Highlights
- सरकार के शीर्ष पदों में संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा कुछ उम्मीदवारों के चयन को लेकर विवाद बना हुआ है|
- सुजीत कुमार बाजपेयी बतौर वरिष्ठ प्रबंधक के तौर पर प्रमुख पद के लिए काफी जूनियर हैं|
- सरकार में शामिल होने वाले नौ सवर्ण विशेषज्ञों को ही सूचि में शामिल किया गया है| अन्य जाति विशेष को अनदेखा किया गया है|
- सवाल उठता है कि आखिर सरकार ने सभी शीर्ष पदों पर सवर्णों के अलावा अन्य जाति के विशेषज्ञों को जगह क्यों नहीं दी?
- ये ‘सबका साथ, सबका विकास’ का दावा करने वाली सरकार की इच्छा पर सवाल उठाते है|
सरकार के शीर्ष पदों में सीधी भर्ती को लेकर चिंता पैदा हो रही है क्यूंकि संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा कुछ उम्मीदवारों के चयन को लेकर सवाल उठ रहे है| सवाल इसलिए उठ रहे है क्यूंकि सुजीत कुमार बाजपेयी को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में संयुक्त सचिव नियुक्त किया गया जिसे लेकर विवाद खड़ा हो गया है| विवाद की वजह यह मानी जा रही है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एनएचपीसी में बतौर वरिष्ठ प्रबंधक के तौर पर वह सरकार में निर्णय लेने वाले प्रमुख पद के लिए काफी जूनियर हैं|
वहीँ, कंसल्टेंसी फर्म केपीएमजी के साझेदार अंबर दुबे का चयन नागरिक उड्डयन मंत्रालय में संयुक्त सचिव के तौर पर किया गया है| इनके नियुक्ति के बाद भी कई सवाल उठ रहे है क्योंकि वह हवाई अड्डे से जुड़ी प्रमुख कंपनी जीएमआर इन्फ्रास्ट्रक्चर व विमान सेवा कंपनी विस्तारा समेत उड्डयन क्षेत्र की कई निजी कंपनियों को सलाह देते रहे हैं|
बता दें कि सुजीत कुमार बाजपेयी चर्चित अभिनेता मनोज बाजपेयी के छोटे भाई हैं| बाजपेयी की नियुक्ति पर सचिव स्तर के एक अधिकारी का कहना है कि बाजपेयी के बायोडाटा के अनुसार उन्होंने 2001 में एनएचपीसी ज्वाइन किया था| देखा गया है कि अगर सभी ग्रुप-ए अधिकारी जिन्होंने उसी साल यूपीएससी के जरिए अखिल भारतीय सेवा में प्रवेश किया है वे संयुक्त सचिव बन गए हैं| क्या वह एक विशेष पेशेवर हैं और प्रोन्नति दी गई है? अगर नहीं तो यह और भी चिंता का विषय है|
केवल सवर्ण विशेषज्ञों को पद में दी जगह
इन पदों में संयुक्त रूप से सरकार में शामिल होने वाले नौ सवर्ण विशेषज्ञों को ही सूचि में शामिल किया गया है जिसमें महिलाएं, दलित, बहुजन, मुस्लिम व अन्य जातियों व वर्गों को अनदेखा किया गया है| सरकार द्वारा शीर्ष पदों पर 5 ब्राह्मण, 1 राजपूत, 1 बनिया, 1 भूमिहार को नियुक्त किया गया है जो सभी उच्च जाति के है|
सरकार के उच्च पदों में इन 9 सवर्णों को पद मिला है: काकोली घोष- कृषि, सहयोग और किसानों के विभाग, अंबर दुबे- नागरिक उड्डयन मंत्रालय, राजीव सक्सेना-आर्थिक मामलों के विभाग, दिनेश दयानंद जगदाले- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, सुजीत कुमार बाजपेयी- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, अरुण गोयल- व्यापार महकमा, सौरभ मिश्रा- वित्तीय विभाग, सुमन प्रसाद सिंह- सड़क परिवहन मंत्रालय और भूषण कुमार- जहाजरानी मंत्रालय में नियुक्त हुए|
शीर्ष पदों पर नियुक्त विशेषज्ञों की योग्यता पर उठने वाले सवालों के पीछे यह भी चिंता पैदा होती है कि सभी पदों पर मौजूदा सरकार ने भारत की उच्च जातियों के विशेषज्ञों को ही नियुक्त किया है| ऐसे में सत्ता पर मोदी सरकार, जिसने 2014 के आम लोकसभा चुनाव में ‘सबका साथ और सबका विकास’की बात कही थी| ऐसे में यह सवाल उठाना लाज़िमी है कि आखिर सरकार ने सभी शीर्ष पदों पर सवर्णों व ब्राह्मणों के अलावा अन्य जाति व वर्ग के विशेषज्ञों को जगह क्यों नहीं दी? इस प्रकार से ये आंकड़े ‘सबका विकास’ करने की सरकार की इच्छा पर सवाल उठाती है| सरकार के शीर्ष पदों पर केवल सवर्णों एवं ब्राह्मणों को जगह देना मोदी सरकार के कामकाज पर काफी कुछ कहती है|
सामाजिक टिप्पीणीकार सरफ़राज़ नासिर जंग की माने तो उनका कहना है कि जिस तरह से सरकार के सभी शीर्ष पदों पर सवर्णों को जगह दी गई है, इसी तरह अगर बहुजन समाज का किसी एक विशेष जाती व वर्ग के लोगों को इन सभी 9 पदों पर नियुक्त किया जाता तो अब तक देश में बवाल मच गया होता| देश की मीडिया और राजनेता अब तक संसद में हल्ला मचा चुके होते और टेलीविज़न पर बड़ी-बड़ी हैडलाइन बन चुकी होती| इससे मीडिया और सरकार का एक जाति विशेष के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया की तस्वीर पेश करती है|