बुधवार को बजट सत्र का अंतिम दिन था जो 31 जनवरी को आरंभ हुआ था| पूरे सत्र में विभिन्न मुद्दों पर लगातार हंगामा होने की वजह से अंतरिम बजट और वित्त विधेयक पर उच्च सदन में चर्चा नहीं हो पाई| राज्यसभा में हंगामे के बाद सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया|
सदन में आज तीन तलाक और नागरिकता संशोधन सहित 11 बिल पेश किए जाने थे| संसद के अंदर और बाहर गर्मी पैदा कर चुके नागरिकता संशोधन बिल और ट्रिपल तलाक़, दो ऐसे बिल जिनको लोकसभा को मंजूरी दे चुका है को आज राज्यसभा की मंजूरी नहीं होने पर खत्म कर दिया गया|
पूर्वोत्तर राज्य पिछले कई महीनों से लगातार नागरिकता विधेयक का बड़े पैमाने पर विरोध कर रहे हैं जिसके चलते कई लोगों पर देशद्रोह आरोप भी लगाए गए| बीते शनिवार को नेशनल पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष एवं मेघालय के मुख्यमंत्री ‘कोनराड के संगमा’ ने धमकी दी थी कि अगर यह विधेयक राज्यसभा में पारित होता है तो उनकी पार्टी केंद्र में सत्तारूढ़ ‘राजग’ से अलग हो जाएगी| संगमा ने कहा कि एनपीपी की यहां शनिवार को हुई महासभा में इस आशय का एक प्रस्ताव पारित किया गया| उन्होंने बताया कि एनपीपी मेघालय के अलावा अरूणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड की सरकारों को समर्थन दे रही है| महासभा में इन चारों पूर्वोत्तर राज्यों के पार्टी नेता मौजूद थे|
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इस विधेयक पर विवाद को इसी से समझा जा सकता है कि इस मुद्दे पर महान संगीतकार भूपेन हजारिका के बेटे तेज हजारिका ने पिता के लिए भारत रत्न (मरणोपरांत) स्वीकार करने से मना कर दिया है।तेज हजारिका ने दो टूक कहा कि बेशक यह बड़ा सम्मान है और अपने पिता के लिए इसके ऐलान से वह खुश हैं, पर अवॉर्ड लेने का यह ‘सही वक्त’ नहीं है। उन्होंने साफ कहा कि वह तब तक यह अवॉर्ड ग्रहण नहीं करेंगे, जब तक कि सरकार इस विधेयक को वापस नहीं ले लेती। विधेयक को लेकर असम सहित पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में भारी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक?
नागरिकता संशोधन विधेयक 2016, नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है। इसके तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से आने वाले हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेजने की बजाय उन्हें नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। विधेयक के प्रावधानों के अनुसार, ऐसे प्रवासी भारत में 6 साल गुजारने के बाद ही नागरिकता के लिए आवेदन दे सकेंगे, जबकि फिलहाल यह अवधि 12 साल की है। विधेयक में हालांकि इन देशों से आने वाले मुस्लिम अवैध प्रवासियों का जिक्र नहीं किया गया है और न ही उक्त देशों से आने वाले यहूदी या बहाई समुदाय के लोगों को लेकर भी कुछ उल्लेख किया गया है।
असम क्यों कर रहा है विरोध?
विधेयक का सबसे ज्यादा विरोध असम में हो रहा है। असम सहित पूर्वोत्तर में इस संशोधन विधेयक का विरोध करने वालों का कहना है कि इससे क्षेत्र में सामाजिक व जनसांख्यिकीय संरचना बुरी तरह प्रभावित होगी। उन्होंने इसे असम समझौता, 1985 के विरुद्ध भी माना है, जो 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से आने वाले अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेजने की बात करता है।उनका कहना है कि ऐसे प्रवासियों की पहचान और उन्हें वापस उनके देश भेजने के लिए हुए समझौते में किसी भी कीमत पर बदलाव नहीं किया जाना चाहिए |
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कौन हैं अवैध प्रवासी?
नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत उन विदेशी नागरिकों को अवैध प्रवासी माना गया है, जो वैध दस्तावेजों के बगैर भारत आते हैं और वीजा की अवधि समाप्त हो जाने के बावजूद यहां रुके रहते हैं। बीते वर्षों में ऐसे अवैध प्रवासियों के संबंध में कुछ अपवाद भी सामने आए हैं। सितंबर 2015 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से भारत आने वाले वहां के अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ अवैध प्रवासियों को यहां रहने की अनुमति दी गई।
अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से आए जिन लोगों को सितंबर 2015 में भारत में रहने की अनुमति दी गई, वे ऐसे लोग थे, जो 31 दिसंबर, 2014 से पहले या उस दिन तक भारत पहुंच गए थे। इसी तरह उक्त देशों से आए कुछ अन्य अवैध प्रवासियों को उनके देश वापस भेजने की बजाय जुलाई 2016 में भी उन्हें नागरिकता देने का मुद्दा उठा और विधेयक लोकसभा में पेश किया गया, जिसके बाद से पूर्वोत्तर उबल पड़ा।