
नोएडा: डीएमई मीडिया स्कूल द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन ICAN4 के दूसरे दिन की शुरुआत प्रो. (डॉ) जयश्री जेठवानी के विशेष सत्र से हुई। इस विशेष सत्र का विषय ‘भारत में कामकाजी पत्रकारों के लिए नयी श्रम संहिताएं : एक प्रयोगसिद्ध दृष्टिकोण’ था। वरिष्ठ आईसीएसएसआर (ICSSR) रिसर्च फेलो, आईएसआईडी (ISID), नई दिल्ली विशेषज्ञ के रूप में कार्यरत प्रो. (डॉ) जयश्री जेठवानी ने मीडिया श्रम के विभिन्न आयामों पर अपने विचार व्यक्त किये। सत्र की शुरुआत डॉ अम्बरीष सक्सेना, डीन, डीएमई मीडिया स्कूल और संयोजक ICAN4 के उद्घाटन भाषण से हुई। उन्होंने अतिथि प्रो. (डॉ) जयश्री जेठवानी का स्वागत किया और कहा, “आज के मीडिया छात्र कल के पत्रकार होंगे।”
अपने संबोधन में, प्रो. जेठवानी ने न्यू लेबर कोड की अवधारणा पर प्रकाश डाला। उनका कहना था कि न्यू लेबर कोड के दायरे में पहले केवल प्रिंट मीडिया सम्मिलित था लेकिन अब इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया के पत्रकार भी इस न्यू लेबर कोड़ के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। प्रो. जेठवानी ने उल्लेख किया कि भारत की कुल आबादी का लगभग 70% हिस्सा श्रमिकों की श्रेणी में शामिल है। नए कोड के पीछे के विचार को समझाते हुए उन्होंने कहा, “श्रम एक कॉन्कररेंट विषय है और कभी-कभी इसमें जटिलता और विरोधाभास का आभास होता है”।
वरिष्ठ मीडिया शिक्षाविद, प्रो. जेठवानी ने नए कोड की प्रासंगिकता समझाते हुए उन कानूनों और विधियों पर प्रकाश डाला, जिन्होंने भारत में पत्रकारिता को नियंत्रित किया है, जिसमें वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट और वेज बोर्ड शामिल हैं। उन्होंने स्थायी रोज़गार से अनुबंध के आधार पर रोजगार की स्थिति में बदलाव के कारण पत्रकारों पर पड़े प्रभावों की चर्चा की और अनुबंध के आधार पर रोज़गार के चलन की कमियों पर चर्चा की। उन्होंने सुझाव दिया कि मीडिया के पेशे को अलग माना जाना चाहिए। उन्होंने प्रश्न किया कि “अगर मीडिया पेशेवरों को कर्मचारी नहीं माना जाएगा, तो उन्हें सामाजिक सुरक्षा कैसे मिलेगी?”।
उन्होंने जॉन इलियट के एक कथन, “सभी अर्थ कहीं न कहीं व्याख्या ही होते हैं” के साथ अपने विचारों पर विराम लगाया। संक्षेप में उनका कहना था कि पत्रकारों पर नए श्रम संहिताओं का प्रभाव प्रशासन द्वारा उनके पालन के अनुसार निर्धारित किया जाएगा।
डॉ सुस्मिता बाला, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष , डीएमई मीडिया स्कूल, नोएडा के विचारों के साथ सत्र का समापन हुआ। सत्र का संचालन मुदिता राज, सहायक प्रोफेसर, ने किया।
तकनीकी सत्र-1
ICAN-4 के तकनीकी सत्र -1 में ‘सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ में संचार और मीडिया प्रतिरोध’ विषय पर चर्चा हुई। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ मोनिसा कादरी, पत्रकारिता और जनसंचार-पूर्व प्रमुख, यूनिवर्सिटी सोशल मीडिया और पीआर सलाहकार- प्रमुख, इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, पुलवामा, जम्मू-कश्मीर ने की और सुश्री कृष्णा पांडे, सहायक प्रोफेसर, डीएमई मीडिया स्कूल ने सह-अध्यक्ष के तौर पर इस सत्र का संचालन किया। तकनीकी सत्र में प्रस्तुत किये गए शोध पत्रों में विभिन्न विषयों जैसे सोशल मीडिया का एजेंडा-सेटिंग टूल के रूप में उभरना, फेसबुक पर शहरी युवाओं की आत्म-प्रस्तुति, सोशल मीडिया के लिए नए आईटी नियम, पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह कानून का आवेदन, और कुछ इस से मिलते जुलते विषय शामिल थे।
डॉ कादरी ने सभी शोध पत्रों की विशिष्टता की सराहना करते हुए पत्रकारिता और जन संचार विभाग आईकेजी पंजाब तकनीकी विश्वविद्यालय, कपूरथला, पंजाब की सुश्री कीर्ति लूंबा द्वारा प्रस्तुत शोधपत्र ‘सामाजिक-राजनीतिक संदर्भ में ई-गवर्नेंस: पंजाब के सेवा केंद्रों पर आधारित एक अध्ययन’ को सत्र की सर्वश्रेष्ठ पेपर प्रस्तुति घोषित किया।
ICAN 4 के संयोजक प्रो. अम्बरीष सक्सेना ने इस तरह के सम्मेलनों के माध्यम से समकालीन शोधकार्य को बढ़ावा देने पर जोर दिया। सत्र का संचालन सहायक प्रोफेसर सुश्री कृष्णा पांडे ने किया और डीएमई मीडिया स्कूल की विभागाध्यक्ष प्रो सुस्मिता बाला ने सत्र का सार प्रस्तुत किया।
मास्टर क्लास -1
सम्मेलन के दूसरे दिन श्री विजय एस जोधा- लेखक, फिल्म निर्माता और फोटोग्राफर द्वारा ‘डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकिंग’ पर मास्टर क्लास -1 का आयोजन किया गया।
श्री विजय जोधा ने फिल्मों के उद्देश्य और प्रकारों के बारे में बात करके चर्चा की शुरुआत की। उन्होंने कहा, “इस तथ्य को समझना और उसकी सराहना करना बेहद आवश्यक है कि फिल्में कई प्रकार की हो सकती हैं और सभी प्रकार की फ़िल्में विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति करती हैं।”
उन्होंने कहा, “यहां तक कि एक गैर सरकारी संगठन के लिए बनाई गई फिल्म में भी दर्शक शामिल होते हैं। उसमें भी संसाधनों का आवंटन होता है जिसके परिणामस्वरूप उन फिल्मों का उद्देश्य पूरा होता है।”
बाहरी दर्शकों के लिए प्रोजेक्ट्स के बारे में बात करते हुए, श्री जोधा ने कहा, “बड़ी संख्या में दर्शकों के लिए एक प्रोजेक्ट का मतलब बहुत सारी फिल्मों के साथ प्रतिस्पर्धा करना होता है। ऐसी स्थिति में केवल एक सिनेमाई उत्पाद बनाना पर्याप्त नहीं होता अपितु उसका आकर्षक होना भी महत्वपूर्ण होता है”।
अंत में, अनुभवी फिल्म निर्माता श्री जोधा ने जिज्ञासु दर्शकों और भविष्य के फिल्ममेकरों द्वारा पूछे गए कई सवालों के जवाब दिए। प्रो.अम्बरीष सक्सेना और प्रो. सुस्मिता बाला ने भी गैर-फिक्शन फिल्म निर्माण पर अपने विचार व्यक्त किए। सुश्री श्रुति वीएस, सहायक प्रोफेसर, डीएमई मीडिया स्कूल, सत्र की मॉडरेटर ने धन्यवाद प्रस्ताव के साथ मास्टर क्लास का समापन किया।
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Mohd Kamil
Assistant Professor, DME Media School
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