
अब एक साथ तीन तलाक देना दंडनीय अपराध की श्रेणी में शामिल हो गया है| देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ‘तलाक-ए-बिद्दत’ (तीन तलाक) को दंडनीय अपराध बनाने वाले अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए| साथ ही मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक लोकसभा में पास हो चुका है, लेकिन राज्यसभा में लंबित है। सरकार को छह महीने में इस विधेयक को राज्यसभा से पास कराना होगा।
देश भर में मोदी सरकार द्वारा लाए इस अध्यादेश को मुस्लिम महिलाओं के साथ इंसाफ बताया जा रहा है, लेकिन क्या सरकार वाकई मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा कर पाई है? तीन तलाक को अपराध की श्रेणी में शामिल करने के बाद बहुत से सवाल मोदी सरकार के खिलाफ उठ रहे है, क्या सरकार उसके लिए जवाबदेह है? क्या मुस्लिम समाज में तीन तलाक का मुद्दा वाकई इतना बड़ा था या केवल केंद्र सरकार का चुनावी स्टंट?
साल 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार की मुस्लिम महिलाओं के साथ गहरी सहानुभूति देखी गई, लेकिन उन महिलाओं को इंसाफ दिलाने में सरकार की सहानुभूति कब दिखेगी जिन्हें बिना तलाक दिए छोड़ दिया गया?
पुराने मामलों का क्या होगा?
इस अध्यादेश के प्रावधानों के मुताबिक, पति के तीन तलाक देने पर पुलिस को पति को गिरफ्तार करने का अधिकार दिया गया। इसके अलावा मजिस्ट्रेट महिला का पक्ष सुने बिना आरोपी पति को जमानत नहीं दे पाएंगे, लेकिन अध्यादेश द्वारा लाए गए कानून पूर्व की घटनाओं में लागू नहीं होगा। आपराधिक कानून जिस दिन लागू होता है उसी समय से प्रभावी होता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि पूर्व में तीन तलाक पीड़ित महिलाओं को इंसाफ कैसे मिलेगा?
कानून का हो सकता है गलत इस्तेमाल
तीन तलाक देने के आरोप में अगर पति जेल चला जाता है, तो पत्नी और बच्चे का खर्च कौन उठाएगा? क्या ससुराल वाले उठाएंगे खर्च? यह कहना मुश्किल है, क्योंकि उनका बेटा तो जेल में है| इसके बारे में कानून में कुछ साफ नहीं है|
मुस्लिम महिलाओं को कानून की कुछ धाराओं को लेकर संदेह है| साथ ही उन्हें कानून के गलत इस्तेमाल का भी डर है| कोलकाता के एक टीचर मोहम्मद आसिफ का कहना है कि जो बिल लोकसभा में पास हुआ है, उसके गलत इस्तेमाल की पूरी आशंका है| ये गैरजमानती अपराध है, इसलिए पुलिस भी नाजायज फायदा उठा सकती है| पहले भी कुछ मामलों में ऐसा हो चुका है| अगर पति जेल जाता है, तो महिला को गुजारा-भत्ता कौन देगा?
अन्य समाज की अपेक्षा मुस्लिम महिलाओं की तलाक दर काफी कम
कहा जा रहा है मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं के साथ न्याय किया, लेकिन बाकी समाज में महिलाओं के साथ इंसाफ कब होगा?
साल 2011 जनगणना के मुताबिक, 23 लाख महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें बिना तलाक के ही छोड़ दिया गया है| इनमें सबसे ज्यादा संख्या हिंदू महिलाओं की है, जबकि मुस्लिम महिलाओं की संख्या काफी कम है|
देश में करीब 20 लाख ऐसी हिंदू महिलाएं हैं, जिन्हें अलग कर दिया गया है और बिना तलाक के ही छोड़ दिया गया है| वहीं, मुस्लिमों में ये संख्या 2 लाख 8 हजार, ईसाइयों में 90 हजार और दूसरे अन्य धर्मों की 80 हजार महिलाएं हैं| ये महिलाएं बिना पति के रहने को मजबूर हैं|
अगर बिना तलाक के अलग कर दी गईं और छोड़ी गई औरतों की संख्या का औसत देखें, तो हिंदुओं में 0.69 फीसदी, ईसाई में 1.19 फीसदी, 0.67 मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यों (जैन, सिख, पारसी, बौद्ध) में 0.68 फीसदी है| इस तरह देखा जाए तो मुस्लिमों में बिना तलाक के छोड़ी गई महिलाओं की दर अन्य समाज की तुलना में काफी कम है|
दूसरी तरफ ‘अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ बताता है कि अन्य समुदायों की तुलना में मुसलमानों की तलाक दर काफी कम है। केरल, महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के 8 जिलों से पारिवारिक अदालतों और दारुल कजास की संख्या का विश्लेषण करने वाले बोर्ड ने पाया कि हिंदुओं में 16,505 संख्या है जबकि मुसलमानों में तलाक की संख्या 1,307 है|
शरिया कोर्ट के मुताबिक जहां कई मामलें आपसी सहमती से निपटाए जाते हैं| इस कोर्ट के सामने आए 525 तलाक के मामलों में सिर्फ…
- 0.2 प्रतिशत तलाक फोन से हुआ है|
- 0.6 प्रतिशत तलाक ईमेल से हुआ है|
- 1 तलाक एसएमएस से हुआ है|
तीन तलाक: मुख्य मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश तो नहीं?
तीन तलाक के मुद्दे को राष्ट्रीय मंच पर जितनी गंभीरता से दिखाया गया उतनी गंभीरता देश के अहम मुद्दों को नहीं दिखया गया| हर न्यूज़ चैनलों में तीन तलाक या हिन्दू-मुस्लिम विषय पर चर्चा की जाती है परन्तु मूल मुद्दे गायब रहतें है|
मोदी सरकार द्वारा तीन तलाक पर लाए गए अध्यादेश को जहां भाजपा ने न्याय के लिए उठाया गया ऐतिहासिक कदम बताया जा रहा है, वहीं विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि यह सिर्फ बुनियादी समस्याओं और अपनी सरकार की विफलताओं को छिपाने की कोशिश है| विपक्षी दलों का कहना है कि यह भाजपा की केंद्र सरकार का चुनावी स्टंट है।
क्या मोदी सरकार लगातार बढ़ रही पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों, महंगाई, बकाया गन्ना मूल्य भुगतान नहीं होने और अपनी विफलता को छिपाना चाहती है? राम मंदिर और धारा 370 पर अध्यादेश क्यों नहीं लाती, इनके बारे में सरकार यह क्यों कहती है कि मामला कोर्ट में है?
97% मुस्लिम विवाह सफल: डॉ. अस्मा जेहरा
‘ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड’ की कार्यकारी सदस्य डॉ. अस्मा जेहरा ने कहा: “इस कानून के खिलाफ तथाकथित आंदोलन देश में यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने के मकसद से शुरू किया जा रहा है| उन्होंने बताया कि मुस्लिम महिलाओं के बीच तीन तलाक जैसे मुद्दे का कोई महत्व नहीं है, इसलिए कानूनों में कोई बदलाव लाने की ज़रूरत नहीं है। आंकड़ों के मुताबिक, पश्चिमी देशों की तुलना में तलाक की दर भारत में सबसे कम है।”
डॉ. अस्मा जेहरा ने कहा कि लगभग 10 करोड़ मुस्लिम महिलाएं मौजूदा नियमों से खुश हैं। यदि शरियायत कानूनों के तहत घबराहट महसूस करने वाला कोई भी व्यक्ति है, तो वह विशेष विवाह अधिनियम-1954 के मानदंडों के तहत शादी कर सकता है| साथ ही पर्सनल कानून के तहत सभी मुस्लिम महिलाएं खुश और संतुष्ट हैं। आगे बताया कि मुस्लिम समुदाय में 97 प्रतिशत विवाह सफल रहें है।
डॉ. जेहरा ने कहा कि जो मुस्लिम पुरुष तीन तलाक का दुरूपयोग करतें है उन्हें शिक्षित होने ज़रूरत है| जेहरा ने बताया कि सरकार को तीन तलाक पर ध्यान केन्द्रित करने की बजाए कन्या भ्रूणहत्या, बाल विवाह, दहेज, निरक्षरता इत्यादि जैसी प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए| वहीँ, इस्लाम में प्रचलित बहुविवाह के बारे में स्पष्ट किया कि इस्लाम न्याय और समानता सुनिश्चित करने के बाद ही इसकी अनुमति देता है। शरियत में मुस्लिम महिलाओं के विवाह और तलाक के लिए अच्छी तरह से तैयार कानून हैं। उन्हें सख्ती से लागू किया जा रहा है और उन्हें संशोधित करने की कोई ज़रूरत नहीं है|
नोट: इस्लाम में तलाक का सही तरीका ‘तलाक-ए-अहसन’ है| इसमें शौहर अपनी बीवी को एक-एक महीने के अंतराल में तलाक देता है| इस बीच अगर पति-पत्नी के बीच रिश्ता नहीं बना और सुलह नहीं हुई, तो तीसरे महीने तीसरी बार तलाक कहने के बाद उनका संबंध खत्म हो जाता है।
इंसाफ बाकी है…
पीएम मोदी ने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा था, ‘मैं मुस्लिम महिलाओं को विश्वास दिलाता हूं कि पूरा देश उन्हें न्याय दिलाने के लिए पूरी ताकत से साथ खड़ा है।’ अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुस्लिम महिलाओं के साथ इतनी ही हमदर्दी रखतें है, तो बिलकिस बनो को न्याय के लिए इतने थक्के क्यूँ खाने पड़े? शायद यह कह सकते है कि अब 15 साल बाद उनका ह्रदय परिवर्तन हो गया|
साल 2002 में गोधरा में हुए दंगे के समय बिलकिस बनो, जो 5 माह की गर्भवती थी, फिर भी उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया| साथ ही उसकी 3 साल की बच्ची सहित परिवार के 13 लोगों की हत्या कर गई| अन्य मुस्लिम महिलाएं भी इसकी शिकार हुई थी| इस बात की चश्मदीद बिलकिस बनो थी| बावजूद इसके बिलकिस बनो को न्याय के लिए इतना लम्बा संघर्ष करना पड़ा| इस मामलें की सुनवाई गुजरात से बाहर होती थी क्यूंकि सीबीआई ने कहा था कि इस मामलें के लिए गुजरात सरकार, जिसकी कमान उस वक़्त नरेंद्र मोदी के हाथ में थी, पर भरोसा नहीं किया जा सकता था|
बिलकिस बनो के अलावा पहलू ख़ान और मोहम्मद अखलाक़ की बेवाओं का क्या जिनकी बिना किसी वजह हत्या कर दी गई, जिनकी ज़िंदगियां कथित ‘गौरक्षकों’ की हिंसा से बर्बाद हो गईं? जेएनयु छात्र नाजिब अहमद, 2 साल बाद भी उसका पता नहीं चल सका| नाजिब की माँ आज भी इंतज़ार कर रहीं है और इंसाफ के लिए पुलिस थाने और कोर्ट कचहरी की ठोकरे खा रहीं है?
हक़ की लडाई देश की हर औरत के लिए हो सिर्फ मुस्लिम औरतों के लिए न हो
औरतों का किसी भी धर्म या समाज से ताल्लुक हो, ज़रूरी है कि वह समाज में अपने अधिकारों के लिए आज़ाद हो| हिन्दू औरतें हो या मुस्लिम औरतें, वें आज भी संवैधानिक, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक संस्थानों से अपने हक़ों के लिए लड़ रहीं हैं| भारत में कहीं तीन तलाक का मसला है, तो कहीं गर्भ में बेटी मार दिए जाने का मसला है, यह सच है कि महिलाओं का संघर्ष इक्कीसवी सदी में आकर भी नहीं रुका| इसलिए औरतों को उनके समाज से पहचान कर न्याय करने की बजाय औरतों की बुनियादी लड़ाई पर न्याय मिलना चाहिए| वैसे अक्सर देखा जाता है कि औरतों की लड़ाई अपने धर्म से कम, और पुरषों से ज़्यादा है|

