
महंगाई, न्यूनतम भत्ता, कर्जमाफी समेत कई बड़े मुद्दों को लेकर देश के किसान राजधानी दिल्ली की सड़कों पर मोदी सरकार के खिलाफ उतरेंगें। किसानों के मुद्दे वामपंथी दलों की राजनीतिक गतिविधियों के केंद्र बनते जा रहे है। एआईकेएस के महासचिव हनान मोल्ला ने दावा किया है कि “भूमि सुधार” लाने के लिए लगातार सरकारों की “विफलता” ने “कृषि संकट” को जन्म दिया है। अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के महासचिव हनान मोल्ला ने कहा कि 28 मार्च से 30 नवंबर तक राष्ट्रीय राजधानी में एक मार्च का आयोजन किया जाएगा। कृषि संकट विभिन्न तरीकों से प्रकट होता है और इसके पीछे ऐतिहासिक कारण हैं। उन्होंने केंद्र में बीजेपी सरकार पर भी आरोप लगाया कि किसानों को 2014 के चुनावी वादे को पूरा नहीं किया है।
आपको बता दें कि इससे पहले भी देश के कई हिस्सों में किसानों ने राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया है। लेकिन इस बार राजधानी की सड़कों पर उतर कर किसान बड़ा संदेश देना चाहते हैं।
किसानों ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगों को नहीं माना गया तो आने वाले समय में आंदोलन और भी बड़ा होगा। किसानों का कहना है कि अगली बार देश के हर राज्य से किसान आएंगे और राजधानी का घेराव करेंगे। रैली में किसान संगठन ने कहा है कि सरकार या तो किसानों के प्रति अपनी नीति बदले वरना हम सरकार बदल देंगे। किसानों का कहना है कि 28, 29, 30 नवंबर को देश के 201 किसान संगठन हर राज्य से दिल्ली की ओर मार्च करेंगे।
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इस प्रदर्शन की अगुवाई ऑल इंडिया किसान महासभा के द्वारा किया जा रहा है। वामपंथी संगठन अखिल भारतीय किसान महासभा और सीटू के नेतृत्व में लाखों की संख्या में किसान और मजदूर दिल्ली के रामलीला मैदान पर मजदूर किसान संघर्ष रैली में जुटेंगे।
किसान और मजदूरों की इस महारैली से पहले सीटू और अखिल भारतीय किसान सभा की ओर से अपनी मांगों का चार्टर सामने रखा गया है। जिसमें बीजेपी शासित केंद्र सरकार पर सांप्रदायिक और किसान–मजदूर विरोधी होने का आरोप लगाते हुए आम लोगों को मुहिम के साथ जुड़ने की अपील की गई है।
किसान और मजदूरों की प्रमुख मांग
रोज बढ़ रही कीमतों पर लगाम लगाई जाए, खाद्य वितरण प्रणाली की व्यवस्था को ठीक किया जाए, मौजूदा पीढ़ी को उचित रोजगार मिले, सभी मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी भत्ता 18000 रुपया प्रतिमाह तय किया जाए। इसके अलावा कहा गया है कि मजदूरों के लिए बने कानून में मजदूर विरोधी बदलाव ना किए जाएं, किसानों के लिए स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशें लागू हों, गरीब खेती मजदूर और किसानों का कर्ज माफ हो।
सरकार से किसानों की मांग है कि खेती में लगे मजदूरों के लिए एक बेहतर कानून बने। हर ग्रामीण इलाके में मनरेगा ठीक तरीके से लागू हो, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा और घर की सुविधा मिले। मजदूरों को ठेकेदारी प्रथा से राहत मिले। जमीन अधिग्रहण के नाम पर किसानों से जबरन उनकी जमीन न छीनी जाए और प्राकृतिक आपदा से पीड़ित गरीबों को उचित राहत मिले। मांगों के इस चार्टर को लेकर किसान और मजदूर संसद की ओर मार्च करेंगे जिसमें विरोधी खेमे के कई नेताओं के शामिल होने की भी संभावना है। वामपंथी दल सीपीआईएम के महासचिव सीताराम येचुरी भी इस मार्च में हिस्सा ले सकते हैं।

