सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को ख़त्म कर समलैंगिक यौन संबंध को अपराध की क्षेणी से हटा दिया है| यानी अब भारत में समलैंगिक संबंध अपराध नहीं होंगे|
इस मामलें की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व में पांच जजों की बेंच ने की| बेंच ने कहा कि धारा 377 वयस्क इंसानों के बीच सहमति से होन वाले यौन संबंध को आपराधिक बनाती है जो असंवैधानिक है|
क्या है IPC की धारा 377?
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के अनुसार समलैंगिकता अपराध है| आईपीसी की धारा 377 के मुताबिक जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ सेक्स करता है, उसे 10 वर्ष की सज़ा या आजीवन कारावास से दंडित किए जाने का प्रावधान है| साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा| यह अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है और यह गैर जमानती भी है|
आईपीसी की धारा 377 की चर्चा बीतें कुछ सालों से अधिक रहीं है| पहलें इसे अपराध क्षेणी से निकाल दिया गया था, लेकिन दिसम्बर 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे दोबारा अपराध की क्षेणी में शामिल किया था|
इसके बाद समलैंगिक प्रेमियों ने अदालत में गुहार लगाई कि उन्हें अपनी निजता को स्वीकार करने दिया जाए|
बदलते समय की रौशनी में देखा जाना चाहिए ‘समलैंगिकता’
6 फरवरी 2012 को, सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक यौन संबंधों के विवाद पर जस्टिस जीएस सिंघवी और दो न्यायाधीशीय खंडपीठ ने कहा था कि समलैंगिकता को बदलते समय की रौशनी में देखा जाना चाहिए| उन्होंने यह भी बताया कि 20 साल पहलें अनैतिक मानीं जाने वालीं कई चीजें अब समाज के लिए स्वीकार्य हो गई हैं। खंडपीठ ने कहा कि भारत में समलैंगिक यौन संबंध 1860 से पहले अपराध नहीं था|
धर्मगुरुओं ने जताया ऐतराज़
धर्मगुरुओं ने इस फैसलें को धर्म और शास्त्रों के अनुसार गलत बताया है।
शिया धर्मगुरू मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा, ‘समलैंगिकता को यदि धर्म से अलग भी कर दिया जाए तो हिंदुस्तान की तहजीब, यहां की संस्कृति इसके खिलाफ रही हैं। यदि यह अपराध नहीं, गलत नहीं तो फिर तीन-चार शादियां भी गलत नहीं माना जाएगा। हर कोई अपनी मर्जी से कुछ भी करता रहेगा। सरकार को इस पर रोक लगाना चाहिए।’
अखिल भारत हिंदू समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि महाराज ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने जो समलैंगिकता के समर्थन में निर्णय दिया है, वह समाज, राष्ट्र के हित में कदापि नहीं है, इससे न सिर्फ समाज में अराजकता को बल मिलेगा बल्कि समाज का चारित्रिक पतन होगा एवं युवा वर्ग बर्बाद होगा तथा अपराध में और बढ़ोत्तरी होगी। यह किसी भी धर्म के अनुरूप नहीं है।’
इसके साथ ही प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी से निवेदन किया है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश को संसद से तत्काल रोक लगाए|
क्या कहता है वैज्ञानिक शोध?
जहाँ एक ओर समलैंगिकता धर्म और शास्त्र के खिलाफ तथा अप्राकृतिक बताया गया वहीँ, वैज्ञानिक शोध इसे अप्राकृतिक नहीं मानता| वैज्ञानिक शोध यह प्रमाणित कर चुका है कि समलैंगिकता रोग या मानसिक विकृति नहीं है, इसे अप्राकृतिक नहीं कहा जा सकता| जिनका रुझान इस ओर होता है, उन्हें इच्छानुसार जीवनयापन के बुनियादी अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता|
अप्राकृतिक यौन संबंध का पहला मामला
अप्राकृतिक यौन सम्बन्ध का पहला मामला सबसे पहले सन् 1290 में इंग्लैंड के फ्लेटा में सामने आया था| फलस्वरूप इसे अपराध की क्षेणी में रखा गया| इसे लेकर ब्रिटेन में 1533 में एक एक्ट बनाया गया| इस एक्ट के तहत फांसी का प्रावधान था| इसके बाद 1563 में इस एक्ट में बदलाओं हुए जिसमें क्वीन एलिजाबेथ-प्रथम ने इसे अपराध की क्षेणी से हटा दिया|
इन देशों में मान्य नहीं
दुनिया में 13 देश ऐसे है जहाँ समलेंगिक रिश्ते पर मौत की सज़ा देने का प्रावधान है| सुडान, ईरान, सऊदी अरब, यमन में समलैंगिक रिश्ता बनानें के लिए मौत की सज़ा दी जाती है| सोमालिया और नाइजीरिया के कुछ हिस्सों में भी इसके लिए मौत की सज़ा का प्रावधान है| अफगानिस्तान, पाकिस्तान और कतर में भी मौत की सज़ा का प्रावधान है, लेकिन इसे लागू नहीं किया जाता है|
इंडोनेशिया सहित कुछ देशों में ‘गे सेक्स’ के लिए कोड़े मारने की सज़ा दी जाती है| वहीं अन्य देशों में भी इसे अपराध की श्रेणी में रखा गया है और जेल की सज़ा दी जाती है|
इन देशों में है मान्य
बेल्जियम, कनाडा, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका, नॉर्वे, स्वीडन, आइसलैंड, पुर्तगाल, अर्जेंटीना, डेनमार्क, उरुग्वे, न्यूजीलैंड, फ्रांस, ब्राजील, इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, लग्जमबर्ग, फिनलैंड, आयरलैंड, ग्रीनलैंड, कोलंबिया, जर्मनी, माल्टा भी समलैंगिक रिश्तों को मान्यता दी जा चुकी है|

