प्रदर्शन सिलसिलेवार रूप से देखने को मिला है जिसमें किसान अपनी अलग-अलग मांगो को लेकर प्रदर्शन करते आए लेकिन सरकार की ओर से अब तक किसानो की मांगो को पूरा नहीं किया गया| जहाँ सरकार वर्ष 2014 में किसानो की आय दोगुनी करने की बात करती थी वह भी अब तक पूरी नहीं हो पाई|
देश में पिछले चार वर्षों में कृषि विकास दर का औसत 1.9 प्रतिशत रहा| किसानों के लिए समर्थन मूल्य से लेकर, फसल बीमा योजना, कृषि जिंसों का निर्यात, गन्ने का बकाया भुगतान और कृषि ऋण जैसे बिंदुओं पर केंद्र सरकार पूर्णतया असफल रही है| ‘द वायर’ में छपी रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा बुरी हालत उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान की है| इस सत्र में चीनी मिलों ने किसानो से 34,51.5 7 करोड रूपए का गन्ना खरीदा| सरकार ने गन्ने के बकाया भुगतान को 14 दिनों में करने के लिए वादा किया था| इस हिसाब से 33,375.79 करोड़ रूपए का भुगतान हो जाना चाहिए था, परंतु सरकार ने 21,151.56 करोड़ रूपए का भुगतान किया है| इस तरह अकेले उत्तर प्रदेश में 12,224.23 करोड़ रूपए का गन्ना भुगतान बकाया है|
जहाँ एक ओर सरकार किसानो के लिए फसल बीमा के फैसले का एलान किया है लेकिन सच यह कि इससे सबसे अधिक लाभ बीमा कंपनी को पहुंचेगा, ना की इन किसानो को|
सरकारी आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि फसल बीमा योजना से सबसे अधिक फायदा बीमा कंपनियों को हुआ है| वर्ष 2016-17 में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और देश के किसानों ने मिलकर 22,180 करोड रूपए का प्रीमियम बीमा कंपनियों को दिया| परंतु पूरे देश में किसानों को फसलों के नुकसान से मिलने वाले भुगतान का मूल्य है 1295 करोड़ रूपए था| इस हिसाब से कंपनियों को 9,221 करोड़ रूपए बचे| वर्ष 2017-18 मे बीमा कंपनियों ने 24,450 करोड़ रूपए इकट्ठे किए| खरीफ की फसल के पकने के 4 माह पश्चात देश के किसानों को खराब हुई फसल के मुआवजे के रूप में सिर्फ 402 करोड़ रूपए मिले हैं|
वहीँ, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार ने वर्ष 2014 के घोषणा पत्र एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 के चुनावी भाषणों में स्पष्ट रूप से लागत मूल्य पर 50 प्रतिशत मुनाफा दिए जाने की बात कही थी, साथ ही स्वामीनाथन कमेटी को लागू करने का वादा किया गया था लेकिन किसानों से किया यह वादा सरकार अब तक पूरा नहीं कर पाई|

