केंद्र सरकार ने हाल ही में सोशल मीडिया पर #MeToo कैंपेन के तहत कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न मामलों के रोकथाम के लिए कानूनी और संस्थागत ढांचे पर रिटायर्ड न्यायाधीशों का एक पैनल स्थापित करने का फैसला किया है। हालांकि, 2013 के आरंभ में न्यायमूर्ति जेएस वर्मा कमेटी ने लिंग कानूनों की रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न कानून में आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) की बजाय राज्य स्तरीय रोजगार ट्रिब्यूनल की स्थापना करने की सिफारिश की थी।
दिल्ली निर्भया गैंग रेप के बाद हुए जबर्दश्त प्रदर्शनों के बाद सरकार ने एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा के नेतृत्व में यौन हिंसा को रोकने के लिए कानूनी सुधारों समेत अन्य उपायों की सिफारिश के लिए एक पैनल गठित किया था| कमेटी ने दुनिया भर के उदाहरणों को ध्यान में रखते हुए इस पर गहराई से विचार किया| इस रिपोर्ट से बहुत सी महिलाओं में हिम्मत बँधी कि उन्हें हिंसा से छुटकारा मिलेगा और यौन अपराध के मामलों में न्याय किया जाएगा| उस समय कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) विधेयक लोकसभा द्वारा पारित कर दिया गया था और राज्यसभा की मंजूरी का इंतजार कर रहा था। विधेयक एक महीने बाद ऊपरी सदन द्वारा अपरिवर्तित पारित किया गया।
इस विधेयक का जायजा लेने वाली स्थाई संसदीय समिति की मजबूत राय है कि विधेयक में प्रतिबिंबित होने वाला रोकथाम का पहलू सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक होना चाहिए जो उसने 1997 के विशाखा वाद के संबंध में दिए गए थे| इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में न सिर्फ कार्य स्थलों पर यौन उत्पीड़न को परिभाषित किया गया है बल्कि इसकी रोकथाम और अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए दिशा निर्देश भी निर्धारित किए गए है| इस विधेयक में सभी दफ्तरों, अस्पतालों, संस्थानों और अन्य कार्यस्थलों को निर्देश दिया गया है कि वे यौन उत्पीड़न से जुड़ी शिकायतों से निपटने के लिए एक आंतरिक कमेटी बनाएं| साथ ही बताया गया कि इस कमेटी का नेतृत्व कोई महिला ही करेगी|
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चूंकि भारत में बहुत सारी कंपनियों में 10 से कम कर्मचारी काम करते हैं और उनके लिए ऐसी कमेटी का गठन करना संभव नहीं है इसलिए इस विधेयक में प्रावधान है कि जिला अधिकारी स्थानीय शिकायत समिति का गठन किया जाए|
परन्तु न्यायमूर्ति वर्मा की अध्यक्षता वाली समिति, न्यायमूर्ति लीला सेठ और वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने यौन उत्पीड़न विधेयक को असंतोषजनक बताया और कहा कि यह विशाखा दिशानिर्देशों की भावना को प्रतिबिंबित नहीं करता है|
रिपोर्ट में कहा गया है कि तत्कालीन प्रस्तावित कानून के तहत निर्धारित एक आंतरिक शिकायत समिति जिसमें महिलाएं अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है। शिकायतों के शीघ्र निपटान को सुनिश्चित करने के लिए न्यायमूर्ति वर्मा कमेटी ने प्रस्तावित किया कि ट्रिब्यूनल को सिविल कोर्ट के रूप में कार्य नहीं करना चाहिए लेकिन शिकायत से निपटने के लिए अपनी प्रक्रिया का चयन कर सकते हैं।
समिति ने कहा कि किसी भी ‘अवांछित व्यवहार’ को शिकायतकर्ता की व्यक्तिपरक धारणा से देखा जाना चाहिए| वर्मा पैनल ने कहा कि यदि नियोक्ता यौन उत्पीड़न की सुविधा देता है, तो ऐसे उस कंपनी की नीति का खुलासा भी होता है जहाँ महिलएं यौन उत्पीड़न की शिकायतें दर्ज नहीं करा पाती| इसके साथ ही कंपनी शिकायतकर्ता के मुआवजे का भुगतान करने के लिए भी उत्तरदायी होगी|
पैनल ने महिलाओं को आगे आने और शिकायत दर्ज करने के लिए कई सुझाव भी दिए है। साथ ही महिलाओं द्वारा झूठी शिकायतों के लिए उन्हें दंडित करने का विरोध किया और इसे कानून के उद्देश्य को खत्म करने का अपमानजनक प्रावधान बताया। वर्मन पैनल ने यह भी कहा कि शिकायत दर्ज करने के लिए तीन महीने की समय सीमा को समाप्त किया जाना चाहिए और शिकायतकर्ता को उसकी सहमति के बिना स्थानांतरित नहीं किया जाना चाहिए।

