केंद्र सरकार के निर्देश में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अलग-अलग राज्यों में बसे रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी और उनकी निजी जानकारी हासिल करने का काम कर रही है ताकि यह जान सकें कि वें कैसे और कब जम्मू कश्मीर में बसे|
जम्मू क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक एस.डी सिंह जामवाल ने बताया कि वे केंद्र सरकार के निर्देश के उपरान्त जम्मू और कश्मीर में बसे रोहिंग्या आबादियों की पहचान कर रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए किया जा रहा है| पहचान पत्र में अंग्रेजी अनुवादों के साथ बर्मी भाषा में लिखे गए सात पेज के फॉर्म में आवेदक का नाम, माता-पिता, व्यवसाय व वर्तमान पता, आंखों और बालों का रंग, अन्य नाम, और विशेष विवरण है| इसके साथ ही आवेदकों को कई अन्य जानकारी जैसे जन्म, ऊंचाई, राष्ट्रीय पहचान पत्र, म्यांमार में शिक्षा, पति/पत्नी के वर्तमान व्यवसाय, पते और यहां तक कि स्कूल और विश्वविद्यालय के स्थान के बारे में विवरण देने के साथ एक पासपोर्ट आकार की तस्वीर मांगी गई है|
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म्यांमार से आए प्रत्येक रोहिंग्यों को इन रूपों को भरने के लिए कहा गया है एवं माता-पिता, पति/पत्नी और भाई-बहनों के व्यक्तिगत विवरण भी देने के लिए कहा हैं|
इस महीने की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कहा था कि राज्य में रोहिंग्या शरणार्थियों के बॉयोमीट्रिक विवरण दो महीने के भीतर एकत्र किए जाएंगे| इधर, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि सभी राज्यों से उनकी सीमाओं में रहने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों की पहचान करने और उनके बॉयोमीट्रिक डेटा एकत्र करने के लिए कहा गया है| इसकी एक संकलित रिपोर्ट म्यांमार को भेजी जाएगी।
पुलिस के मुताबिक जम्मू क्षेत्र के जम्मू, सांबा और कठुआ जिलों में लगभग 8 हज़ार म्यांमार नागरिक रहते हैं जिनमें से लगभग 90 प्रतिशत जम्मू शहर और बाहरी इलाके में बस गए हैं|
यद्यपि ये म्यांमार नागरिक कई दशकों से जम्मू-कश्मीर में रह रहे हैं| वहीं, घाटी स्थित राजनेताओं ने जम्मू क्षेत्र में पाकिस्तान से हिंदू शरणार्थियों को पहचान पत्र जारी करने के फैसले का विरोध करने के बाद राजनीतिक रंग ले लिया है| इस मसले पर विपक्ष को प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा और पैंथर्स पार्टी समेत जम्मू स्थित राजनीतिक दलों और कई सामाजिक, धार्मिक और व्यापार संगठनों ने क्षेत्र की जनसांख्यिकी को बदलने के लिए रोहिंग्या मुसलमानों की पहचान कर विवरण लेना शुरू किया है|

