
कर्नाटक की कांग्रेस-जेडीएस गटबंधन वाली सरकार का कहना है कि वह हर साल की तरह इस साल भी टीपू सुल्तान की जयंती मनाएगी| ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस-जेडीएस गटबंधन सरकार का कहना है कि वह टीपू सुलतान की जयंती को मनाना जारी रखेगी|
मालुम हो पिछले कुछ वर्षो से कर्नाटक में टीपू सुलतान की जयंती को लेकर विवाद उठा है जिसमे बीजेपी और इसके सहयोगी दलों ने टीपू जयंती मनाने का विरोध किया था| इनका कहना है कि टीपू सुल्तान एक क्रूर, हिन्दू विरोधी और कट्टर मुस्लिम शासक था| वहीँ इसके उलट कांग्रेस सरकार टीपू सुल्तान को बहादुर और अंग्रेजों से लोहा लेने वाला बताकर इस जयंती को मनाते आई है|
बता दें पिछले साल विवाद के बाद कर्नाटक हाईकोर्ट की एक खंड पीठ ने टीपू की जयंती मनाने पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था| इस साल फिर एक मामला हाई कोर्ट में दर्ज कराया गया है जिसकी सुनवाई 9 नवंबर को होनी है|
कई हिंसक विरोध प्रदर्शन हो चुके
टीपू सुलतान की जयंती को लेकर राज्य में बीते कुछ सालों में कई हिंसक प्रदर्शन हो चुके है| साल 2015 में कर्नाटक के कोडागु ज़िले में टीपू सुल्तान की जयंती के विरोध में एक प्रदर्शन के दौरान विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के एक कार्यकर्ता की मौत हो गई थी| इसके साथ ही कई लोग घायल हुए थे|
मुस्लिम शासकों पर बीजेपी की राजनीती
बीते कुछ सालों से केंद्र की बीजेपी सरकार मुस्लिम शासकों को हिन्दू विरोधी बताते आई है| इसका उदहारण हम केंद्र सरकार द्वारा मुस्लिम संस्कृति से प्रेरित शहरों के नाम बदलने से देख सकते है| इससे पहले बीजेपी ने मुग़ल शासक द्वारा बनाए ताज महल का मुद्दा उठाया था| वहीँ, 18वीं सदी के शासक टीपू सुल्तान भी बीजेपी की राजनीती का हिस्सा बने हुए है|
Related Articles:
- सरदार पटेल की प्रतिमा के बाद भगवान राम की प्रतिमा बनाने की योजना
- मोदी ने विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति का किया उद्घाटन, सरदार वल्लभभाई पटेल को ‘संयुक्त भारत’ का दिया श्रेय
बीजेपी की राजनीति पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश शर्मा कहते हैं कि कर्नाटक में बीजेपी इसे एक बड़ा मुद्दा बनाकर रखेगी| इसकी वजह यह है कि बीजेपी वहां पर कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को हिंदू विरोधी नेता साबित करना चाहती है और ये भी कि उनकी नीतियां हिंदू विरोधी हैं|
टीपू सुलतान पर क्या कहता है इतिहास?
टीपू से जुड़े दस्तावेज़ों की छानबीन करने वाले इतिहासकार टीसी गौड़ा कहते हैं कि टीपू को सांप्रदायिक शासक बताने वाली कहानी गढ़ी गई है| टीपू ऐसे भारतीय शासक थे जिनकी मौत मैदान-ए-जंग में अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ लड़ते-लड़ते हुई थी| साल 2014 की गणतंत्र दिवस परेड में टीपू सुल्तान को एक अदम्य साहस वाला महान योद्धा बताया गया था|
गौड़ा कहते हैं, ‘टीपू ने श्रिंगेरी, मेल्कोटे, नांजनगुंड, सिरीरंगापटनम, कोलूर, मोकंबिका के मंदिरों को ज़ेवरात दिए और सुरक्षा मुहैया करवाई थी|’ वो कहते हैं कि यह सभी सरकारी दस्तावेज़ों में मौजूद हैं| कोडगू पर बाद में किसी दूसरे राजा ने भी शासन किया जिसके शासनकाल के दौरान महिलाओं का बलात्कार हुआ| ये लोग उन सबके बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं? वहीं, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर नरेंद्र पानी टीपू पर एक अलग नज़रिया रखते हैं| वे कहते हैं कि अठारहवीं सदी में हर किसी ने लूटपाट और औरतों का बलात्कार किया| 1791 में हुई बंगलुरू की तीसरी लड़ाई में तीन हज़ार लोग मारे गए थे| बहुत बड़े पैमाने पर बलात्कार और लूटपाट हुआ| लड़ाई को लेकर ब्रितानियों ने जो कहा है उसमें उसका ज़िक्र है|
आगे प्रोफ़ेसर नरेंद्र पानी कहते हैं कि हमारी सोच 21वीं सदी के अनुसार ढलनी चाहिए और हमें सभी बलात्कारों की निंदा करनी चाहिए, चाहे वो मराठा, ब्रितानी या फिर दूसरों के हाथों हुआ हो| टीपू के सबसे बड़े दुश्मनों में से एक हैदराबाद के निज़ाम थे| इस मामले को एक सांप्रदायिक रंग देना ग़लत है| इतिहास के मुताबिक सच यह है कि श्रिंगेरी मठ में लूटपाट मराठों ने की थी, टीपू ने तो उसकी हिफ़ाज़त की थी|

