इस हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने कई रुके हुए फैसलों को अंजाम तक पहुँचाया। सुप्रीम कोर्ट ने 22 सितम्बर को जहाँ राजनितिक अपराधीकरण पर फैसला सुनाया वही आधार कार्ड समलैंगिकता, अयोध्या, सबरीमाल मंदिर मामले की सुनवाई पूरी की। इन सभी मामलों से हम समझ सकते है जो साफ़ ज़ाहिर है देश के लिए ऐसे ही टी आर पी (TRP) जैसे मुद्दें अहम है| देश के असली मुद्दों पर देश का सबसे बड़ा सर्वोच्च न्यायालय खामोश है। इन फैसलों से तो यही लगता है की अब देश के लिए सिर्फ वोट बैंक के मुद्दे ज़्यादा ज़रूरी है| वहीँ नज़र डाले सुप्रीम कोर्ट के राजनितिक अपराधीकरण के फैसले से पलड़ा झरते हुए ये ज़िम्मेदारी संसद को दे दी है। अब संसद में बैठे सांसद अपने ऊपर चल रहे आपराधिक मामले पे कानून वह खुद बनाएंगे।
वहीँ हम बलात्कार की घटना की बात करें तो निर्भया से ले कर मुज़फ़्फ़रपुर शेल्टर होम रेप की तक घटना पर आज तक कोई सुनवाई नहीं हो रही है। इन घटनाओ पर कब फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट? क्या अयोध्या जैसा धार्मिक मामला हमारी अदालतों के लिए रेप, यौन शोषण और अपहरण जैसी समस्साओं से ज़्यादा महत्वपूर्ण है?
भारत में हर घंटे 4 बलात्कार होते है
अगर हम सिर्फ राजधानी दिल्ली में बलात्कारों की घटना की बात करें तो दिल्ली में महिलाओं के लिए कितना असुरक्षित है, इसका अनुमान आप 2017 में सामने आए बलात्कार के मामलों से लगा सकते हैं. दरअसल, दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में पिछले साल हर दिन बलात्कार के औसतन पांच से अधिक मामले दर्ज किए गए. साथ ही, ज्यादातर घटनाओं में आरोपी पीड़िता का परिचित था. दिल्ली पुलिस द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 में बलात्कार के 2049 मामले दर्ज किए गए जो 2016 में 2064 थे। पिछले साल छेड़छाड़ के 3273 मामले दर्ज किए गए। क्या इन मामलों में सरकार और अदालत को मज़बूत फैसला नहीं लेना चाहिए?
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बात करें भ्रष्टाचार की तो पिछले कुछ वर्षों से भारत एक नए तरह के भ्रष्टाचार का सामना कर रहा है। बड़े घपले-घोटालों के रूप में सामने आया यह भ्रष्टाचार कारपोरेट जगत से जुड़ा हुआ है। यह विडंबना है कि कारपोरेट जगत का भ्रष्टाचार लोकपाल के दायरे से बाहर है। देश ने यह अच्छी तरह देखा कि 2जी स्पेक्ट्रम तथा कोयला खदानों के आवंटन में निजी क्षेत्र किस तरह शासन में बैठे कुछ लोगों के साथ मिलकर करोड़ों-अरबों रुपये के वारे-न्यारे करने में सफल रहा।
भारत में नेताओं, कारपोरेट जगत के बडे-बड़े उद्योगपति तथा बिल्डरों ने देश की सारी सम्पत्ति पर कब्जा करने के लिए आपस में गठजोड़ कर रखा है। इस गठजोड़ में नौकरशाही के शामिल होने, न्यायपालिका की लचर व्यवस्था तथा भ्रष्ट होने के कारण देश की सारी सम्पदा यह गठजोड़ सुनियोजित रूप से लूटकर अरबपति-खरबपति बन गया है।
समय-समय पर समाचार आते हैं कि राज्य सभा की सदस्यता १ करोड़ में खरीदी जा सकती है।
मंत्रियों, सांसदों, विधायकों की सम्पत्ति एक-दो वर्ष में ही तीन-चार गुनी हो जा रही है। समय-समय पर विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में लाखों रूपए लेकर परीक्षा में नकल कराकर मेरिट सूची में लाने के समाचार आ रहे हैं।
संसद में प्रश्न पूछने के लिए पैसे लेना, पैसे लेकर विश्वास-मत का समर्थन करना, राज्यपालों, मंत्रियों आदि द्वारा विवेकाधिकार का दुरुपयोग, शिक्षा में भ्रष्टाचार: रूपये लेकर स्कूलों/कॉलेजों में प्रवेश देना, विद्यालयों द्वारा सामूहिक नकल कराना, प्रश्नपत्र आउट करना, पैसे लेकर पास कराना और बहुत अधिक अंक दिलाना, जाली प्रमाणपत्र और मार्कशीट बनाना, चिकित्सकों का भ्रष्टाचार: आनावश्यक जाँच लिखना, जेनेरिक दवायें न लिखना, भ्रूण की जाँच करना और लिंग परीक्षण करना, वकीलों द्वारा भ्रष्टाचार: फर्जी डिग्री य बिना डिग्री के प्रैक्टिस करना, अपने विरोधी को रहस्य बता देना, तारीख पर तारीख डालना, मुकदमे को कमाई का साधन बना देना, अवैध गृहनिर्माण (हाउसिंग), चार्टर्ड अकाउंटेंटों द्वारा भ्रष्टाचार — किसी व्यापार या कम्पनी के वित्तीय कथनों पर निर्भीक राय न देना, वित्तीय गड़बडियों को छिपाना आम है।
“भारतीय गरीब है लेकिन भारत देश कभी गरीब नहीं रहा” – ये कहना है स्विस बैंक के डाइरेक्टर का. स्विस बैंक के डाइरेक्टर ने यह भी कहा है कि भारत का लगभग 280 लाख करोड़ रुपये उनके स्विस बैंक में जमा है। ये रकम इतनी है कि भारत का आने वाले 30 सालों का बजट बिना टैक्स के बनाया जा सकता है। या यूँ कहें कि 60 करोड़ रोजगार के अवसर दिए जा सकते है। या यूँ भी कह सकते है कि भारत के किसी भी गाँव से दिल्ली तक 4 लेन रोड बनाया जा सकता है। 22 से लेकर 28 सितम्बर तक 20 फैसले सुप्रीम कोर्ट ने किये इन फैसलों में ज़्यादातर फैसले विवादित थे लेकिन आज भी रेप, भरस्टाचार, महंगाई, सिस्टम में पारदर्शिता जैसे अहम मामले ठन्डे बस्ते में है।

