सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को देश की जेलों की दयनीय हालत पर केन्द्र की खिंचाई की और सवाल किया कि ‘अधिकारियों की नजरों में‘ कैदियों को इंसान माना जाता है या नहीं| न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर की अध्यक्षता वाली पीठ ने भारत में फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं में करीब 48 प्रतिशत पदों के रिक्त होने पर भी संज्ञान लिया और केन्द्र से पूछा कि ऐसी स्थिति में विचाराधीन कैदियों के लिए शीघ्र सुनवाई सुनिश्चित कैसे होगी? न्यायमूर्ति लोकूर ने टिप्पणी की, ”पूरी चीज का मजाक बना दिया गया है| क्या कैदियों के कोई अधिकार हैं? मुझे नहीं पता कि अधिकारियों की नजरों में उन्हें (कैदियों को) इंसान भी माना जाता है या नहीं| न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर ने कहा, “क्या हो रहा है? जेलों में एक समांतर प्रणाली चल रही है? क्या जेलों में विशेष अधिकार हैं?”
तिहाड़ जेल से संबंधित समाचार पत्र की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा, “तिहाड़ में क्या चल रहा है? लोग टीवी, सोफा का आनंद ले रहे हैं| सरकार का जवाब क्या है? क्या आप कहेंगे कि आप केंद्र हैं और यह राज्य का मुद्दा है?” इस दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने कहा कि इस मामले को तत्काल ध्यान देने की जरूरत है| अब अगले सोमवार को मामले की सुनवाई होगी और केंद्र सरकार इसका जवाब देगी|
दरअसल पिछले दिनों मीडिया में खबर आई थी कि तिहाड़ जेल में यूनिटेक के प्रमोटर संजय चंद्रा व उनके भाई को टीवी व सोफा आदि दिए गए हैं| इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा जेलों में बंद कैदियों की दुर्दशा पर जरूरी सुविधा ना देने पर नाराजगी जताई| सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा की जेलों में कैदियों की रहने के लिए ठीक से व्यवस्था नहीं है| सालों से जेलों के भीतर रंगाई और पुताई नहीं कराई गई है| जेलों में टॉयलेट और सीवेज साफ नहीं कराए जाते हैं| सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जेलों में बंद महिला कैदियों के बच्चों के रहने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है|
जेलों में ठूंस–ठूंस कर भरे कैदी
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के प्रिजन स्टैटिस्टिक्स इंडिया, 2015 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की कई जेलें, कैदियों की संख्या के लिहाज से छोटी पड़ रही हैं| भारतीय जेलों में क्षमता से 14 फीसदी ज़्यादा कैदी रह रहे हैं| इस मामले में छत्तीसगढ़ और दिल्ली देश में सबसे आगे हैं, जहां की जेलों में क्षमता से दोगेुने से ज़्यादा कैदी हैं| मेघालय की जेलों में क्षमता से 77.9 प्रतिशत ज़्यादा, उत्तर प्रदेश में 68.8 प्रतिशत और मध्य प्रदेश में 39.8 प्रतिशत ज़्यादा कैदी हैं| शुद्ध संख्या के हिसाब से उत्तर प्रदेश में विचाराधीन कैदियों की संख्या सबसे ज़्यादा (62,669) थी| इसके बाद बिहार (23,424) और महाराष्ट्र (21,667) का स्थान था| बिहार में कुल कैदियों के 82 फीसदी विचाराधीन कैदी थे, जो सभी राज्यों में सबसे ज़्यादा था|
भारतीय जेलों में बंद 67 फीसदी लोग विचाराधीन कैदी हैं| यानी वैसे कैदी, जिन्हें मुकदमे, जांच या पूछताछ के दौरान हवालात में बंद रखा गया है, न कि कोर्ट द्वारा किसी मुकदमे में दोषी क़रार दिए जाने की वजह से| अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से भारत की जेलों में ट्रायल या सज़ा का इंतजार कर रहे लोगों का प्रतिशत काफी ज़्यादा है| उदाहरण के लिए इंग्लैंड में यह 11% है, अमेरिका में 20% और फ्रांस में 29% है| एनसीआरबी के रिकॉर्ड के मुताबिक 2.82 लाख विचाराधीन कैदियों में 55% से ज़्यादा मुस्लिम, दलित और आदिवासी थे| 2011 की जनगणना के मुताबिक देश की कुल जनसंख्या में इन तीन समुदायों का सम्मिलित हिस्सा 39% है, जिसमें मुस्लिम, दलित और आदिवासी क्रमशः 14.3%, 16.6% और 8.6% हैं| लेकिन कैदियों के अनुपात के हिसाब से देखें, जिसमें विचाराधीन और दोषी क़रार दिए गए, दोनों तरह के कैदी शामिल हैं, इन समुदायों के लोगों का कुल अनुपात देश की आबादी में इनके हिस्से से ज़्यादा है|
कर्मचारियों की कमी
जेलों में अधिकारियों की 33 फीसदी सीटें खाली पड़ी हैं और सुपरवाइजिंग अफसरों की 36 फीसदी रिक्तियां नहीं भरी गई हैं| कर्मचारियों की भीषण कमी के मामले में दिल्ली की तिहाड़ जेल देश में तीसरे स्थान पर है| इस जेल के भीतर बहाल कर्मचारियों की संख्या ज़रूरत से तकरीबन 50 प्रतिशत कम है| जेल कर्मचारियों की अपर्याप्त संख्या और जेलों पर क्षमता से ज़्यादा बोझ, जेलों के भीतर बड़े पैमाने पर हिंसा और अन्य आपराधिक गतिविधियों की वजह बनता है|
विचाराधीन कैदियों में एक बड़ा तबका महिलाओं का भी है
नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों से इसका खुलासा हुआ है|जेलों में बंद कुल लोगों में से महिला कैदियों की तादाद बीते तीन दशकों के दौरान महज चार फीसदी यानी समान रही है| लगभग 1800 बच्चे भी बिना किसी कसूर के अपनी माताओं के साथ जेल में बचपन बिताने पर मजबूर हैं| वैसे तो देश में महिलाओं के लिए अलग जेल भी है| लेकिन महज 17 फीसदी यानी तीन हजार महिलाओं को ही वहां रखने की जगह है| बाकियों को विभिन्न केंद्रीय जेलों और जिला जेलों में ही अलग बैरकों में रखा जाता है. इनमें लगभग आठ सौ विदेशी महिलाएं हैं|
जेल में बदहाली
जेल में बंद महिला कैदियों की स्थिति बदहाल है| समय–समय पर उनके यौन शोषण की खबरें आती रहती हैं| लेकिन केंद्र या किसी राज्य सरकार ने अब तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है| सबसे बड़ी समस्या तो जगह की कमी की है| मुकदमों की बढ़ती तादाद की वजह से कई मामलों में बिना सुनवाई के ही महिला कैदियों को बरसों जेल में रखा जाता है| लगभग हर जेल में कैदियों की तादाद क्षमता से ज्यादा है| राष्ट्रीय महिला आयोग अपनी एक रिपोर्ट में पहले ही इस पर गंभीर चिंता जता चुका है| लेकिन उसकी रिपोर्ट भी ठंढे बस्ते में ही पड़ी है|

