
अगर आप भारत में मुसलमान हैं तो इस बात का अंदेशा अधिक है कि आप जेल में होंगे, लगभग दोगुना ज्यादा| अगर आप किसी सेकुलर पार्टी के शासन वाली सरकार में रह रहे हैं तो सुरक्षित महसूस करने का आपके लिए कोई कारण नहीं है| सिख समुदाय के 4.5 फ़ीसदी लोग जेलों में बंद हैं, ईसाई समुदाय के 4.3 फ़ीसदी लोग जेलों में बंद हैं| आंकड़े यह भी बताते हैं कि 5.4 फ़ीसदी मुसलमान, 1.6 फ़ीसदी सिख और 1.2 फ़ीसदी ईसाई कैदियों पर ही आरोप तय हो पाया है| वहीं 14 फ़ीसदी मुसलमान, 2.8 फ़ीसदी सिख और 3 फ़ीसदी ईसाई कैदी फिलहाल अंडरट्रायल हैं|
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से जाहिर होता है कि मुसलमानों को जेल भेजने के मामले में सेकुलर-कम्युनल सरकारों का भेद नहीं है| नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक भारत के कुल कैदियों में 28.5 फ़ीसदी क़ैदी विभिन्न अल्पसंख्यक समुदायों से संबंध रखते हैं| जबकि देश की आबादी में इनकी हिस्सेदारी मात्र 20 फ़ीसदी है| लंबे समय तक लेफ्ट फ्रंट का गढ़ रहे पश्चिम बंगाल में हर चौथा व्यक्ति मुसलमान है, पर वहां भी जेलों में लगभग आधे कैदी मुसलमान हैं| बंगाल में कभी किसी सांप्रदायिक पार्टी का राज नहीं रहा| यही नहीं, महाराष्ट्र में हर तीसरा तो उत्तर प्रदेश में हर चौथा कैदी मुसलमान है| यह स्थिति ठीक वैसी है जैसी अमेरिकी जेल में अश्वेत कैदियों की है| अमेरिकी जेलों में कैद 23 लाख लोगों में आधे अश्वेत हैं जबकि अमेरिकी आबादी में उनका हिस्सा सिर्फ 13 फीसदी है|
जम्मू-कश्मीर, पुडुचेरी और सिक्किम के अलावा देश के अमूमन हर सूबे में मुसलमानों की जितनी आबादी है, उससे अधिक अनुपात में मुसलमान जेल में हैं| यूपी के गाजियाबाद जेल के विचाराधीन 2,200 कैदियों में 720 मुसलमान थे| अन्य जेलों से मिले आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं, जिसे राज्यवार संकलित किया गया है| इसी साल महाराष्ट्र की जेलों में किए गए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआइएस) के अध्ययन से मुसलमानों को लेकर पुलिस और न्याय व्यवस्था का पूर्वाग्रह जाहिर होता है| अध्ययन में शामिल किए गए ज्यादातर कैदियों का आतंकवाद या संगठित अपराध से वास्ता नहीं था| उनमें ज्यादातर (71.9 फीसदी) आपसी विवाद में उलझे थे और पहली बार मामूली अपराध के आरोप में जेल जाने वालों की संख्या 75.5 फीसदी थी|
आतंकवाद के नाम पर कहर
दिल्ली के मोहम्मद आमिर खान का मामला व्यवस्था के पूर्वाग्रह और निष्ठुरता की कहानी कहता है| दिसंबर, 1996 और अक्तूबर, 1997 में दिल्ली, रोहतक, सोनीपत और गाजियाबाद में करीब 20 देसी बम विस्फोटों के आरोप में गिरफ्तार तब 18 वर्षीय आमिर को 14 साल बाद अदालत ने रिहा कर दिया| लेकिन इन वर्षों में उनकी दुनिया उजड़ गई| गिरफ्तारी के तीन साल बाद वालिद हाशिम खान समाज के बहिष्कार और न्याय की आस छोड़कर दुनिया से चल बसे, तो दशक भर की लड़ाई के बाद 2008-09 में आखिर आमिर की मां की हिम्मत भी जवाब दे गई| वे लकवाग्रस्त हो गईं आमिर कहते हैं, ”आज भी अपनी वालिदा के मुंह से ‘बेटा’ शब्द सुनने को तरसता हूं|
मुस्लिम युवाओं पर जुल्म के मामले में सीपीएम महासचिव प्रकाश करात के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल ने 17 नवंबर को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से भी मुलाकात कर 22 मुसलमानों के वर्षों बाद कोर्ट से बरी होने का जिक्र करते हुए एक ज्ञापन भी सौंपा| इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल आमिर ने बताया, ”मैंने राष्ट्रपति महोदय से कहा कि हम अतीत को भूलना चाहते हैं और बेहतर भविष्य बनाना चाहते हैं, जिसमें आपके सहयोग की जरूरत है| कई निर्दोष मुस्लिम युवकों को आतंकवादी बताकर जेल में ठूंस दिया गया है| यही नहीं सांप्रदायिक दंगों में भी सबसे ज्यादा यही तबका पीडि़त हुआ है| मुसलमान ही दंगों में मारे जा रहे हैं और पुलिस इन्हीं लोगों को आरोपी बनाकर जेल में बंद कर रही है| लेकिन इसे रोकने के लिए अभी तक कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं|

