
गुरुवार की सुबह एक ऐतिहासिक फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 150 साल पुराने औपनिवेशिक ‘अडल्ट्री’ या ‘व्यभिचार’ के क़ानून को रद्द कर दिया है.
इटली में रहने वाले प्रवासी भारतीय जोसेफ़ शाइन द्वारा सर्वोच्च अदालत में दायर की गयी जनहित याचिका पर फ़ैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि ऐसा कोई भी क़ानून जो ‘व्यक्ति कि गरिमा’ और ‘महिलाओं के साथ समान व्यवहार’ को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, वह संविधान के ख़िलाफ़ है.
इस संदर्भ में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 को मनमाना और अप्रासंगिक घोषित करते हुए जस्टिस मिश्रा ने कहा, “अब यह कहने का वक़्त आ गया है कि शादी में पति, पत्नी का मालिक नहीं होता है. स्त्री या पुरुष में से किसी भी एक की दूसरे पर क़ानूनी सम्प्रभुता सिरे से ग़लत है.”
आज के फैसले से साफ हो गया कि कोर्ट ने समानता के अधिकार को सर्वोपरि मानते हुए महिलाओं के अधिकार को सर्वोपरि माना है. सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने एकमत से फैसला सुनाया कि व्यभिचार अपराध नहीं है.
बीते 2 अगस्त को देश की शीर्ष अदालत में इस मामले पर सुनवाई थी. तब अदालत ने कहा था, ‘व्यभिचार कानून महिलाओं का पक्षधर लगता है लेकिन असल में यह महिला विरोधी है. पति के कहने पर पत्नी किसी की इच्छा की पूर्ति कर सकती है, तो इसे भारतीय नैतिकता कतई नहीं मान सकते.’
अदालत ने आगे कहा, शादीशुदा संबंध में पति-पत्नी दोनों की एक बराबर जिम्मेदारी है. फिर अकेली पत्नी पति से ज्यादा क्यों सहे? यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट इस कानून को पुरातन मान रही है.
एडल्टरी (व्यभिचार) लॉ पर फैसला सुनाते समय प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि आईपीसी की सेक्शन 497 महिला के सम्मान के खिलाफ है। महिलाओं को हमेशा समान अधिकार मिलना चाहिए, महिला को समाज की इच्छा के हिसाब से सोचने को नहीं कहा जा सकता।
संविधान की खूबसूरती यही है कि उसमें ‘मैं, मेरा और तुम’ सभी शामिल हैं।’ सीजेआई दीपक मिश्रा ने कहा कि अडल्टरी तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन यह अपराध नहीं होगा। ‘एक लिंग के व्यक्ति को दूसरे लिंग के व्यक्ति पर कानूनी अधिकार देना गलत है। इसे शादी रद्द करने का आधार बनाया जा सकता है, लेकिन इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है।’

