साल 2017-2018 के बीच पेशेवर महिलाओं की दर 2.5% घटी

एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2017 और 2018 के बीच भारत में पेशेवर महिलाओं की तादाद 2.5 फीसदी की कमी आई है| यहां तक कि महिलाओं की औसत दर पुरुषों के मुकाबले काफी कम रही। साल 2018 की ‘वर्किंग मदर एंड एवीटीएआर बीसीडब्ल्यूआई’ की रिपोर्ट में पाया गया कि वर्ष 2017 में, वर्किंग वीमेन की तादाद 36 फीसदी थीं वहीँ, साल 2018 में यह घटकर 33.5 फीसदी हो गई है|

323
Image Source: Analytics India Magazine

एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2017 और 2018 के बीच भारत में पेशेवर महिलाओं की तादाद 2.5 फीसदी की कमी आई है| यहां तक ​​कि महिलाओं की औसत दर पुरुषों के मुकाबले काफी कम रही। साल 2018 की ‘वर्किंग मदर एंड एवीटीएआर बीसीडब्ल्यूआई’ की रिपोर्ट में पाया गया कि वर्ष 2017 में, वर्किंग वीमेन की तादाद 36 फीसदी थीं वहीँ, साल 2018 में यह घटकर 33.5 फीसदी हो गई है|

कारण

आज के दौर में महिलाएं शिक्षा, पत्रकारिता, लॉ, मेडिकल और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अपनी उल्लेखनीय सेवाएं दे रहीं हैं| इसके साथ ही वें पुलिस और सेना में भी अहम जिम्मेदारी निभा रहीं है| बावजूद इसके भारत आज भी महिलाओं के कामकाज करने के लिहाज़ से अनुकूल नहीं बन पाया है|

ज्यादातर महिलाओं को पेशेवर जिम्मेदारियों के साथ घर की जिम्मेदारियां भी उठानी पड़ती है जिसमें उनके स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है| पेशेवर महिलाओं की दर में गिरावट की कई वजह हो सकती है| जिसमें काम करने लिए परिवार का साथ न मिलना, शादी के बाद जगह बदलना या फिर बच्चों या अन्य पारिवारिक वजहों से काम छोड़ना तथा पत्नी की कमाई को शर्म का विषय मानना|

आज हम इक्कीसवी सदी के दौर से गुज़र रहें है, जहाँ स्त्री और पुरुष दोनों अपने जीवन में स्वतंत्र है| पहले की अपेक्षा आज महिलाएँ ज्यादा स्वतंत्र है| वें अपनी पसंद की शिक्षा, करियर और जीवनसाथी चुन सकती है| आज महिलाओं के लिए सामाजिक परिदृश्य में भी बदलाओं देखे जा रहे है परन्तु भारत में आज भी ऐसी असंख्य महिलाएँ है जो किसी न किसी सामजिक कारणों की वजह से अपने करियर में आगे नहीं बढ़ पाती जिसकी सबसे बड़ी वजह ‘पारिवारिक’ है|

पेशेवर महिलाओं के बारे में विशेषज्ञों ने बताया कि कामकाजी महिलाओं की स्थिति ‘दो नावों में सवार’ व्यक्ति के समान होती है| उन्होंने बताया कि एक ओर उन्हें कामकाज का तनाव झेलना पड़ता है, तो दूसरी ओर उसे परिवार को खुश रखने की ज़िम्मेदारी भी निभानी पड़ती है|

इसके बाद दूसरा बड़ा कारण सेक्सुअल हरेस्मेंट है| आज महिलाओं और लड़कियों के साथ घर से लेकर सार्वजानिक स्थानों और कार्यस्थलों में होने वाले यौन उत्पीड़न से जुड़ी कई ख़बरें सामने आती है| घर से ऑफिस जाते हुए भी सड़कों में उनके साथ छेड़-छाड़ के मामलें सुनने को मिलते है, साथ ही कार्यस्थल में सेक्सुअल हरेस्मेंट का भी सामना महिलाओं को करना पड़ता है|

क्या कहती है रिपोर्ट

देश के आर्थिक विकास के बावजूद महिलाओं की हिस्सेदारी घटी है| वर्ष 2004-05 से लेकर 2011-12 के बीच देश में लगभग दो करोड़ कामकाजी महिलाओं ने काम छोड़ दिया| साथ ही वर्ष 2017 के शुरुआती चार महीनों में कामकाजी लोगों में नौ लाख से ज्यादा पुरुष जुड़े, जबकि कामकाजी महिलाओं की संख्या में 24 लाख की कमी देखी गई|

भारत में कुल पेशेवर महिलाओं का लगभग 81 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं हैं| इसमें स्थाई और अस्थाई दोनों तरह की कामगार शामिल हैं| गांवों में काम करने वालीं लगभग 56 प्रतिशत महिलाएं निरक्षर हैं, वहीं शहरी इलाकों में 28 फीसदी अशिक्षित हैं|

Related Articles:

शहरी क्षेत्र में महिलाएँ नौकरी करना चाहती है और उनमे आत्मनिर्भर बनने की चाह भी है, लेकिन यह देखा गया कि उन्हें अक्सर शादी के बाद काम करने की आजादी नहीं होती| कई बार शादी के बाद जगह बदलने के कारण खुद ही उनकी नौकरी छूट जाती है| इसके अलावा ससुराल वाले भी शादी के बाद उनका नौकरी करना स्वीकार नहीं करते|

इस मामलें में ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं की स्थति बेहतर है| एनएसएस के शोध के अनुसार शादी के बाद ग्रामीण महिलाओं के कामकाजी होने में मुश्किलें नहीं होती| वहां अविवाहित से ज्यादा विवाहित महिलाओं की संख्या अधिक होती है| परन्तु यह बात भी जाननी महत्वपूर्ण है कि ज्यादातर ग्रामीण महिलाओं को अपने आर्थिक कमजोरियों के कारण काम करना पड़ता है, वें अपनी इच्छा से काम नहीं करती है|

आज भारत विश्व के उन देशों में शामिल है जहां पेशेवर महिलाओं के लिए स्थति बेहद ख़राब है| पिछले दिनों भारत को महिलाओं के लिए सबसे खरनाक देशो में शामिल किया गया था जिसमें सोमालिया को महिलाओं के लिहाज से बेहतर स्थति में बताया गया| सोमालिया में कुल कामकाजी आबादी में महिलाओं की संख्या 37 फीसदी है जबकि भारत के लिए यह आंकड़ा 25.5 फीसदी है|

‘मेटरनिटी बेनेफिट कानून’ से मिल सकती है महिलाओं को मदद

हाल ही में सरकार ने ‘मेटरनिटी बेनेफिट कानून’ में संशोधन किए है| कानून में हुए संसोधन से कामकाजी महिलाओं की स्थति बेहतर होने की उम्मीद जगी है लेकिन इस मामले में एक लंबा सफर तय करना अभी बाकी है।

भारत में ‘मेटरनिटी बेनेफ़िट क़ानून’ 1961 से ही लागू है| इस कानून के अनुसार 10 से अधिक कर्मचारियों वाले हर संस्थानों में गर्भवती होने के बाद महिलाओं की नौकरी सुरक्षित रखने के साथ साथ तन्ख्वाह और नौकरी से जुड़ी सारी सुविधा सहित 12 हफ़्ते का अवकाश का प्रावधान था। लेकिन संसोधन के बाद, दो बच्चे तक वेतन के अतिरिक्त तीन हजार रूपए के मातृत्व बोनस के साथ 26 सप्ताह के प्रसूति अवकाश की सुविधा दी जाने की बात तय हुई है| जो स्वागत योग्य है| इस कानून के ज़रिए भारत ने कामकाजी महिलाओं की स्थति बेहतर बनाने के उद्देश्य से वैश्विक स्टैंडर्ड्स की बराबरी करने की कोशिश की है।

आज इंटरनेट ने घर बैठे ऑनलाइन काम करने की कई बड़ी संभावनाएं उत्पन्न की हैं| ऐसी कम ही महिलाएं होती है जो फील्ड और शारीरिक मेहनत वाले कार्यों को चुनती हैं| इसलिए महिलाओं के लिए दिमागी और सॉफ्ट स्किल वाले क्षेत्रों जैसे प्रोजेक्ट बनाना, कन्सलटेंसी देना, तमाम सर्विस देना आदि कार्य कर सकती है|

शादी के बाद पेशेवर महिलाओं के लिए ज़रूरी है कि आने वाले दिनों में घर से काम करने की सुविधाओं के अवसर पैदा हो| इसके लिए महिलाओं को भी अनुशासन और कार्य के प्रति समर्पण दिखलाना होगा|

Summary
साल 2017-2018 के बीच पेशेवर महिलाओं की दर 2.5% घटी
Article Name
साल 2017-2018 के बीच पेशेवर महिलाओं की दर 2.5% घटी
Description
एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2017 और 2018 के बीच भारत में पेशेवर महिलाओं की तादाद 2.5 फीसदी की कमी आई है| यहां तक कि महिलाओं की औसत दर पुरुषों के मुकाबले काफी कम रही। साल 2018 की ‘वर्किंग मदर एंड एवीटीएआर बीसीडब्ल्यूआई’ की रिपोर्ट में पाया गया कि वर्ष 2017 में, वर्किंग वीमेन की तादाद 36 फीसदी थीं वहीँ, साल 2018 में यह घटकर 33.5 फीसदी हो गई है|
Author
Publisher Name
The Policy Times
Publisher Logo