
गृह मंत्रालय की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि खुफिया ब्यूरो (आईबी), मादक पदार्थ नियंत्रण ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी), राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई), सीबीआई, एनआईए, कैबिनेट सचिवालय (रॉ), डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इंटेलिजेंस और दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पास देश में चलने वाले सभी कंप्यूटर की निगरानी करने का अधिकार होगा|
अगर आपको पता चले कि कोई आपकी बातचीत सुन रहा है| स्मार्टफोन का डेटा किसी और के पास जा रहा है| सोशल मीडिया पर जो लिख रहे हैं उस पर सुरक्षा एजेंसियां नज़र रखती हैं तो क्या आप सहज रहेंगे| भारत ही नहीं पूरी दुनिया में डेटा प्राइवेसी का मामला गंभीर हो गया है| यह बात ध्यान में रखिए कि राष्ट्रीय सुरक्षा का ख़तरा या मसला सिर्फ एक देश को नहीं है, सभी देशों को है| इसका मतलब यह नहीं कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर आपकी ज़िंदगी में कोई भी ताक-झांक कर सके| आपकी लिखी गई बात, तस्वीरों या बातचीत को किसी और के हवाले कर दें या कोई और सुनता रहे|
भारत ही नहीं पूरी दुनिया में यह सवाल बहुत बड़ा है| राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर और अन्य किसी बहाने से सरकार या कंपनी के पास डेटा न पहुंच जाए इसे लेकर नागरिकों का संघर्ष जारी है|
राहुल ने किया मोदी पर हमला
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने निजी कंप्यूटरों को जांच एजेंसियों की निगरानी के दायरे में लाने के सरकार के आदेश को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा और कहा कि देश को ‘पुलिस राज’ में तब्दील करने से मोदी की समस्याएं हल नहीं होंगी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इससे सिर्फ यही साबित होने वाला है कि मोदी एक असुरक्षित तानाशाह हैं। गांधी ने ट्वीट कर कहा ‘मोदी जी, भारत को पुलिस राज में बदलने से आपकी समस्याएं हल नहीं होने वाली है। इससे एक अरब से अधिक भारतीय नागरिकों के समक्ष सिर्फ यही साबित होने वाला है कि आप किस तरह के असुरक्षित तानाशाह हैं|
क्या कहता है आदेश
आदेश में कहा गया उक्त अधिनियम (सूचना प्रौद्योगिकी कानून, 2000 की धारा 69) के तहत सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को किसी कंप्यूटर सिस्टम में तैयार, पारेषित, प्राप्त या भंडारित किसी भी प्रकार की सूचना के अंतरावरोधन (इंटरसेप्शन), निगरानी (मॉनिटरिंग) और विरूपण (डीक्रिप्शन) के लिए प्राधिकृत करता है। सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 69 किसी कंप्यूटर संसाधन के जरिए किसी सूचना पर नजर रखने या उन्हें देखने के लिए निर्देश जारी करने की शक्तियों से जुड़ी है।
पहले के एक आदेश के मुताबिक, केंद्रीय गृह मंत्रालय को भारतीय टेलीग्राफ कानून के प्रावधानों के तहत फोन कॉलों की टैपिंग और उनके विश्लेषण के लिए खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को अधिकृत करने या मंजूरी देने का भी अधिकार है।
गृह मंत्रालय की सफाई
अपनी सफाई में गृह मंत्रालय ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी कानून-2000 में पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए गए हैं और टेलीग्राफ कानून में समान सुरक्षा उपायों के साथ ऐसे ही प्रावधान और प्रक्रियाएं पहले से मौजूद हैं। मंत्रालय ने कहा कि कंप्यूटर की किसी सामग्री को देखने या उसकी निगरानी करने के हर मामले में सक्षम अधिकारी जो केंद्रीय गृह सचिव हैं की मंजूरी लेनी होगी।
बयान के मुताबिक मौजूदा अधिसूचना टेलीग्राफ कानून के तहत जारी अधिकृति जैसी ही है। जैसा कि टेलीग्राफ कानून के मामले में होता है| समूची प्रक्रिया एक ठोस समीक्षा तंत्र पर निर्भर होगी। हर एक मामले में गृह मंत्रालय या राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी जरूरी होगी। गृह मंत्रालय ने किसी कानून प्रवर्तन एजेंसी या सुरक्षा एजेंसी को अपने अधिकार नहीं दिए हैं। गृह मंत्रालय ने अपने पक्ष को विस्तार से बताने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी नियम-2009 के नियम-4 का इस्तेमाल किया।
एक पूर्व सरकारी मुलाज़िम ने बताया कि पहली बार डेटा स्कैन करने का अधिकार कई सारी एजेंसियों को दिया गया है| इसके पहले जो बातचीत चल रही है जिसे डेटा इन मोशन कहते हैं उसे इंटरसेप्ट किया जा सकता है| मगर इस आदेश के बाद कंप्यूटर में जमा, या उससे भेजी गई सूचना को भी इंटरसेप्ट करने का पावर दे दिया गया है|
यह मामला तकनीकि का भी है| अगर सरकार किसी खास कोड से एक साथ लाखों कंप्यूटर को मोनिटर करने लगे तो क्या होगा| सोशल मीडिया की कंपनियां ऐसी तकनीक को लेकर हमेशा विवादों में रहती हैं और दुनिया के कई देश उनकी इस बदमाशी को लेकर कानून बना रहे हैं लेकिन जब सरकार खुद यही काम करती है तो क्या उसे राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर करने दिया जा सकता है|
दि प्रिंट में मनीष छिब्बर ने लिखा है कि 22 दिसंबर 2008 को लोकसभा में बगैर किसी चर्चा के ही यह संशोधन पास हो गया था| तब कांग्रेस की सरकार थी| लोकसभा ही नहीं जब राज्य सभा में बहस हुई तब एक भी सांसद ने इसके खिलाफ वोट नहीं किया| इसी संशोधन के तहत पहली बार कंप्यूटर में जमा या कंप्यूटर के द्वारा प्रसारित किसी सूचना को ट्रैक करने का अधिकार केंद सरकार को मिला था| यह गंभीर बात तो है लेकिन उस वक्त प्राइवेसी को लेकर वैसी समझ नहीं थी जैसी आज है| आज दुनिया में टेकनोलॉजी के कारण डेटा निगरानी के नए ख़तरे सामने आए हैं| उनकी बहस पहले से कहीं ज्यादा जटिल और सीरीयस हुई है| 2008 के संशोधन को लेकर कई संस्थाओं ने सवाल उठाए, क्या तब की सरकार ने उसे सुना था| क्यों नहीं तब के कानून में प्राइवेसी को लेकर सुरक्षा के उपाय किए गए थे| और अगर तब नहीं हुआ था तो क्या इसे आधार बनाकर कहा जा सकता है कि अब नहीं होगा|
असदुद्दीन ओवैसी ने ट्वीट कर कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाया कि उन्होंने 10 केंद्रीय एजेंसियों को आपके कंप्यूटर पर नजर रखने का आदेश जारी किया है| उन्होंने आगे लिखा कि कौन जानता था कि उन्होंने जब घर-घर मोदी कहा था तो इसका मतलब यह था अब समझ में आया कि घर-घर मोदी का मतलब लोगों के कंप्यूटर में झांकना है| उन्होंने लिखा कि जॉर्ज ऑरवेल का बिग ब्रदर यहां है और 1984 में आपका स्वागत है|
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने ट्वीट कर कहा इलेक्ट्रॉनिक निगरानी की अनुमति देने का सरकार का आदेश नागरिक स्वतंत्रता एवं लोगों की निजी स्वतंत्रता पर सीधा हमला है| एजेंसियों को फोन कॉल एवं कंप्यूटरों की बिना किसी जांच के जासूसी करने का एकमुश्त ताकत देना बहुत ही चिंताजनक है| इसके दुरुपयोग की आशंका है|
अब मोदी जी के कान और आंखें अब घर घर में हैं| हर फोन पर हुई बातचीत, हर फोन पर हुए मेसेज पर निगरानी रख सकते हैं| कोई मां बेटे से बात कर रही है तो मोदी सुन रहे हैं| बेटा पिता से बात कर रहा है, कोई पत्रकार मोदी सरकार की नीतियों पर टिप्पड़ियां कर रहा है तो मोदी जी सुन रहे हैं| कोई किसान मोदी
सरकार की किसान विरोधी नीतियों पर बात कर रहा है तो मोदी जी सुन सकते हैं| कोई युवा गूगल कर रहा है तो मोदी जी उस पर अपनी नज़र रख सकते है

