अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, भारत मार्च 2019 तक 7.3 फीसदी और उसके बाद 7.5 फीसदी की रफ़्तार से विकास करने की राह पर है| यह अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत जल्द ही आने वाले वर्षों में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित होगा क्यूंकि देश में आर्थिक सुधारों का फाएदा आने लगा है| रिपोर्ट देखने के बाद शक नहीं कि भारत अब अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में विश्व के समक्ष महाशक्ति के रूप में उभर रहा है, पर रिपोर्ट से बाहर यदि देश की ज़मीनी स्थति का जाएज़ा लें तो हकीकत कुछ और ही है| एक तरफ देश महाशक्ति के रूप में उभर रहा है लेकिन इसके दुसरे तरफ आज भी भारत कई पुरानी समस्याओं से जूझ रहा है जो देश की आर्थिक प्रगति के लिए चुनौती बनकर विकास की राह पर खड़ा है| क्या हम सही मायने में भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में महाशक्ति के रूप में देख सकते है?
आज भारत भले ही आर्थिक प्रगति के एजेंडे को आगे बढ़ा रही हो लेकिन ध्यान रहें कि देश की अंदुरनी स्थति में आज भी सुधार की ज़रूरत है| भारतीय जनता पार्टी की ओर से विकास पुरुष माने जाने वाले पीएम नरेन्द्र मोदी, जिन्हें अर्थव्यवस्था में ख़ास दिलचश्पी न होने के बावजूद सत्ता में आते ही देश की अर्थव्यवस्था को पलट दिया जिसमें दो नए बदलाओं किए जिससे आप भी वाकिफ है| जी हाँ, नोटबंदी और जीएसटी, जिसके बाद देश की अर्थव्यवस्था में कई उतार-चढ़ाओं आए, जिसमें अधिकतर भारत की अर्थव्यवस्था को नुक्सान हुआ और सबसे अधिक प्रभाव आम जन-जीवन पर पड़ा| इसके अलावा भारत के कई अलग-अलग क्षेत्रों में हुए इस बदलाव का विपरीत प्रभाव देखने को भी मिला| रिपोर्ट के मुताबिक 2016-17 की तुलना में 2017-18 के दौरान कृषि, खनन और खदान सेक्टर में विकास दर कम रही| साथ ही रिपोर्ट में यह भी बाताया गया कि भारत में लगभग 20 सालों में रईस लोगों की संपत्ति में 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई दूसरी तरफ गरीबों की आय में 41 फीसदी की कमी आई|
अर्थव्यवस्था के आंकड़े सरकार, पालिसी मेकर्स, बैंक और मार्केट के लिए तो मायने रखता है लेकिन इससे आम जन-जीवन में क्या ख़ास फर्क पड़ता है यह जानना ज़रूरी है| हाँ, आज देश की अर्थव्यवस्था प्रगति की नई बुलंदियां छु रही है लेकिन यह भी सत्य है कि आज महंगाई भी आसमान छु रही है और रोजगार का स्तर गिरा है| महंगाई और बेरोज़गारी से भले ही देश की अर्थव्यवस्था में ज्यादा फर्क न पड़ा हो जिसे हम हाल में पेश हुई आईएमएफ की रिपोर्ट में देख सकते है, परन्तु आम लोगों की जेब में इससे ज़रूर फर्क पड़ा है, आइए जानते है-
- प्रति व्यक्ति आय में भारत का रैंक काफी नीचे है| आईएमएफ की 2017 की रिपोर्ट के रैंकिंग के मुताबिक 200 देशों की सूची में भारत की रैकिंग 126वीं है|
- विश्व बैंक के अनुसार दुनिया की एक तिहाई गरीब आबादी में भारत पहले पायदान पर है, यानी 29.8 प्रतिशत देश की आवाम गरीबी रेखा के नीचे जीवन जीने को मजबूर है, जिसका मतलब है कि प्रति व्यक्ति कमाई एक डॉलर से भी कम है।
- अंतर्राष्ट्रीय खाद्य अनुसंधान संस्थान के अनुसार वैश्विक खाद्य सूचकांक (2012) में भारत की 15.2 प्रतिशत रियाया भुखमरी की शिकार है, यानी हर पन्द्रह में से दो लोग भूखे मर रहे हैं, दुनिया का हर चौथा भूखा इन्सान भारत में रहता है।
- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के मानव विकास सूचकांक की ताजा आंकड़ों में भारत 188 देशों की सूची में 130वें स्थान पर है, यानी स्वस्थ्य जीवन, ज्ञान तक पहुंच और उपयुक्त जीवन स्तर में दीर्घकालीन प्रगति के आंकलन में भारत की स्थति ख़राब है।
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 20 सालों में रईस लोगों की सम्पति में 45 प्रतिशत की वृद्धि हुई दूसरी तरफ गरीबों की आय में 41 फीसदी की कमी आई| एक ओर रिपोर्ट में भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में महाशक्ति का रूप दिखाया जा रहा है वहीँ ऐसे आंकडें भी मौजूद है जो भारत की ज़मीनी हकीकत को बयां करती है, लेकिन सवाल यह उठता है कि देश की आर्थिक सुधार का लाभ कुछ ही लोगों को क्यों मिल रहा है? क्या हमें केवल ऐसे आंकडें देख लेने भर से संतुष्ट हो जाना चाहिए और कान-आँखे बंद कर लेने चाहिए उन सभी ज़मीनी मुद्दों से जो भारत की असल सच्चाई से रूबरू कराती हो|

