सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बढ़ते फेक न्यूज़ और अफवाहों के खिलाफ केंद्र सरकार सुचना प्रोद्योगिकी (आईटी) अधिनियम में संशोधन करने की तैयारी कर रही है| संशोधन के तहत ऐसी व्यवस्था की जाएगी जिससे इस तरह के संदेश फैलाने वालों की पहचान सुनिश्चित हो सके| संशोधन के बाद तमाम सोशल मीडिया एप्स को ऐसे उपाय करने होंगे जिससे ऐसे संदेशों को न सिर्फ रोका जा सके बल्कि ऐसे असामाजिक तत्वों की पहचान भी की जा सके|
नए ड्राफ्ट रूल्स में फेसबुक, गूगल, ट्विटर, याहू, वॉट्सऐप जैसी इंटरमीडियरी पर उनके प्लेटफॉर्म पर यूजर्स की ओर से पोस्ट किए जाने वाले कंटेंट को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी डाली गई है| प्रस्ताव के मुताबिक, देश में 50 लाख से अधिक यूजर्स वाले सभी प्लैटफॉर्म्स को कंपनीज ऐक्ट के तहत भारत में एक रजिस्टर्ड एंटिटी रखनी होगी और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ समन्वय के लिए एक नोडल ऑफिसर नियुक्त करना होगा|
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IT एक्ट के सेक्शन 79 के तहत इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरीज गाइडलाइंस) रूल्स में संशोधनों के ड्राफ्ट में कंपनियों के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों से शिकायत मिलने के 72 घंटे के अंदर मेसेज की जांच कर उसकी शुरुआत के स्थान की रिपोर्ट देना अनिवार्य बनाया गया है| देश की सुरक्षा, साइबर सिक्यॉरिटी या किसी अपराध की जांच, नियंत्रण या रोकथाम से जुड़े केसों में ऐसा करना होगा| इसके साथ ही सोशल मीडिया कंपनियों और मेसेजिंग ऐप्स को मानहानि वाले या राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ माने गए कंटेंट तक पहुंच को 24 घंटे के अंदर बंद करना पड़ सकता है| इन प्लेटफॉर्म्स को अपनी प्राइवेसी पॉलिसी की यूजर्स को महीने में एक बार जानकारी भी देनी होगी|
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने पिछले सप्ताह गूगल, फेसबुक, वाट्सएप और ट्विटर जैसी कंपनियों के साथ बैठक करके आइटी एक्ट में संभावित बदलावों पर चर्चा की| सूत्र बताते हैं कि मंत्रालय ने कानून में संशोधन के लिए जो मसौदा तैयार किया है उसके मुताबिक अपने प्लेटफार्म पर सभी तरह के गैरकानूनी संदेशों को रोकने की जिम्मेदारी इन कंपनियों की होगी|
शुरू हुआ विवाद
सरकार ने ड्राफ्ट पर जनता से 15 जनवरी तक राय मांगी है| इन रूल्स का मकसद फेक न्यूज और अफवाहों पर रोक लगाने के लिए फेसबुक और वॉट्सऐप जैसी सोशल मीडिया कंपनियों और मेसेजिंग ऐप्स का रेगुलेशन कड़ा करना है लेकिन सोशल एक्टिविस्ट्स और विपक्षी दलों ने इस कदम का विरोध करते हुए इसे नागरिकों की जासूसी करने की एक और कोशिश बताया है|
एक्टविस्ट्स ने इस कदम पर यह कहते गंभीर चिंता जताई कि पिछले गुरुवार को जारी किए गए होम मिनिस्ट्री के नोटिफिकेशन के साथ जोड़कर देखें तो आईटी ऐक्ट के एक मौजूदा नियम के तहत ये नई इंटरमीडियरी गाइडलाइंस भारत को एक निगरानी करने वाले देश में बदल देंगी|
जमीनी वास्तविकता से दूर
केंद्र सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर फ़ैल रहे अफवाहों के रोकथाम के लिए उठाए जा रहे इस कदम को लेकर साइबर कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल ने कहा कि इनमें से कुछ बदलाव भारत के अपने ऐंटी एन्क्रिप्शन कानून के समान हैं। दुग्गल ने बताया कि प्रस्तावित संशोधन मध्यस्थों के लिए कानून को स्पष्ट करेगा। अभी तक इस पर किसी तरह की स्पष्टता नहीं थी। इससे हमारे साइबर कानून को भारत से बाहर स्थित इकाइयों पर भी लागू करने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इसमें 50 लाख से अधिक के प्रयोगकर्ताओं वाली मध्यस्थ इकाइयों के लिए भारत में स्थायी कार्यालय रखना और विधि प्रवर्तन एजेंसियों के साथ संयोजन के लिए नोडल अधिकारी की नियुक्ति करने का प्रावधान मनमाना है और जमीनी वास्तविकता पर आधारित नहीं है।
अभिव्यक्ति की आजादी के लिए खतरा
इस मसले पर डिजिटल अधिकार कार्यकर्ता निखिल पाहवा ने कहा कि आईटी कानून में जिन बदलावों का प्रस्ताव किया गया है, वे नागरिकों, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति के लिए ‘हानिकारक’ हैं। एक अन्य उद्योग विशेषज्ञ ने कहा कि गैरकानूनी सूचना या सामग्री को परिभाषित नहीं किया गया है। इसी तरह मंचों के लिए जो 50 लाख से अधिक के प्रयोगकर्ताओं की शर्त का प्रस्ताव किया गया है, उसकी भी व्याख्या की जरूरत है| हालांकि, मंत्रालय ने ड्राफ्ट अमेंडमेंट्स को यह कहकर उचित ठहराया कि संसद के मॉनसून सत्र में ‘सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स के दुरुपयोग और फेक न्यूज की समस्या’ पर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जवाब में प्रसाद ने कहा था कि ‘सरकार लीगल फ्रेमवर्क मजबूत करने को प्रतिबद्ध है और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को कानून के तहत जवाबदेह बनाना चाहती है|’ एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने ईटी को बताया कि लोगों की प्राइवेसी में ताकझांक करने के आरोप के उलट प्रस्तावित नियमों का मकसद फेक न्यूज पर लगाम कसना है| उन्होंने कहा, ‘अगर लोगों को घेरकर मारने जैसे जघन्य अपराध हो रहे हों तो सरकार की जांच एजेंसियां यह जानना चाहेंगी कि इसके पीछे किन लोगों का हाथ है|’
ईटी ने अगस्त में रिपोर्ट दी थी कि सरकार आईटी एक्ट के सेक्शन 79 के तहत इंटरमीडियरी गाइडलाइंस को बदलना चाहता है ताकि सोशल मीडिया कंपनियों को उनके प्लेटफॉर्म पर कंटेंट के लिए ज्यादा जवाबदेह बनाया जा सके|

