उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र सरकार से सवाल किया है कि जनप्रतिनिधियों की बेतहाशा बढ़ती संपत्ति पर निगाह रखने के लिए कोई स्थाई निगरानी तंत्र क्यों नहीं बना? कोर्ट ने अपने पिछले वर्ष के आदेश पर अमल के बारे में कानून मंत्रालय के विधायी सचिव से दो सप्ताह में जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने गैर सरकारी संगठन लोकप्रहरी के ओर से सरकार के खिलाफ दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान मंगलवार को आदेश दिये है। कोर्ट ने अभी याचिका पर औपचारिक नोटिस जारी नहीं किया है। संस्था ने अवमानना याचिका में पिछले वर्ष 16 फरवरी के आदेश का पूरी तरह अनुपालन न करने का आरोप लगाया है। याचिका में कानून मंत्रालय के विधायी विभाग के सचिव को पक्षकार बनाया गया है।
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संस्था के महासचिव एसएन शुक्ला ने सुनवाई के दौरान बहस करते हुए कोर्ट से कहा कि कोर्ट के फैसले को एक वर्ष बीत चुका है लेकिन अभी तक उस पर पूरी तरह अमल नहीं हुआ है। उस फैसले में कोर्ट ने मुख्यता पांच आदेश दिये थे जिनमें से तीन पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि सांसदों विधायकों की संपत्ति में बेतहाशा बढ़ोत्तरी पर निगाह रखने के लिए सरकार को एक स्थाई निगरानी तंत्र बनाना चाहिए लेकिन सरकार ने आज तक इस दिशा में कुछ नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट ने गत वर्ष चुनाव सुधार की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए आदेश दिया था कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को नामांकन भरते समय हलफनामें में स्वयं की ही नहीं, जीवनसाथी और सहयोगियों की संपत्ति का भी स्त्रोत बताना होगा। संपत्ति का स्त्रोत न बताना कानून के तहत भ्रष्ट आचरण माना जाएगा। इतना ही नहीं कोर्ट ने यह भी कहा था कि सांसद विधायकों की संपत्ति में अचानक हुई बढोत्तरी की जांच के लिए एक स्थाई निगरानी तंत्र बनना चाहिए। कोर्ट ने कहा था कि जांच में संपत्ति में अचानक और आय से अधिक वृद्धि पाये जाने पर उचित कार्रवाई के लिए संस्तुति करेगी। जैसे कि उन पर मुकदमा चलाया जाना और या फिर संबंधित विधायिका के समक्ष जानकारी को रखना ताकि वो विचार कर सके कि ये सांसद या विधायक संबंधित सदन के सदस्य बने रहने लायक हैं कि नहीं।
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फैसले में यह भी कहा गया था कि अगर उम्मीदवार अपनी संपत्ति का स्त्रोत नहीं बताता है तो उसे जनप्रतिनिधि कानून 1951 की धारा 123(2) के तहत चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करना और भ्रष्ट आचरण माना जाएगा। साथ ही कोर्ट ने कहा था कि उम्मीदवार द्वारा भरे जाने वाले फार्म 26 में संशोधन किया जाए जिसमें उम्मीदवार यह घोषित करे कि वह जनप्रतिनिधि कानून के तहत अयोग्य नहीं है लेकिन इस पर कुछ नहीं हुआ। कोर्ट ने दलीलें सुनने के बाद कहा कि वह फिलहाल याचिका पर नोटिस तो नहीं जारी कर रहे हैं लेकिन केन्द्र सरकार के विधायी विभाग के सचिव से जवाब मांग रहे हैं कि कोर्ट के आदेश का अनुपालन क्यों नहीं हुआ।