हाल ही में अमेरिका ने ईरान की मेटल इंडस्ट्री पर बैन लगा दिया है जिससे अमेरिका और ईरान के रिश्ते और अधिक तनावपूर्ण हो गए है| अमेरिका द्वारा लिए इस फैसले के कारण भारत समेत दुनियाभर के स्टील इंडस्ट्री पर इसका असर पड़ेगा|
ईरान ने परमाणु समझौते से जुडी कुछ प्रतिबद्धताओं को लेकर बदलाव किया है जिसके कारण अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान पर दबाव बनाते हुए स्टील और खनन उद्योगों पर प्रतिबंध लगा दिया है|
इससे पहले भी अमेरिका ने ईरान की तेल इंडस्ट्री पर प्रतिबंध लगाया था जिसका असर भारत में भी देखा गया था| तेल के निर्यात में प्रतिबंध लगाने के दौरान अमेरिका ने भारत समेत आठ देशों को 2 मई तक छूट दी थी जो बीते दिनों ख़त्म हो चुकी है|
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ईरान ने क्या कदम उठाया
साल 2015 में अमेरिका और ईरान के बीच अन्तराष्ट्रीय परमाणु समझौता हुआ था लेकिन पिछले साल यानी 2018 में अमेरिका ने खुद को इस फैसले से अलग कर लिया था जिसके बाद ईरान और अमेरिका के बीच रिश्ते में कडवाहट आती गई|
ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने कहा कि अन्य महाशक्तियां अभी भी इस समझौते को लेकर प्रतिबद्ध हैं लेकिन ईरान अपने वादों से पीछे हट रहा है|
ईरान ने परमाणु समझौते के दो हिस्सों से खुद को अलग किया है जिसे ‘ज्वाइंट कम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ़ एक्शन’ (जेसीपीओए) कहा जाता है| इसके तहत सरप्लस यूरेनियम और हेवी वॉटर की बिक्री शामिल होती है|
इस समझौते के तहत परमाणु हथियार बनाने में इस्तेमाल होने वाले सरप्लस यूरेनियम को ईरान अपने पास नहीं रख सकता और उसे विदेश में बेचता है|
ईरान का कहना है कि अगर समझौते में शामिल देश अमरीका के लगाए प्रतिबंधों का साथ नहीं देते हैं और ईरान की आर्थिक हालत पर विचार करते हैं तो वह 60 दिन के बाद दोबारा यूरेनियम की बिक्री शुरू कर देगा| इसके साथ ही ईरान का ये भी कहना है कि वो तय सीमा से अधिक मात्रा में अधिक एनरिच्ड यूरोनियम बनाना शुरु कर देगा और साथ ही अरक हेवी वॉटर रीएक्टर पर काम करना शुरु करेगा|
कौन से देश परमाणु समझौते में शामिल है
ईरान के परमाणु समझौते में चीन और रूस को छोड़कर ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी अभी भी ईरान के साथ परमाणु समझौते में शामिल हैं| वहीँ, अमेरिका पिछले साल खुद को इस समझौते से अलग कर लिया था|
ब्रिटेन के विदेश सचिव जेरेमी हंट ने ईरान के इस कदम को अस्वीकार करते हुए ईरान से अपील की है कि वह आगे और ऐसे कदम ना उठाए| साथ ही उन्होंने ईरान को समझौते के नियमों का पालन करने की सलाह भी दी|
इसके साथ जर्मनी ने इस पर ऐतराज़ जताते हुए कहा कि ईरान को इस समझौते को तोड़ने से पहले इसके भविष्य के बारे में सोचना चाहिए| जर्मनी के विदेश मंत्री हीको मास ने इस समझौते को यूरोप की सुरक्षा के लिए अहम बताया और कहा कि वे अभी भी समझौते के साथ हैं|
फ़्रांस के रक्षा मंत्री फ़्लोरेंस पार्ले ने मीडिया से कहा कि यूरोपीय ताकतें इस समझौते को बचाने की हरसंभव कोशिश कर रही हैं लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो ईरान को इसके बुरे परिणाम और अधिक प्रतिबंध भुगतने पड़ सकते हैं|
चीन और रूस ने अमेरिका के फैसले का किया विरोध
कुछ देश परमाणु समझौते को लेकर अमेरिका के फैसले के साथ खड़े है वहीँ, कुछ देश अमेरिका द्वारा लिए फैसले का विरोध कर रहे है| रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने समझौते में शामिल सभी पक्षों से उनकी प्रतिबद्धताओं पर टिके रहने की अपील की है| साथ ही कहा कि पश्चिमी देश मुद्दे से ध्यान भटकाना चाहते हैं|
वहीँ, चीन ने ईरान का साथ देते हुए कहा कि वह ईरान पर लगाए गए अमरीका के प्रतिबंधों का कड़ा विरोध करता है|
इन सबके बीच अमरीकी विदेश मंत्री पोम्पियो ने इस मसले पर ज़्यादातर चुप्पी साधनी ही बेहतर समझी और बस इतना कहा कि वे ईरान के अगले कदम का इंतज़ार करेंगे|
हालांकि अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के विशेष सहायक टिम मौरिसन ने कहा कि ईरान का यह कदम यूरोप को ब्लैकमेल करने के लिए है| उन्होंने यूरोपीय देशों से ‘इंसटेक्स’ (इंस्ट्रूमेंट इन सपोर्ट ऑफ़ ट्रेड एक्सचेंज) से पीछे ना हटने की अपील की है|
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क्यों है अमेरिका और ईरान के बीच तनाव
अमेरिका और ईरान के बीच तनाव लंबे समय से चलता आ रहा है| वर्ष 1979 में अमेरिका ने ईरान की इस्लामी क्रांति को उखाड़ फेंका था और उसकी जगह एक कट्टरपंथी अमरीका विरोधी शासन स्थापित किया|
साल 2017 में डोनाल्ड ट्रम्प पदभार संभालने के बाद से दोनों देशों के बीच संबंध ख़राब हो गए और पिछले साल अमरीका ने ख़ुद को परमाणु समझौते से अलग कर लिया था| समझौते के तहत, ईरान ने अपनी संवेदनशील परमाणु गतिविधियों को सीमित करने सहमति व्यक्त की थी| इसके साथ अमरीका ने ईरान के रिवॉल्युशनरी गार्ड कॉर्प्स को भी ब्लैक लिस्ट में डाल दिया| प्रतिबंधों के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट आई थी|