
देश का बहुचर्चित शोहराबुद्दीन शेख-तुलसीराम प्रजापति मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने शुक्रवार को सभी आरोपियों को बरी कर दिया है| इस पुरे मामले में कोर्ट ने कहा है कि पुलिसवालों पर आरोप साबित नहीं हुए है| बता दें यह पूरा मामला 2005 का है जिसकी सुनवाई सीबीआई की विशेष अदालत कर रही थी| इस पुरे मामले में लगभग 21 पोलिसवाले आरोपी थे जिन्हें कोर्ट ने क्लीन चीट दे दिया है|
सीबीआई की विशेष अदालत के जज एसजे शर्मा ने अपने आदेश में कहा कि हमें इस बात का दुख है कि तीन लोगों ने अपनी जान खोई है लेकिन कानून और सिस्टम को किसी आरोप को सिद्ध करने के लिए सबूतों की आवश्यकता होती है| कोर्ट ने कहा कि सीबीआई इस बात को सिद्ध ही नहीं कर पाई कि पुलिसवालों ने सोहराबुद्दीन को हैदराबाद से अगवाह किया था| इस बात का कोई सबूत नहीं है| कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया है| कोर्ट के फैसले पर सोहराबुद्दीन के भाई रुहाबुद्दीन ने मीडिया से कहा, ‘हम फैसले से संतुष्ट नहीं हैं| इस फैसले के खिलाफ हम हाईकोर्ट जाएंगे|
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13 साल बाद आया फैसला
इस मामले में 13 साल बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया| बता दें कि वर्ष 2005 के इस मामले में 22 लोगों पर मुकदमा चलाया गया जिसमें ज्यादातर पुलिसकर्मी शामिल थे| सीबीआइ की विशेष अदालत ने इस मामले की सुनवाई कर रही थी| मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष के करीब 92 गवाह मुकर गए| भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के आरोपित होने के कारण यह मामला सुर्खियों मे रहा| शाह उस समय गुजरात के गृह मंत्री थे| वर्ष 2014 में भाजपा अध्यक्ष इस मामले से आरोप मुक्त हो गए|
गौरतलब है कि गुजरात एटीएस और राजस्थान एसटीएफ ने अहमदाबाद के नजदीक एनकाउंटर में मध्य प्रदेश के अपराधी शोहराबुद्दीन शेख को मार गिराया था| इसके एक साल बाद शोहराबुद्दीन के सहयोगी तुलसीराम प्रजापति को भी एक मुठभेड़ में मार गिराया गया था| 2010 से इस मामले की जांच सीबीआई कर रहा था|
कौन था शोहराबुद्दीन
शोहराबुद्दीन उज्जैन के एक छोटे से गांव का रहने वाला था| सोहराबुद्दीन की मां सरपंच और उसके पिता जनसंघ के पूर्व सदस्य थे| शोहराबुद्दीन के दोस्त उसे वकील के नाम से पुकारते थे| बताया जाता है कि उसने युवावस्था में ही जुर्म की दुनिया में कदम रख दिया था| 1995 में ही उसे गुप्त रूप से बड़ी संख्या में हथियार रखने को लेकर गिरफ्तार किया गया था| अपनी रिपोर्ट में सीबीआई ने कहा था कि गुजरात के पुलिस अधिकारियों ने व्यापारियों से उगाही के लिए शोहराबुद्दीन का इस्तेमाल किया था|
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कौन था तुलसीराम
मिशनरी स्कूल से पढ़ाई और आठवीं ड्रापआउट स्टूडेंट| तुलसीराम भी उज्जैन का रहने वाला था| ईंट भट्टे के मालिक गंगाराम का बेटा प्रजापति भी युवावस्था में ही जरायम की दुनिया में कदम रख दिया| पहली बार उसे 1997 में सिर्फ 18 साल की उम्र में गिरफ्तार किया गया| जैसे-जैसे उसकी आपराधिक गतिविधियां बढ़ने लगीं परिवार से उसके रिश्ते तल्ख होते गए और एक दिन वह घर छोड़कर भाग गया| चार्जशीट के मुताबिक प्रजापति से पुलिस ने कहा था कि यह एक पॉलिटिकल दबाव है| हम शोहराबुद्दीन को सिर्फ गिरफ्तार करेंगे जिससे बाद प्रजापति ने पुलिस को शोहराबुद्दीन का पता-ठिकाना बताया था| प्रजापति सिर्फ 28 साल का था जब उसे मार दिया गया|
जानिए इस मामले का पूरा घटनाक्रम
22 नवंबर, 2005: हैदराबाद से बस से सांगली लौटने के दौरान पुलिस की एक टीम ने उन्हें रोक कर पूछताछ की और हिरासत में ले लिया| शेख और उसकी पत्नी को एक वाहन में रखा गया जबकि प्रजापति दूसरी गाड़ी में|
22 से 25 नवंबर 2005: शेख और कौसर बी को अहमदाबाद के पास एक फार्म हाउस में रखा गया. प्रजापति को उदयपुर भेजा गया जहां उसे सुनवाई के लिये एक जेल में रखा गया|
26 नवंबर 2005: गुजरात और राजस्थान पुलिस की संयुक्त टीम ने कथित फर्जी मुठभेड़ में शेख को मार दिया|
29 नवंबर 2005: कौसर बी की भी पुलिस ने कथित रूप से हत्या कर दी. उसके शव को जला दिया गया|
27 दिसंबर 2006: राजस्थान और गुजरात पुलिस की संयुक्त टीम प्रजापति को उदयपुर केंद्रीय कारागार से लेकर आयी और गुजरात-राजस्थान सीमा पर सरहद छपरी के पास एक मुठभेड़ में कथित तौर पर मार दिया|
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2005-2006: शेख परिवार ने मुठभेड़ मामले में जांच के लिये उच्चतम न्यायालय का रुख किया और कौसर बी का पता मांगा. उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि गुजरात राज्य सीआईडी को मामले में जांच शुरू करने का निर्देश दिया|
30 अप्रैल 2007: गुजरात सरकार ने उच्चतम न्यायालय में रिपोर्ट पेश कर बताया कि कौसर बी की मौत हो गयी है और उसके शव को जला दिया गया है|
जनवरी 2010: उच्चतम न्यायालय ने मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा|
23 जुलाई 2010 : सीबीआई ने मामले में गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह, राजस्थान के तत्कालीन गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया और वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों सहित 38 लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया|
25 जुलाई 2010: सीबीआई ने मामले में अमित शाह को गिरफ्तार किया|
27 सितंबर 2012: उच्चतम न्यायालय ने सोहराबुद्दीन शेख-कौसर बी के कथित मुठभेड़ मामले में सुनवाई गुजरात से मुंबई स्थानांतरित की और सीबीआई से निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने को कहा|
30 दिसंबर 2014: मुंबई में सीबीआई की विशेष अदालत ने मामले से अमित शाह को आरोपमुक्त कर दिया| इसके बाद मामले में कटारिया और वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों समेत 15 आरोपियों को भी आरोपमुक्त कर दिया गया|
नवंबर 2015: शेख के भाई रुबाबुद्दीन ने मामले में अमित शाह की आरोपमुक्ति को चुनौती देते हुए बंबई उच्च न्यायालय का रुख किया| उसी महीने उन्होंने उच्च न्यायालय को बताया कि वह मामले में सुनवाई आगे नहीं बढ़ाना चाहते इसलिए वह अपनी याचिका वापस लेना चाहते हैं|
अक्टूबर 2017: मुंबई में सीबीआई की विशेष अदालत ने 22 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए|
नवंबर 2017: सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एस जे शर्मा ने मामले में सुनवाई शुरू की| अभियोजन पक्ष ने 210 लोगों की गवाही ली जिनमें से 92 मुकर गए|
सितंबर 2018: बंबई उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों डी जी वंजारा, राजकुमार पांडियन, एन के अमीन, विपुल अग्रवाल, दीनेश एमएन और दलपत सिंह राठौड़ को आरोपमुक्ति कायम रखी|
पांच दिसंबर 2018: अदालत ने अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष के वकीलों की ओर से अंतिम दलीलें पूरी होने के बाद 21 दिसंबर 2018 को फैसले के लिये मामला बंद कर दिया|

