
संयूक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने भारत को उन ‘शर्मनाक’ देशों में शामिल किया है जहाँ मानव अधिकार का हनन सबसे अधिक हुआ है| संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की 9वीं वार्षिक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनिया के 38 देशों में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर बदले की कार्रवाई की जाती है। जिसमें डराने-धमकाने, हत्या, प्रताड़ना और मनमानी गिरफ्तारी शामिल हैं।
हाल ही में देश के कई राज्यों में भीमा कोरेगांव मामले को लेकर कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और उनके सहयोगियों की मनमानी गिरफ्तारी हुई। इन गिरफ्तारियों के बाद मोदी सरकार पर बदले की कार्रवाई करने के आरोप लग रहे हैं। इसके बाद उनके खिलाफ प्रतिशोधात्मक कार्यवाही, धमकियाँ, हत्याएं और यातनाएं भी दी गई।
क्या कहती है रिपोर्ट?
द वायर और OHCHR (संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय) के अनुसार संयुक्त राष्ट्र ने बीते बुधवार को चीन और रूस समेत 38 “शर्मनाक” देशों को सूचीबद्ध किया है जिसमें भारत भी शामिल है।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो ग्युटेरेस की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है कि इन देशों में लोगों के मानवाधिकारों का हनन किया गया और उन्हें यातनाएं भी दी गई|
गुटेरेस ने लिखा, “दुनिया उन मानवाधिकारों के लिए खड़े लोगों ऋणी है, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र के साथ जानकारी प्रदान करने और संलग्न करने के अनुरोधों का जवाब दिया है, “संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोग करने के लिए व्यक्तियों को दंडित करना एक शर्मनाक प्रथा है| हर किसी को इस प्रथा से बाहर निकलने के लिए और कुछ करना चाहिए।”
38 शर्मनाक देशों में 29 नए देश भी शामिल हुए है जहाँ ह्यूमन राइट्स उल्लंघन के अधिक मामलें सामने आए है| इन नए 29 देशों में बहरीन, कैमरून, चीन, कोलंबिया, क्यूबा, कांगो, जिबूती, मिस्र, ग्वाटेमाला, गुयाना, होंडुरास, हंगरी, भारत, इज़राइल, किर्गिस्तान, मालदीव, माली, मोरक्को, म्यांमार, फिलीपींस, रूस, रवांडा, सऊदी अरब, दक्षिण सूडान, थाईलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, और वेनेज़ुएला शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार इन देशों की सरकारों ने अक्सर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया या उन्हें विदेशी संस्थाओं के साथ सहयोग करने या राज्य की प्रतिष्ठा या सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने के लिए दोषी ठहराया।
सिविल सोसाइटी को डराने-धमकाने में हो रही वृद्धि
मानवधिकार प्रमुख एंड्रीयू गिलमोर ने कहा कि रिपोर्ट में ब्यौरा है कि किस तरह से सिविल सोसाइटी को डराने-धमकाने और चुप कराने के लिए कानूनी, राजनीतिक तथा प्रशासनिक कार्रवाइयों में वृद्धि होते देखा जा रहा है।
रिपोर्ट में भारत के संदर्भ में कहा गया है कि नवंबर 2017, में दो विशेष कार्यप्रणाली अधिकार धारकों ने गैर सरकारी संगठनों का कामकाज रोकने के लिए विदेशी चंदा नियमन अधिनियम, 2010 के इस्तेमाल पर चिंता जताई। ये संगठन संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोग करना चाहते थे।

