नई शिक्षा निति के तहत बनाई गई नौ सदस्यीय के कस्तूरीरंगन समिति ने देश के सभी स्कूलों में आठवी कक्षा तक हिंदी भाषा अनिवार्य बनाए जाने की सिफारिश की है| ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक इस समिति ने पिछले महीने अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले सरकार को सौंपी अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में तीन भाषाओं वाले फॉर्मूले के तहत यह सिफारिश की है|
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विज्ञान व गणित विषयों के लिए पूरे देश में एक समान पाठ्यक्रम रखने, जनजातीय बोलियों के लिए देवनागरी में लिपि विकसित करने और ‘हुनर’ के आधार पर शिक्षा का प्रसार करने जैसी अन्य सिफारिशें शामिल हैं| रिपोर्ट में की गई सिफारिशों को लेकर समिति में शामिल सूत्रों का कहना है कि सामाजिक विज्ञान के तहत स्थानीय विषय सामग्री ली जानी चाहिए लेकिन अलग-अलग राज्य शिक्षा बोर्डों में 12वीं तक विज्ञान और गणित के अलग-अलग पाठ्यक्रम रखने का कोई लॉजिक नहीं है| ये दोनों विषय किसी भी भाषा में पढ़ाए जा सकते हैं लेकिन पाठ्यक्रम सभी राज्यों में एक समान होना चाहिए|
हालांकि, मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने हिंदी को अनिवार्य किए जाने की खबरों का खंडन किया है| उन्होंने कहा कि कमेटी ने किसी भी भाषा को अनिवार्य करने की सिफारिश नहीं की है| सामाजिक विज्ञान के अंतर्गत आने वाले विषयों में स्थानीय चीजें होंगी जबकि सभी बोर्ड में विज्ञान और गणित का एक ही सिलेबस होगा, भले ही विज्ञान और गणित किसी भी भाषा में पढ़ाया जाए| सूत्रों के मुताबिक नई शिक्षा नीति में पांचवीं क्लास तक अवधी, भोजपुरी और मैथली जैसी स्थानीय भाषाओं का भी सिलेबस बनाने को कहा गया है| साथ ही उन जनजातीय इलाकों में जहां लेखन की कोई लिपि नहीं है या मिशनरियों के प्रभाव के कारण रोमन लिपि का उपयोग होता है वहां देवनागरी लिपि का विस्तार करने की बात कही गई है| यह शिक्षण नीति एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की बात करती है जिसके केंद्र में भारत हो|
क्या गैर हिंदी भाषी राज्य होंगे तैयार?
नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तीन भाषाई नीति के साथ-साथ आठवीं क्लास तक हिंदी को अनिवार्य करने की वकालत करता है| वर्तमान में गैर हिंदी भाषी राज्यों तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, गोवा, पश्चिम बंगाल और असम में में हिंदी अनिवार्य नहीं है| सूत्रों के मुताबिक अगस्त 2018 के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से मिले सुझावों और मैराथन चर्चा के बाद नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट तैयार किया गया है| इसके अलावा पैनल ने सात राज्यों के प्रतिनिधि और मानव संसाधन मंत्री प्रकश जावड़ेकर से भी चर्चा की है| सूत्रों की मानें तो 20 दिसंबर को दिल्ली में आरएसएस संस्थानों के शिक्षा समूह में भी इसको लेकर चर्चा हुई थी| अक्टूबर में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी नई शिक्षा नीति में हो रही देरी पर चिंता जाहिर की थी| 2015 के आरएसएस के अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में भी प्राथमिक शिक्षा स्थानीय भाषा में कराने को लेकर प्रस्ताव पास हुआ था|
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पिछली शिक्षा नीति 1986 में लाई गई थी जिसमें 1992 में बदलाव किए गए थे| शिक्षा नीति के आधार पर ही 2005 में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढांचा तैयार किया गया था जिसे दस साल बाद फिर से जारी होना था मगर एनडीए सरकार ने नई शिक्षा नीति लाने का फैसला किया|

