
नोएडा: ICAN4 के सुपर संडे की शुरुआत प्रो. उमेश आर्य, डीन, मीडिया स्टडीज फैकल्टी, GJUST, हिसार, हरियाणा के वर्कशॉप 1 के साथ हुई। वर्कशॉप का विषय ‘गलत जानकारी: समस्या और निवारण’ था जो आज के समय में बेहद चर्चित और प्रासंगिक विषय माना जाता है।
डॉ अंबरीष सक्सेना, प्रोफेसर और डीन, डीएमई मीडिया स्कूल और ICAN4 के संयोजक, ने मुद्दे की गंभीरता पर पर विचार व्यक्त कर सत्र की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि “विशेष रूप से COVID के समय में यह सभी के लिए एक चुनौती बन गया है। आज की सरकार भी इस बात से चिंतित है और गलत सूचना के प्रसार को रोकने के लिए आईटी नियमों के साथ आई है।”
कार्यशाला की शुरुआत प्रोफेसर आर्य द्वारा जनता के बीच गलत सूचनाओं और असत्यापित समाचारों के बारे में कुछ प्रासंगिक प्रश्नों के साथ हुई। इसके बाद उन्होंने गलत नीयत के साथ साझा की गयी सूचनाओं से आने वाली चुनौतियों के बारे में बात की। उनका कहना था कि “हमने गलत सूचना और दुष्प्रचार के बारे में सुना है, लेकिन बहुत से लोग मैल-इनफार्मेशन यानी, गलत नीयत के साथ साझा की गयी सूचनाओं के बारे में नहीं जानते हैं।” उनके अनुसार एक सामाजिक वंचित समूह की छवि को नुकसान पहुंचाने के लिए वास्तविक जानकारी को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाना ही मैल-इनफार्मेशन है। उन्होंने यह समझाने के लिए Google में समाहित ऐसे कई चित्रों का उल्लेख किया जो नकारात्मक भावनाओं को भड़काने के लिए अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल की जाती हैं।
डॉ. आर्य ने गलत सूचनाओं को दूर करने के लिए विभिन्न उपकरणों और तकनीकों का प्रदर्शन करते हुए प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया। अंत में उन्होंने प्रतिभागियों द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण सवालों के जवाब दिए।
डॉ सुस्मिता बाला ने यह कहते हुए सत्र का समापन किया कि हमें, मीडिया शिक्षाविदों के रूप में, तथ्यात्मक जानकारी और झूठी जानकारी के बीच अंतर करना सीखना चाहिए। डीएमई मीडिया स्कूल के सहायक प्रोफेसर मोहम्मद कामिल ने सत्र का संचालन किया। कार्यक्रम की एंकरिंग डीएमई मीडिया स्कूल के अभिषेक बजाज द्वारा की गयी।
तकनीकी सत्र 2
दिन का दूसरा सत्र एक महत्वपूर्ण विषय ‘महिला मुक्ति, लिंग सम्बन्धी मुद्दे और एलजीबीटीक्यू अधिकार’ पर आधारित तकनीकी सत्र 3 था, जिसकी अध्यक्षता डॉ किरण बाला, डीन, स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन, केआर मंगलम यूनिवर्सिटी, गुरुग्राम द्वारा की गयी। सुश्री सुकृति अरोड़ा, सहायक प्रोफेसर, डीएमई मीडिया स्कूल, ने सह-अध्यक्ष के रूप में इस सत्र का संचालन किया।
सत्र हेल्थ कम्युनिकेशन में लिंग की भूमिका, समाचार पत्रों में महिलाओं का चित्रण और लोकप्रिय हिंदी सिनेमा में थर्ड जेंडर के चरित्रचित्रण और उसका विश्लेषण जैसे शोध विषयों पर केंद्रित था।
डॉ अंबरीष सक्सेना ने उद्घाटन टिप्पणी में लिंग सम्बन्धी मुद्दों और एलजीबीटीक्यू समुदायों के सामने आने वाली समस्याओं पर अधिक विचार-विमर्श की आवश्यकता पर जोर दिया।
डॉ किरण बाला ने आयोजकों के प्रयासों की सराहना की और सत्र में प्रस्तुत किए गए प्रत्येक पेपर की आलोचनात्मक जांच की। उन्होंने प्रस्तुतकर्ताओं को अपने बहुमूल्य विचार दिए। उन्होंने कहा, “लैंगिक भेदभाव हर जगह एक समस्या रही है और कई बार हम थर्ड जेंडर को कहीं अलग-थलग छोड़ देते हैं, इसलिए इन मुद्दों के महत्वपूर्ण- राजनीतिक और अन्य पहलुओं पर चर्चा करने के लिए ऐसे मंचों का होना बहुत जरूरी है।”
डॉ सुस्मिता बाला ने शोधकर्ताओं के प्रयासों की सराहना की और कहा कि यह सत्र सभी को प्रबुद्ध कर देने वाले विचार-मंथन से परिपूर्ण था। प्रथम वर्ष के छात्र योगेश बिष्ट ने एंकर के तौर पर सत्र का संचालन किया।
04 जुलाई, 2021 को आयोजित ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: हिंदी सिनेमा में मुद्दे और रुझान’ विषय पर तकनीकी सत्र 2 के लिए सुश्री साक्षी ग्रोवर आर्य और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से डॉ ओपी देवल को सर्वश्रेष्ठ पेपर प्रस्तुतकर्ता घोषित किया गया।
मास्टर क्लास 4
ICAN4 के चौथे दिन का समापन “COVID-19 वैक्सीन पर अफवाहें, जन अवधारणा और मीडिया की भूमिका” विषय पर मास्टर क्लास 4 के साथ हुआ।”
मास्टर क्लास में मुख्य वक्ता श्री निमिष कपूर, वरिष्ठ वैज्ञानिक और विज्ञान संचारक, विज्ञान प्रसार, विज्ञान विभाग और प्रौद्योगिकी, भारत सरकार ने प्रतिभागियों को लाभान्वित किया।
सम्मेलन के संयोजक प्रो. (डॉ.) अंबरीष सक्सेना ने श्री निमिष कपूर का स्वागत करते हुए कहा कि यह सत्र देश में इस प्रकार का पहला ऐसा सत्र है जिसमे टीकाकरण अभियान के मुद्दे पर अकादमिक रूप से चर्चा और विचार-विमर्श किया जा रहा है। डॉ सक्सेना ने कहा “अफवाहें, गलतफहमियां और गलत अवधारणाएं आज हकीकत हैं और यह सत्र कोविड टीकाकरण से संबंधित मुद्दों पर विभिन भ्रमों और शंकाओं के उत्तर खोजने में मदद करेगा”।
श्री निमिष कपूर ने अमेरिका, पाकिस्तान और फिलीपींस के उदाहरण दिए और टीकाकरण अभियान से लोगों को जोड़ने में आने वाली समस्याओं का ज़िक्र करते हुए कहा कि “गलत सूचना और टीका लगवाने में हिचकिचाहट COVID- 19 के खिलाफ सामूहिक जंग में बाधक बन रहा है।”
उन्होंने कहा कि COVID-19 सहित विभिन्न बीमारियों के खिलाफ टीकाकरण पर जनता को आश्वस्त किया जाना बेहद ज़रूरी है। “यह महत्वपूर्ण है कि COVID टीकाकरण के प्रति लोगों के डर को दूर किया जाए। यहां संचारक की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। संचार को प्रभावी बनाने के लिए, लोगों को आसान भाषा में टीकाकरण के महत्त्व के बारे में समझाया जाना चाहिए,”। अपनी समापन टिप्पणी में, सम्मेलन की सहसंयोजक डॉ सुस्मिता बाला का कहना था कि अफवाहों से सही जानकारी द्वारा ही निपटा जा सकता है और इसके लिए जागरूकता सबसे अच्छा उपाय और सभी मुद्दों के सुचारू हल की कुंजी है।” मास्टर क्लास का संचालन श्री मोहित किशोर वत्स, सहायक प्रोफेसर, डीएमई मीडिया स्कूल द्वारा किया गया। बीए जेएमसी के छात्र अभिषेक मिश्रा ने इस सत्र में एंकरिंग कर सत्र का संचालन किया।
विशेष सत्र 3
इससे पहले तीसरे दिन का समापन “लेखक की वार्ता के साथ पुस्तक का अनावरण” पर विशेष सत्र 3 के साथ हुआ था। सत्र में सुश्री कैथरीन लैंसियोनी की तीसरी पुस्तक ‘द प्रैक्टिस ऑफ पब्लिक रिलेशंस’ का विमोचन हुआ। सुश्री मुदिता राज, सहायक प्रोफेसर, डीएमई मीडिया स्कूल ने पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत कर सत्र का संचालन किया। ‘द प्रैक्टिस ऑफ पब्लिक रिलेशंस’, संगठनों में जनसंपर्क की महत्वपूर्ण भूमिका और उसके व्यावहारिक अनुप्रयोग पर प्रकाश डालती है। अपनी पुस्तक में, लेखक ने ‘प्रैक्टिस ऑफ पब्लिक रिलेशंस मॉडल’ की शुरुआत की, जो संगठन के विभिन्न स्तरों पर जनसंपर्क के विभिन्न संचार कार्यों के बीच परस्पर संबंध को दर्शाता है।
लेखक ने जनसम्पर्क के सन्दर्भ में खुल कर अपने पीपीआर मॉडल (प्रैक्टिस ऑफ पब्लिक रिलेशंस मॉडल) को प्रस्तुत किया है जिसमे पीपीआर मॉडल को वो किसी भी संगठन का सबसे अहम हिस्सा मानती हैं। सुश्री लैंसियोनी ने अपने संबोधन में कहा, “पीआर, हालांकि चीफ मार्केटिंग ऑफिसर (सीएमओ) के अंतर्गत आता है लेकिन एक संगठन में इसकी भूमिका का को हमेशा कम करके देखा जाता है”। उन्होंने यह भी कहा कि “वास्तव में संगठन की संपूर्ण संचार संरचना में यह सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक भूमिका निभाता है”।
इससे पहले, डॉ अंबरीष सक्सेना ने सुश्री कैथरीन लैंसियोनी द्वारा लिखित पुस्तक का अनावरण करते हुए कहा कि सुश्री लैंसियोनी की पुस्तक एक संगठन में पीआर के व्यावहारिक पहलुओं को उजागर करके एक बेंचमार्क स्थापित करेगी। डॉ सुस्मिता बाला ने यह कहते हुए सत्र का समापन किया कि पीपीआर मॉडल महत्वपूर्ण है और वैश्विक स्तर पर छात्रों और मीडियाकर्मियों को हर रूप से लाभान्वित करेगा। कार्यक्रम का संचालन डीएमई मीडिया स्कूल की छात्रा श्रिया सिंह व मेघना बख्शी ने किया।
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