
देश के प्रधानमंत्री नरेंद मोदी की महत्वकांक्षी योजनाओं में से एक ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की हकीकत अब सामने आ रही है| एक ओर जहाँ देश की सरकार अपनी स्वच्छ भारत योजना को लेकर सफलताएं गिनाती है वहीँ दूसरी ओर सफाई अभियान की रीढ़ कहे जाने वाले सफाई कर्मचारियों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलने के कारण मौत का आंकड़ा बढ़ते जा रहा है|
शुक्रवार को दिल्ली के जंतर मंतर पर ‘ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन’ (एआईसीसीटीयू) द्वारा एक नेशनल कन्वेंशन का आयोजन किया गया जिसमें देश के अलग-अलग राज्यों से सफाई कर्मचारी संघ ने हिस्सा लिया और अपनी बात रखी|
इस कन्वेंशन का मुख्य उद्देश्य पक्के सफाई कर्मचारियों के समान वेतन और सुविधाओं की मांग रखना था| देशभर से आए सफाई कर्मचारियों के संघ ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत अभियान को भी छलावा करार दिया|
सफाई कर्मचारियों ने रखी अपनी बात
देशभर के अलग-अलग राज्यों से आए इन सफाई कर्मचारियों ने अपनी बात रखीं| इसके साथ ही केंद्र सरकार पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की| ओडिशा से आए सफाई कर्मचारियों ने बताया कि उनको प्रति दिन 12 घंटे की ड्यूटी के बाद मात्र 250 रुपए ही वेतन के रूप में मिलते है| उन्हें न मेडिकल सुविधाएं मिलती है और न ही किसी प्रकार की अन्य सहायता| यहां तक कि काम करते समय अगर किसी सफाई मजदूर की मौत हो जाती है तो उसे भी किसी तरह की कोई आर्थिक मदद नहीं मिलती और न ही परिवार के किसी अन्य सदस्य को नौकरी देने का प्रावधान है| 250 रुपए प्रति दिन में घर चलाना नामुमकिन है और बढ़ती महंगाई में ये सफाई मजदूरों के अधिकारों के साथ भद्दा मजाक है|
वहीँ, छत्तीसगढ़ से आई महिला सफाई कर्मचारियों ने कहा कि या तो उन्हें पक्की नौकरी दी जाए या उनको पक्के कर्मचारियों के समान वेतन दिया जाए| वह भी वही गंदगी साफ करते है जो दूसरे कर्मचारी करते है उतनी ही मेहनत करते और 12 घण्टे की नौकरी करते हैं फिर उनके साथ ये दोहरा बर्ताव क्यों किया जा रहा है|
महिला कर्मचारियों ने ये भी बताया कि ज्यादातर सफाई करने वाली महिलाएं ही हैं| उन्हें किसी प्रकार की सुरक्षा नहीं दी जाती है और न ही सुविधा| प्रेग्नेंसी होने पर भी उनको मेडिकल नही मिलता| उन्होंने ये साफ कर दिया कि अपने साथ होते अन्याय के खिलाफ अब वे चुप नहीं नहीं बैठेंगी और अपने अधिकारों की लड़ाई जारी रखेंगी|
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बढ़ते मौत के आंकड़े
‘सफाई कर्मचारी आन्दोलन’ के मुताबिक 1993 से अब तक 1,760 सफाई कर्मचारियों की मौत हो चुकी है| एनजीओ ने ये आंकड़ा 16 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से एकत्र किए हैं|
ज्ञात हो मोदी सरकार की ‘स्वच्छ भारत अभियान’ पर 50 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की योजना है| इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के घरों में 9 करोड़ टॉयलेट बनाना है ताकि गावों को ‘खुले में शौच’ से पूरी तरह मुक्त किया जा सके| सरकार का दावा है कि देशभर में मिशन के तहत अब तक आठ करोड़ टॉयलेट बनाए भी जा चुके हैं लेकिन योजना में सफाई कर्मियों की सुरक्षा के लिए बजट का कोई प्रावधान नहीं है| जाम सीवरों को खोलने के लिए देश में करीब आठ लाख सफाई कर्मचारी हैं लेकिन उनको लेकर बहुत कम आंकड़े उपलब्ध हैं|
‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ से जुड़े बेजवाडा विलसन ने ‘इंडिया टुडे’ को दिए एक इंटरव्यूज में बताया था कि मोदी सरकार टॉयलेट निर्माण के लिए हजारों करोड़ आवंटित करती है लेकिन ये मैनुअली सफाई करने वालों के पुनर्वास के लिए पर्याप्त मुआवजा देने में नाकाम रही है| पिछले बजट में इसके लिए महज 5 करोड़ रुपए रखे गए|
विलसन ने बताया कि इन सफाई कर्मियों में से 98 फीसदी अनुसूचित जाति से और महिलाएं हैं| इस सबंध में राज्य सरकारों का रवैया भी निराशाजनक रहा है| आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में साल 2013 से अब तक 39 सफाई कर्मियों की मौत हुई है| इनमें से सिर्फ 16 मामलों में ही परिजनों को 10-10 लाख रुपए मुआवजा दिया गया|
दिल्ली के जेएनयू में सफाई कर्मचारियो की अध्यक्ष सीमा देवी का कहना है कि उन्होंने जेएनयू में अपने हक को लेकर लम्बी लड़ाई लड़ी है और जीती भी है पर अब भी हालत नहीं सुधरे हैं| उन्हें जेएनयू में भले ही सीवर में नहीं उतारा जाता पर काम वो उतना ही करते है जितने पक्के कर्मचारी| ऐसे में उनको भी 25 हज़ार रुपए की तनख्वाह मिलनी चाहिए और सुविधाएं भी| एआईसीसीटीयू ने कन्वेंशन के मंच से 8 और 9 जनवरी को देशव्यापी स्ट्राइक पर जाने का ऐलान किया है और अपनी मांगे नहीं माने जाने पर आंदोलन जारी रखने की बात कही है|
(ये लेख डी हिन्दू से साभार है)

