
विपक्षी सांसदों ने मंगलवार को सुझाव दिया कि हिन्दुओं सहित विभिन्न बांग्लादेशी नागरिकों को भारतीय नागरिकता नहीं प्रदान की जानी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है तथा धर्म के आधार पर राष्ट्रीयता नहीं दी जानी चाहिए। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के सदस्यों ने नागरिकता संशोधन विधेयक पर गौर कर रही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की एक बैठक में यह सुझाव दिया। भाजपा सांसद राजेंद्र अग्रवाल इस समिति के अध्यक्ष हैं। बैठक में मौजूद एक सूत्र ने यह जानकारी दी।
विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों- हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैन, पारसियों और ईसाइयों को भारत में छह साल तक रहने के बाद नागरिकता दी जाए, भले ही उनके पास पर्याप्त दस्तावेज़ नहीं हो। अग्रवाल ने तीन घंटे की लंबी बैठक के बाद न्यूज़ एजेंसी पीटीआई से कहा कि सदस्यों ने विभिन्न सुझाव दिए हैं और समिति अपनी अगली बैठक में फैसला करेगी कि किन संशोधनों पर विचार किया जाए।
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विधेयक के लिए संशोधनों को आम सहमति से पारित करना होगा। अगर ऐसा नहीं होता तो मत विभाजन होगा। 30 सदस्यीय समिति में सबसे अधिक सदस्य सत्तारूढ़ NDA के हैं। बैठक में भाग लेने वाले एक अन्य सदस्य के अनुसार विपक्षी सदस्यों ने उपबंध दर उपबंध आधार पर संशोधन पेश किए।
कांग्रेस सदस्य ने प्रस्तावित कानून के दायरे से बांग्लादेश को हटाने का प्रस्ताव करते हुए संशोधन पेश किया। उल्लेखनीय है कि भाजपा समर्थित एक सदस्य ने सुझाव दिया कि असम को विधेयक के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। असम में विधेयक का विरोध किया जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस और वाम दलों के सदस्यों ने जीत मिलने का दावा करते हुए कहा कि भाजपा ‘‘पीछे हट गयी” क्योंकि वह मंगलवार को ही चर्चा पूरी करने पर जोर दे रही थी। विभिन्न विपक्षी सदस्यों ने जोर दिया कि नागरिकता एक संवैधानिक प्रावधान है और यह धर्म पर आधारित नहीं हो सकता है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। जेपीसी को दिसंबर में संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में अपनी रिपोर्ट पेश करनी है।

