देश भर में राष्ट्रीय पोषण माह मनाया जा रहा है| कुपोषण के खिलाफ छिड़ी लड़ाई को चिन्हित करने के लिए प्रतिवर्ष सितम्बर के महीनें में इसे विशेषरूप से मनाया जाता है|
राष्ट्रीय पोषण माह के दौरान केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा कुपोषण से जुड़े मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लक्ष्य से विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करेंगे| इस महीनें स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियों को ख़त्म करने की दिशा में किशोर लड़कियों, गर्भवती महिलाओं एवं स्तनपान कराने वालीं महिलाओं पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा|
देश के विकास की राह में कुपोषण एक बड़ी चुनौती है| गौरतलब है वर्ष 2017 में पेश हुई ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ की रिपोर्ट में भारत का स्थान 45 स्थानों की गिरावट के साथ 100वें स्थान पर आ गया है|
भारत से कुपोषण जैसी समस्या को जड़ से मिटाने के लिए एक महिना पर्याप्त नहीं है| इसके लिए सरकार और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े मंत्रालय और संस्थाओं को एकीकृत हो कर कार्य करने की ज़रूरत है क्यूंकि भारत की हालत स्वाथ्य क्षेत्र में पहली ही ख़राब है|
भारत का हाल
वर्तमान समय में भारत के लगभग 50 प्रतिशत गाँवों में कुपोषण एक व्यापक समस्या बनी हुई है। भारत में प्रत्येक वर्ष जितनी मौतें होती हैं उनमें 5 फीसदी का कारण कुपोषण है।
यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में कुपोषण के शिकार बच्चों की कूल संख्या 14.6 फीसद है, जिनमें 5.7 करोड़ की तादाद अकेले भारत की है|
यह चिंताजनक है कि हमारे देश में तीन वर्ष से कम आयु के 47 फीसदी बच्चें कुपोषित है| वर्ष 2015-16 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के अनुसार कुपोषण के कारण देश भर के 38.5 फीसदी पाँच साल तक के बच्चों की लम्बाई उम्र से काफी कम थी। आंकड़ों के मुताबिक भारत में 17 लाख बच्चें एक साल की उम्र पूरा करने से पहले ही मर जाते है वहीँ, 1.08 लाख बच्चें एक महीने की उम्र भी पूरा नहीं कर पातें हैं।
देश में तकरीबन 19 करोड़ लोग कुपोषित हैं। यह आंकड़ा कुल आबादी का 14 फीसदी के करीब है। कुपोषण के मामलें में सबसे ज्यादा खराब स्थिति महिलाओं की है वहीँ, 18 साल तक के बच्चों की तादाद 43 करोड़ है।
इन राज्यों में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चें
- झारखंड – 42%
- बिहार – 37%
- मध्य प्रदेश – 36%
- उत्तर प्रदेश – 34.1%
- मणिपुर – 14.1%
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 के अंत तक भारत में 40% बच्चें अंडर न्यूट्रीशन के शिकार थे, जबकि 37 फीसदी बच्चें सामान्य से कम वज़न के हैं| साथ ही 21 फीसदी ऐसे बच्चें हैं जिन्हें कुपोषण के कारण लम्बाई में फर्क पड़ा है वहीँ, 8 फीसदी ऐसे हैं जिनकी कुपोषण के कारण हालत खराब है|
हाल ही में दिल्ली के तीन मासूम बच्चियों की कुपोषण और भुखमरी से मौत ने देश को स्तब्ध कर दिया था| पोस्टमार्टम रिपोर्ट से मालुम हुआ कि 7-8 दिन से बच्चों ने कुछ नहीं खाया था| यह घटना सरकार की योजनाओं और नीतियों पर कई सवाल खड़ें करती है|
सख्ती से लागू हो सरकारी योजना
अधिकतर यह देखा गया कि योजनाएं सरकारी फाइलों में ही बंद पड़ी होती है, वह ज़मींन तक उतर नहीं पाती| कुपोषण से निपटने के लिए केन्द्र और राज्यों के बीच योजनाओं में समन्वय ज़रूरी है।
कुपोषण के मामलों में अक्सर दूषित पेयजल प्रमुख कारण होता है| देश के ग्रामीण अंचलों में लोग गड्ढों, तालाबों, पोखरों का प्रदूषित पानी पिने को मजबूर हैं। ऐसे में अधिकतर लोग पोषण युक्त आहार से वंचित है।
सरकारी योजनाओं का सख्ती से लागू न होना इसका प्रमुख कारण है| इसके साथ- साथ सरकार को ऐसी नीतियाँ बनाने की ज़रूरत है जिससे देश में बढ़ रही सामाजिक असामनता को कम किया जा सकें|

