HIGHLIGHTS:
इस बार मोदी और उनकी पार्टी के पास आर्थिक विकास के नाम पर दिखाने के लिए कुछ नहीं है|
चुनावों में खुलेआम सांप्रदायिक भाषण देने वाले नरेंद्र मोदी ने 2014 में भ्रष्टाचार और रोजी-रोटी को मुद्दा बनाया था|
इस बार तो नौकरी, कला धन, और महंगाई पे चुप्पी साधे हुए हैं |
वे मतदाताओं को उनका समर्थन करने के लिए बालाकोट, सेना और पाकिस्तान अलाप रहे हैं |
जैसे-जैसे हम चुनावों में आगे बढ़ रहे हैं वैसे-वैसे भाजपा की बयानबाजी हमें सोचने पर मजबूर कर कर रही है कि पार्टी का एजेंडा क्या है| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदर्भ क्षेत्र के वर्धा में हुई रैली में दिए विभाजनकारी भाषण को कौन भूल सकता है, जिसमें ‘पूरी दुनिया के सामने हिंदुओं के अपमान’ की बात कहकर मोदी ने कांग्रेस पर जमकर हमला बोला था|
चुनाव एक ऐसा समय होता है, जब उम्मीदवार लोगों को लुभाने की कोशिश में लगा रहता है और मतदाताओं से हर तरह के वादे करता है| पहले के चुनावों में खुलेआम सांप्रदायिक भाषण देने वाले नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपना स्वर बदलते हुए मुख्य तौर पर भ्रष्टाचार और रोजी-रोटी के मसलों, आर्थिक विकास और रोजगार आदि के बारे बात करते नहीं थकती थी| उन्हें यह बात अच्छी तरह से मालूम थी कि मतदाता यूपीए से परेशान थे और उन्हें नए विचारों और दृष्टि वाले वास्तविक विकल्प की तलाश थी|
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इस बार जबकि मोदी और उनकी पार्टी के पास आर्थिक विकास के नाम पर दिखाने के लिए कुछ नहीं है और उनकी सरकार क्रोनी-कैपिटलिज़्म के आरोपों से घिरी है, तब मोदी और उनकी पार्टी ने अपने सुर बदलने का फैसला किया है| वे मतदाताओं को उनका समर्थन करने के लिए धमका और डरा रहे हैं| इस बारे में कोई बात नहीं की जा रही है कि अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए भाजपा सरकार द्वारा क्या किया जाएगा- इसकी जगह पार्टी खुलेआम यह कह रही है कि पार्टी हर तरह के दुश्मनों- तथाकथित बाहरियों से लेकर विरोधियों तक के खिलाफ कठोर नीतियां अपनाएगी|
राजनाथ सिंह- जो मोदी और अमित शाह जैसे कट्टरपंथियों की तुलना में ज्यादा संतुलित माने जाते हैं- ने ऐलान किया है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में वापस आती है, तो वह राजद्रोह कानून को इतना सख्त बनाएगी के लोगों कि ‘रूह कांप जाएगी’| यहां देशद्रोही का मतलब है हर तरह के ‘देशद्रोहियों’ से है, इसके भीतर वे सब आ सकते हैं, जो कठिन सवाल पूछते हैं या सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करते हैं|
वहीं दूसरी तरफ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी यह खुलकर कहा कि अगर उनकी पार्टी जीतती है, तो ‘बौद्ध, हिंदू और सिख’ के अलावा हर घुसपैठिए को देश से निकाल बाहर किया जाएगा| इसका अर्थ यह निकलता है कि किसी मुस्लिम शरणार्थी को देश में घुसने नहीं दिया जाएगा, लेकिन यह उनके बयान की उदार व्याख्या होगी| इसका असली अर्थ स्पष्ट है- मुसलमानों (और ईसाइयों) को यह पता होना चाहिए कि वे तब तक संदेह के घेरे में आएंगे, जब तक वे खुद को इसके विपरीत साबित न कर दें|
इस तरीके का विचार मुसलमानों और ईसाइयों को भारत का मूलनिवासी नहीं मानता और उन्हें किसी बाहरी शक्ति के प्रति वफादार मानता है| यह भाजपा और संघ परिवार का पुराना बुनियादी सिद्धांत रहा है, लेकिन अब इसकी घोषणा खुले तौर पर की जा रही है|
इस मामले में गांधी परिवार की मेनका गांधी जो संघी संस्कृति में पली-बढ़ी नहीं हैं फिर भी भगवा खेमे मे हैं, जिसे कि एक संयोग कहा जा सकता है| 1989 से शुरू करके पहले जनता दल, फिर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पीलीभीत से (और एकबार आंवला से) जीतकर संसद पहुंचीं| 2004 में वे भाजपा में शामिल हो गईं और उनका जीत का रिकॉर्ड तब से बरकरार रहा है| 2009 में उनके बेटे वरुण गांधी पीलीभीत से चुनाव लड़े और जीते|
दो चुनावों के बीच के समय में मां पशु कल्याण समिति के लिए काम करने वाली मेनका और गरीबी पर विद्धतापूर्ण लेख और कविताएं लिखने वाले वरुण को माना जा रहा था कि इनकी भाषा शालीन होगी लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान इनका भी असली चेहरा अपने भाषणों में सामने आ गया जिसमें अल्पसंख्यकों को अपशब्द कहे गए, उनकी आलोचना की गई| इससे पहले 2009 में 29 वर्ष के वरुण गांधी ने अपने निर्वाचन क्षेत्र के मुस्लिमों को धमकी दी कि अगर वे हिंदुओं की ओर उंगली भी उठाएंगे, तो वे उनके हाथ काट देंगे| इस बार उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अपने नेता नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि मोदी ने उनके परिवार से बने प्रधानमंत्रियों से भी ज्यादा भारत का सम्मान बढ़ाया है|
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दूसरी तरफ उनकी मां ने पार्टी के एजेंडे पर चलते हुए अपने निर्वाचन क्षेत्र के मुसलमानों को कहा है कि अगर वे उन्हें वोट नहीं देते तो उन्हें उनसे मदद की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. खबरों के मुताबिक उन्होंने कहा था, ‘मैं यह चुनाव पहले ही जीत चुकी हूं, इसलिए फैसला आपको करना है| मेनका और वरुण के मौजूदा रवैय्ये को देख कर ऐसा लगता है कि मेनका और वरुण भाजपा के साथ वफादारी के इम्तिहान को अच्छे अंकों से पास कर गए हैं|
हाल ही में उन्नाव में मुस्लिमों के उग्र विरोधी साक्षी महाराज, जिन पर अतीत में हत्या और बलात्कार का आरोप लगा था, कहा कि अगर वे उन्हें वोट नहीं देंगे, तो उन्हें इसका पाप लगेगा|
बहरहाल चुनाव आयोग के मौजूदा रवैय्ये को देखकर ऐसा लग रहा है कि चुनाव आयोग भूल चुका है कि उसका संवैधानिक दायित्व केवल आदर्श आचार संहिता को बनाए रखना ही नहीं बल्कि जनप्रतिनिधि कानून को बनाए रखना भी है, जिसके तहत मोदी के इस तरह के भाषण अपराध हैं| इस निरंतर घृणा-द्वेष भरी चुनावी राजनीति के बीच चुनाव आयोग की चुप्पी वर्तमान आम चुनाव के सबसे खतरनाक पहलुओं में से एक है| प्रधानमत्री के बयान पर भी चुनाव आयोग की चुप्पी कई सवालिया निशान खड़े करती है|