राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा चर्चा में है। पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले और फिर उसके बाद बालाकोट में आतंकी शिविर पर भारतीय वायुसेना की कार्रवाई के कारण चुनाव में चर्चा पर है। नगालैंड के माओवादियों और उग्रवादी संगठनों के बीच गठजोड़ से केंद्रीय गृह मंत्रालय की नींद उड़ गई है। माओवादियों की गतिविधियों का विस्तार आगामी समय में भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकता है। फिलहाल स्थिति यह है कि मंत्रालय के आदेशानुसार राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) नगालैंड के उग्रवादी संगठनों और माओवादियों के बीच किसी भी तरह की बात-चीत का पता लगाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
Related Article:हथियारों की खरीद के मामले में भारत दूसरे स्थान पर
बिहार पुलिस ने पूर्णिया में अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर और एके 47 रायफलों बरामद की। गृह मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार पता चला कि ये हथियार म्यांमार सीमा के उस पार से नगालैंड के उग्रवादी समूहों की मदद से लाए गए थे और ये देश भर के माओवादियों के पास भेजे जाने वाले थे। गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार सुरक्षित स्थान खोज रहे माओवादियों ने सुरक्षा बलों की कड़ी कार्रवाई के मद्देनजर रखते हुए पहले भी मदद मांगी थी।
फरवरी में बिहार पुलिस ने मणिपुर से दो और उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था। एनआईए ने इनसे हथियारों के मुख्य व्यापारी के बारे में पूछ-ताछ की। सूत्रों का कहना है कि पटना का मुकेश सिंह हथियारों के व्यापारी और माओवादियों के बीच की मुख्य आदमी है। फिलहाल वह फरार है।
माओवादी देश में फिलहाल सक्रिय वामपंथी उग्रवादी समूहों में घातक है। इसका गठन पीपुल्स वार और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर के विलय से 21 सितंबर 2004 को हुआ था। माओवादी एक लंबे समय से पैर जमाने की कोशिश कर रहे हैं। असम में उनकी मौजूदगी पर 2006 में गृह मंत्रालय का पहली बार ध्यान गया था। जबकि सूत्रों का कहना है कि इस इलाके में वे 1996 से हैं। पीपुल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कान्गलाईपाक, युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी,ऑल आदिवासी नेशनल लिबरेशन आर्मी और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड इन समूहों में शामिल हैं। 2004 में ही उन्होंने असम और त्रिपुरा स्थापित कर लीं है।
Related Article:शोहराबुद्दीन फेक एनकाउंटर केस: अमित शाह सहित 21 पुलिसवाले को सीबीआई कोर्ट ने दी क्लीन चिट
बंगाल में पीएलए का एक आधार स्थापित हो गया। यह विस्फोटक, हथियार और संचारकी चीजे जुटाने में लगे हुए है। भारतीय खुफिया एजेंसियों का कहना है कि भारत के पूर्वोत्तर इलाके में चीन की खासी दिलचस्पी है। इन एजेंसियों का मानना है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ मिलकर चीन इस इलाके के संघर्ष को सक्रिय रखे हुए है। भारत सरकार के लिए इससे निपटना आवशयक है। सत्तर के दशक में जो आंदोलन पश्चिम बंगाल में सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया था वही अस्सी के दशक के अंत में आंध्र प्रदेश में फिर से उभरा और उसने मध्य भारत में अपनी जड़ें जमा लीं।